तो उज्जैन बन गई धार्मिक राजधानी…

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तो उज्जैन बन गई धार्मिक राजधानी…

मध्यप्रदेश को अब जल्दी ही ‘राजधानियों के प्रदेश’ के नाम से जाना जाएगा। भोपाल मध्यप्रदेश की ‘राजधानी’ है। इंदौर को मध्य प्रदेश की ‘आर्थिक राजधानी’ का दर्जा प्राप्त है। जबलपुर को ‘संस्कारधानी’ के नाम से जाना जाता है। और अब सावन माह के आखिरी सोमवार 19 अगस्त 2024 को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन में मध्यप्रदेश के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग का मुख्यालय संचालित करने की घोषणा कर दी है। यानि कि अब उज्जैन को मध्य प्रदेश की ‘धार्मिक राजधानी’ होने का दर्जा हासिल हो गया है। और हो सकता है कि जल्दी ही कुछ और शहर इस तरह के तमगे हासिल कर लें और तब मध्यप्रदेश को ‘राजधानियों का प्रदेश’ होने का तमगा हासिल हो जाए। हालांकि मुख्यालयों के ऐसे स्थान परिवर्तन का कितना लाभ और कितनी हानि है, यह बहस का विषय बन गया है।मध्यप्रदेश में आबकारी और परिवहन के प्रशासनिक मुख्यालय ग्वालियर में संचालित हैं। तो लैंड रिकार्ड का मुख्यालय भी ग्वालियर में है। हालांकि इनके कैंप कार्यालय राजधानी भोपाल में हैं। इसी तरह से आयुक्त वाणिज्य कर का मुख्यालय इंदौर में हैं। और इसी कड़ी में धार्मिक न्यास और धर्मस्व विभाग का मुख्यालय उज्जैन में होने का फैसला कर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने महाकाल के धाम को धार्मिक राजधानी का दर्जा दे दिया है। हालांकि यह बात भी तय है कि इसका एक कार्यालय भोपाल में भी रहेगा और आईएएस अफसरों का भोपाल-उज्जैन आवागमन निर्बाध रूप से चलता रहेगा। चूंकि ज्यादातर बैठकों का आयोजन और अन्य शासकीय कार्य भोपाल में होने के चलते यह अभ्यास अनिवार्य है। सो दूसरे मुख्यालयों की तरह ही धार्मिक मुख्यालय के अफसरों, मातहतों की राजधानी धर्म यात्राओं का सिलसिला चलना स्वाभाविक है।

एक नजर डाल लें कि मुख्यमंत्री ने क्या-क्या फैसले लिए हैं? पहला धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग का मुख्यालय उज्जैन से होगा संचालित होगा। इसके साथ ही उज्जैन के इतिहास में नए अध्याय की शुरूआत हो गई है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने सभी पदों के साथ दो नए थानों की स्थापना की घोषणा की है। इसमें 400 होमगार्ड सैनिकों के पद स्वीकृत किए गए हैं। डॉ. यादव का मानना है कि उज्जयिनी कई गुना फल देने वाली नगरी है। हजारों वर्ष से उज्जैनी की एक अलग पहचान है। काल के प्रवाह में समय बदलता है। हर काल, हर युग, हर कल्प, हर समय और हर अवस्था में अगर इसी नगरी का अस्तित्व मिलता है, तो यह हमारी प्यारी नगरी अवंतिका है, जिसका हर युग में हर समय अपना अस्तित्व रहता है। उज्जैन में धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के संचालनालय का शुभारंभ इसकी गवाही देता रहेगा। उज्जैन के अनेक नाम हैं। एक नाम अवंतिका भी जिसका कभी अंत नहीं हुआ। एक नाम अमरावती जिसका अमरता से संबद्ध है। एक नाम पदमावती है यानी भगवान विष्णु की प्रिय नगरी। कनकवती, कुसुमवती, कनकश्रंगा अलग-अलग नाम से यह जानी गई। जब यहां स्वर्ण शिखर रहे होंगे तब इसे कनकश्रंगा कहा जाता था। अब उज्जयिनी है यानी उत्कृष्ट नगरी। यहां जो जितनी साधना करता है उससे कई गुना ज्यादा देने वाली नगरी उज्जयिनी है।

तो अब धार्मिक कमिश्नरी का नया कार्यालय उज्जैन से संचालित होगा। बाबा महाकाल सहित सभी देव स्थानों के लिए धनराशि की मंजूरी इसी विभाग से होती है। मंदिरों के रख-रखाब की मंजूरी होती है। देव स्थान के लिए जाने वाली धर्मयात्राओं का संचालन इसी विभाग से होता है। मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना के लिए सूची का चयन और अन्य व्यवस्था भी यही विभाग करता है।

इतिहास में जुड़े इस नए अध्याय का स्वागत है। पर इस बात पर भी मंथन जरूर होना चाहिए कि क्या ऐसे सभी बिखरे कार्यालयों को राजधानी भोपाल में रखना प्रशासनिक जरूरतों की पूर्ति में ज्यादा कारगर साबित होगा? यदि मंथन यह बताए कि ऐसे फैसले प्रशासनिक हित में नहीं हैं, तो सरकार को इतिहास बनाने की दृष्टि से ऐसे फैसले लेने से बचना चाहिए…।