तो जनसंख्या नियंत्रण कानून की पृष्ठभूमि तैयार है…

534

तो जनसंख्या नियंत्रण कानून की पृष्ठभूमि तैयार है…

भारत में हिंदुओं की आबादी घटी तो मुसलमानों की बढ़ी है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्ययन में यह बात साफ हो गई है। इसके मुताबिक देश में बहुसंख्यक हिंदुओं की आबादी 7.82 फीसदी घट गई है। इस अध्ययन में 1950 और 2015 को आधार वर्ष बनाया गया है। चिंता की बात यह नहीं है। चिंता की बात तो यह है कि इसी दौरान मुसलमानों की आबादी में 43.15 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।  और चुनावी मुद्दे की बात भी यही है। संदेश अध्ययन की रिपोर्ट दे रही है, बाकी जिसको जो समझना हो वह समझता रहे। यह रिपोर्ट चिल्ला रही है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून क्यों जरूरी है? जो विरोध करना चाहते हैं वह समझ लें कि मोदी को तीसरा कार्यकाल मिला तो बचे-खुचे जो काम पूरा करना है, उन्हें पूरा किए बिना मोदी चैन की सांस नहीं लेंगे। चाहे मामला मुसलमानों का हो या ईसाई, सिख, जैन और पारसी का, पर मामला मोदी की नजर में गंभीर है। और मोदी की पारखी नजर का असर लोकसभा चुनाव परिणाम पर पड़ने वाला है। और लोकसभा चुनाव के बाद अगर नमो की सरकार तीसरी बार सत्ता में आई तो जनसंख्या नियंत्रण कानून को लागू होने से कोई नहीं रोक पाएगा। लोकसभा चुनाव 2024 के तीसरे चरण के बाद अब यह रिपोर्ट चर्चा में है।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने देश और दुनिया में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक आबादी को लेकर एक अध्ययन किया है। इस अध्ययन के मुताबिक देश में बहुसंख्यकर हिंदुओं की आबादी 7.82 फीसदी घटी है। इसके मुताबिक देश में 1950 में हिंदुओं की आबादी 84.68 फीसदी थी, जो 2015 में घटकर 78.06 फीसदी रह गई। इस अध्ययन में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य शमिका रवि, कंसल्लटेंट अपूर्व कुमार मिश्र, अब्राहम जोस शामिल थे। अध्ययन के मुताबिक इस दौरान मुसलमानों की आबादी में 43.15 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह 1950 में 9.84 फीसदी थी, यह 2015 तक बढ़कर 14.09 फीसदी हो गई। वहीं इस दौरान ईसाइयों की आबादी में 5.38 फीसदी का उछाल देखा गया। यह 2.24 फीसदी से 2.36 फीसदी हो गई। सिखों की आबादी में भी 6.58 फीसदी बढोतरी दर्ज की गई है। देश में सिखों की आबादी 1.24 फीसदी थी, जो 2015 में बढ़कर 1.85 फीसदी हो गई है। इसी तरह से बौद्धों की आबादी में भी बढोतरी दर्ज की गई है। अध्ययन के मुताबिक बौद्धों की आबादी 0.05 फीसदी से बढ़कर 0.81 फीसदी हो गई है। इसके उलट इस दौरान धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय जैनों की आबादी 0.45 फीसदी (1950 में) थी, जो 2015 में घटकर 0.36 फीसदी ही रह गई। इसी तरह से पारसियों की आबादी में गिरावट दर्ज की गई है। यह गिरावट करीब 85 फीसदी की है। देश में 1950 में पारसियों की संख्या 0.03 फीसदी थी, यह 2015 में गिरकर 0.004 फीसदी रह गई थी।

भारत में जनसंख्या के आंकड़े जनगणना से आते हैं। अंग्रेज राज में संपूर्ण जनगणना 1931 में हुई थी। उसके बाद विश्वयुद्ध की वजह से जनगणना पूरी नहीं हो पाई थी। आजाद भारत की पहली जनगणना 1951 में की गई थी। भारत में पिछली जनगणना 2011 में की गई थी। अगली जनगणना 2021 में प्रस्तावित थी, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से उसे स्थगित कर दिया गया।

बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक आबादी में आए उतार-चढ़ाव के अंतरराष्ट्रीय ट्रेंड का पता लगाने के लिए इस अध्ययन में 167 देशों को शामिल किया गया. अध्ययन के मुताबिक भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम आबादी की बहुलता वाले देशों में मालदीव को छोड़कर सभी देशों में बहुसंख्यक आबादी में बढ़ोतरी देखी गई। मालदीव में बहुसंख्यक शैफी सुन्नी की आबादी में 1.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।

भारत और नेपाल में बहुसंख्यक धार्मिक आबादी में गिरावट देखी गई। वहीं म्यांमार में थेरवाद बौद्ध की आबादी में 10 फीसदी की गिरावट देखी गई। यह इस इलाके में बहुसंख्यक धार्मिक समूह की सबसे बड़ी गिरावट है। नेपाल में बहुसंख्यक हिंदू आबादी में चार फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। वहीं बौद्धों की आबादी में तीन फीसदी की गिरावट आई तो मुस्लिम आबादी में इस दौरान दो फीसदी की बढोतरी दर्ज की गई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाकर, तीन तलाक खत्म कर, सीएए लाकर और पीओके को वापस भारत में मिलाने के संकेत देकर बार-बार यही साबित किया है कि जो सोचा है, राष्ट्रहित में वह काम किए बिना विश्राम न ही करेंगे और न ही करने देंगे। एन चुनाव के वक्त जनसंख्या बढ़ोतरी की यह रिपोर्ट जारी कर मोदी यही साबित कर रहे हैं कि अब जनसंख्या नियंत्रण कानून राष्ट्रहित में हैं। जिसे चुनाव से जोड़कर देखना हो, वह पूरी तरह से स्वतंत्र है। जनसंख्या नियंत्रण कानून की पुख्ता पृष्ठभूमि तैयार है…।