तो क्या ‘श्रीमंत’ की भरपाई ‘सिंह’ से करने का इरादा है … ?

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तो क्या 'श्रीमंत' की भरपाई 'सिंह' से करने का इरादा है ... ?
पिछले विधानसभा चुनाव में चंबल-ग्वालियर में ‘श्रीमंत’ कांग्रेस का चेहरा थे और पार्टी ने क्षेत्र की अधिकतम सीटें जीतकर सरकार बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। पर कांग्रेस का दुर्भाग्य ही माना जाए कि सिंधिया 15 माह बाद ही समर्थित विधायकों सहित कांग्रेस को छोड़ भाजपा में चले गए और कांग्रेस को पटखनी देकर भाजपा की सरकार बन गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा 2018 विधानसभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस के तीन बड़े चेहरों में शुमार था, जिसकी कमी विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस को खलेगी।
वहीं सिंधिया के जाने के बाद ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस नेतृत्व के अभाव से जूझ रही है। ऐसे में कांग्रेस ने डॉ. गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाकर शायद ग्वालियर-चंबल को वह चेहरा भेंट किया है, जिससे अपेक्षा है कि सिंधिया के जाने से इस क्षेत्र में हुई रिक्तता को भरा जा सके। पर सवाल यही है कि सात बार चुनावी जंग को फतह कर लहार विधानसभा क्षेत्र से अजेय, कांग्रेस के वरिष्ठतम विधायक डॉ. गोविंद सिंह क्या ग्वालियर-चंबल में ‘चेहरा’ बनने की जंग जीत पाएंगे? क्या नाथ के फिर मुख्यमंत्री बनने के सपने में वह रंग भर पाएंगे?
जो कमाल चंबल-ग्वालियर से अधिकतम सीटें जिताकर 2018 में सिंधिया ने दिखाया था। और मान न मिलने पर सरकार गिराकर भी कमाल दिखाने में कोताही नहीं बरती थी। क्या ऐसे कमाल डॉ. गोविंद सिंह से अपेक्षित किए जा सकते हैं? तो दूसरा चेहरा पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का है, जिनके नेतृत्व में विंध्य की जनता ने सिंह और कांग्रेस को बुरी तरह से नकार दिया था। यदि ऐसा न होता, तो शायद कांग्रेस की सरकार पूर्णायु जीने की हकदार हो गई होती। ऐसे में डॉ. गोविंद सिंह कैसा कमाल दिखाएंगे, यह गवाही 2023 विधानसभा चुनाव के परिणाम ही देंगे।
वैसे इस वरिष्ठतम विधायक को मिले सम्मान की सराहना होनी चाहिए। कम से कम अनुभव को वरीयता तो मिली। इससे कांग्रेस के अंदर संतुलन की स्थिति भी बन गई है। कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष, तो दिग्विजय समर्थित डॉ. गोविंद सिंह नेता प्रतिपक्ष। तो ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस को सिंधिया के सामने चेहरा बनाने में सफलता मिल गई। भाजपा ने भी 15 साल बाद विपक्ष में बैठने पर पार्टी के वरिष्ठतम विधायक गोपाल भार्गव को नेता प्रतिपक्ष के पद से नवाजा था। वैसे अब विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा और नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह दोनों ही ग्वालियर-चंबल से हैं।
दोनों में गाढ़ी दोस्ती भी है। जब-जब दोनों नेताओं की मुलाकात हुई, तो कयासों का दौर भी जारी रहा। और जब भाजपा विपक्ष में बैठी थी, तब डॉ. गोविंद सिंह ने भी संसदीय कार्य मंत्री का दायित्व निभाया था। वैसे डॉ. सिंह को कई विभागों का दीर्घ अनुभव है। दोनों वरिष्ठ नेताओं की अपने क्षेत्रों में एकतरफा चलती है।दोनों नेता खरी-खोटी सुनाने में चूकते नहीं हैं। दोनों ही दबंग नेता हैं। ऐसे में अब गोविंद-नरोत्तम की जोड़ी पर शब्द बदलकर वह गाना शूट करता है कि “इस सदन में हम दो शेर, चल घर जल्दी हो गई देर…।
” शब्द बदलने में कोताही बरतना ठीक है वरना संसदीय शब्द विशेषाधिकार हनन, सदन के प्रति अनादर का भाव…वगैरह वगैरह शब्द पीछा करें तो नेता प्रतिपक्ष जैसे पद भी चले जाते हैं, जैसा कि भाजपा नेता यशपाल सिंह सिसौदिया ने कमलनाथ के नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा देने पर टिप्पणी की है कि कांग्रेस आलाकमान ने सदन के प्रति अशोभनीय टिप्पणी के चलते कमलनाथ को नेता प्रतिपक्ष पद से हटा दिया है।
खैर डॉ. गोविंद सिंह के सामने भी 2023 विधानसभा चुनाव जिताने की चुनौती है। नेता प्रतिपक्ष के नाते विपक्ष की रणनीति की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर आ गई है। हालांकि सदन में नाथ के रुतबे में कोई कमी नहीं आएगी। जैसे भाजपा में नेता प्रतिपक्ष रहे पंडित गोपाल भार्गव और तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक ही सीट पर पास-पास बैठे नजर आते थे…अब उसी तरह विपक्ष में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अगल-बगल में बैठकर सदन की गरिमा बढाएंगे। डॉ. सिंह सरकार की कमियों को उजागर करेंगे, तो कमलनाथ अपने पंद्रह माह के मुख्यमंत्री कार्यकाल की उपलब्धियों को गिनाते हुए सरकार पर चुटकी लेंगे। पर ‘श्रीमंत’ की भरपाई ‘सिंह’ कर पाएंगे?…यह समय ही बताएगा।