गणगौर का पर्व भक्ति श्रृंगार और लोकगीत से जुड़ा है, जिसके गीत जीवन में उमंग भरते है। साथ ही प्रकृति और संस्कृति को एक सूत्र में बांधते है। गणगौर हमें सभी को प्रेम के बंधन में जोड़ने की सीख भी देता है। गणगौर माता के गीतों में जीवन का हर रंग दिखाई देता है। परिवार के साथ कैसे सामंजस्य बैठाना है। किस तरह रिश्तों को निभाना है उसकी सीख इन गीतों में होती है।
हमारे देश की खूबसूरती हमारे तीज- त्योहारों से है, जो हमें प्रेम के बंधन में बांधकर रखती है। हमारी परम्पराएं हमारे संस्कार हमारे लोकपर्व में झलकते हैं, जो हमें एकता के बंधन में बांध कर रखते है। हिन्दू धर्म में त्योहारों की शुरुआत जिरोती से मानी जाती है, तो समापन गणगौर से होता है। ये पर्व स्त्री शक्ति या यूं कहें कि औरतों के पर्व है। जिनमें नारी के प्रेम, मनुहार रिश्तों के प्रति समर्पण का भाव है। ये तीज त्यौहार कहीं न कहीं हमें नारी सम्मान की ही सीख देते है। वर्तमान दौर में भले ही नारी को अबला कहकर उसका अपमान किया जाता हो पर हमारी संस्कृति में नारी सदैव पूजनीय रही है। जिसकी झलक हमारे त्योहारों में साफ देखी जा सकती है।
गणगौर पर्व वैसे तो राजस्थान और मध्यप्रदेश का मुख्य पर्व है। मध्यप्रदेश के निमाड़, मालवा में इस पर्व को उत्साह व उल्लास के साथ मनाया जाता है। इन दिनों निमाड़ की माटी में गणगौर की धूम देखी जा सकती है। नारी के सृजन, उसका श्रंगार प्रेम और न जाने कितने रूपों का एक सार है यह त्योहार। इस त्योहार में पवित्रता है। प्रेम का राग है, वात्सल्य है तो वियोग और करुणा का भाव भी है। गणगौर पर्व को सही अर्थ में समझे तो गण यानी जनमानस या लोगों का जनसमूह और गौर का अर्थ संख्या से है। गणगौर हमारे संबंधों का प्रतीक है। वर्ष भर भले परिवार परदेश में क्यों न रहे लेकिन गणगौर के पर्व पर सभी सगे-संबंधी अपनों के बीच आकर इस त्योहार को मनाते है।
पांच देवियों का प्रतीक मानकर इस पर्व को मनाया जाता है। ये देवियां अपने ससुराल से मायके अपने परिजनों से मिलने आती है। जिनमें सई बाई, लक्ष्मीबाई, गउर बाई, रोहन बाई और रनुबाई जो भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश सूर्य व चंद्रमा की पत्नियां है। इस त्योहार में हम इन्हीं शक्तियों की पूजा करते है। जो हमें कहीं न कहीं प्रकृति से जोड़कर रखती है। ये त्योहार ही है जो हमारी संस्कृति की धरोहर है। रिश्तों में मिठास घोलते है। हममें एकता का भाव जगाते है। गणगौर एक ऐसा त्योहार है जो जनमानस की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। जिसे पूरा समाज एक साथ मिलकर मनाता है।
हमारे देश में सदियों से ही स्त्री पूजा का बड़ा महत्व है। इस अनूठे पर्व में भी हमारे आराध्य भगवान को बेटी और दामाद मानकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है। गीत संगीत के जरिए माता के प्रति अपना प्रेम व्यक्त किया जाता है। भक्ति श्रृंगार और लोकगीत हमारे जीवन में उमंग भरते है। ये प्रकृति और संस्कृति को एक सूत्र में बांधते है। गणगौर भी हमें प्रेम के बंधन में जोड़ने की सीख देता है। गणगौर माता के गीतों में जीवन का हर रंग दिखाई देता है। परिवार के साथ कैसे सामंजस्य बिठाना है। किस तरह रिश्तों को निभाना है उसकी सीख इन गीतों में होती है। ननद भाभी की मीठी तकरार है, तो सास-ससुर का आदर भी गीतों के माध्यम से बताया जाता है। इन गीतों में सम्मान का भाव साफ देखा जा सकता है।
गणगौर पर्व की शुरुआत चैत्र माह की कृष्णपक्ष की एकादशी से हो जाती है। इस दिन माता के ज्वारे बोए जाते है। इन ज्वारों का इस त्योहार में बड़ा महत्व है। इन ज्वारों को पवित्रता के साथ रोपा जाता है, जिस स्थान पर इसे रोपा जाता है उसे बाड़ी कहते है, पूरे गांव में भले ही कितने भी घरों में माता की स्थापना क्यों न की जाए पर ज्वारे एक ही स्थान पर रोपे जाते है। इसमें पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। होली की राख लाकर माता के ज्वारे रोपने की परम्परा है। इस त्योहार में साफ सफाई का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। घर में स्वच्छता का वातावरण होता है।
प्रकृति प्रेम भी इस त्योहार में साफ देखा जा सकता है। पेड़ पौधों की पूजा की जाती है, माता को नये अनाज का भोग चढ़ाया जाता है। आम के फलों से श्रृंगार किया जाता है। गणगौर का त्योहार ऐसे समय पर आता है जब फसल कटकर घर आ जाती है। घर धन धान्य से भरा होता है। बहन बेटियों से घर में रौनक होती हैं। ऐसे में भक्ति शक्ति परम्परा का अनूठा पर्व है गणगौर। जो हमें प्रकृति से प्रेम और आपसी सामंजस्य बिठाने का संदेश देता है।