रामनवमी पर विशेष:सर्वप्रिय लोकहितकारी भगवान श्रीराम
भारतीय मानस पटल पर आदर्श रूप में विद्यमान भगवान श्रीराम जी की छवि से आलोकित पवित्र अयोध्या नगरी का अब स्वर्णीम दौर में है। हो भी क्यों ना यश कीर्ति और वैभव से आच्छादित अयोध्या धाम में वर्षों के संघर्ष के उपरांत अब रामलला अपने स्वगृह भवन में प्रतिष्ठित हैं।सर्वप्रिय लोकहितकारी भगवान श्रीराम कुलपरम्परानुसारनहीं अपने मन मोहक स्वभाव से जनमानस में विराजित है।तपस्वी, त्यागी, लोकहिताचारी, प्रजापालक,नीति रक्षक आदि सद्गुण श्रीराम के व्यक्तित्व को मर्यादित करते हैं। श्रीरामचरित मानस में कहा गया
“सीय राममय सब जग जानी।*करऊँ प्रनाम जेरि जुग पानी।”
(बालकाण्ड)
श्री रामचरित मानस एक ग्रन्थ नहीं,वह भारतीय जन मानस पटल पर अंकित एक पवित्र विचार है जो उन्हें अटूट श्रद्धा,आस्था ,त्याग,तपस्या,
समन्वय की और सहजता से मोड़ता है। राघव, राजीव,कौशलेन्द्र, कौशल्यानन्दन,दशरथनन्दन, राघवेन्द्र,रघुवीर,रघुपति,रामभद्र, ह्रषिकेश, आजानबाहु,सीतापति,श्रीपति आदि नामों से भी श्रीराम के विभिन्न स्वरूपों को निहारा जाता है।गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस, कवितावली,दोहावली, उत्तर रामचरितमानस आदि ग्रन्थों के माध्यमसे अपनी रसशक्ति लेखनी से सरल शब्द सर्जना से श्रीराम के चरित्र को जैसा प्रस्तुत किया है वह वंदनीय है। वे जब श्रीराम को राजा बना देते हैं, तब ऐसा लगता है कि राजा शब्द केवल श्रीराम के लिए ही बना है। (रघुनंदन श्रीराम)
उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाजवाद की स्थापना की है। यह सत्य है कि सामाजिक मूल्य व्यक्ति के हित और स्वार्थ केऊपर होते हैं।संत तुलसीदास कहते हैं कि श्रीरामकथा कोसच्चे अर्थों में ही वही व्यक्ति हृदयगम्य कर सकता हैजिसके पास श्रद्धा और विश्वास रूपी नेत्र होंगे।मानस का प्रत्येक कथानक मनुष्य को अंतिमलक्ष्य प्राप्त करने की प्रेरणा देता है।इसमें निहित महान आदर्श जैसे- भगवान श्रीराम कापितृ प्रेम, माता-पिता की सेवा भावना, अटूट भातृ स्नेह भाव, स्त्री रक्षक, सदाचारी ,सत्यनिष्ठ,शाकाहारी, यात्रावर,प्रकृति वन्दन,पूर्वजों का स्तवन,विपरीत परिस्थितियों में मन पर नियंत्रण,सर्वजाति बन्धु का सहज आत्मीय वंदन,सार्थक उद्देश्य कारण,सर्वहितैषी,न्याय पालक,लोकरक्षक,दुःख भजक के रूप अनुकरणीय है।समाज में हर स्वजनों को चाहिए कि वह मानस में निहित सदाचार के नियमों का पालन करें।
जनशिक्षा के लिए श्रीरामचरित मानस में अनेक विज्ञानों के माध्यम से मनुष्य को सीख दी गई है।भौतिक शास्त्र के अनुसार अणु एवं परमाणु की संकल्पना मानस में साकार लगती है। तत्व, अणु एवं परमाणु का ही समन्वय है। (अणु एवं परमाणु) यह दोनों ही विभिन्न अभिक्रियाएं नवीन उत्पाद को जन्म देती है।मानस के अनुसार-
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।” किष्किंधा कांड में वर्णन करते हुए कहा गया है कि- मानव देह अग्नि ,आकाश ,बिजली ,पानी, हवा,पांच तत्वों से मिलकर बना है।ये पंच तत्व भी अणु और परमाणुओं के समन्वयक ही है। इसी प्रकार समाजशास्त्र का संबंध आधुनिक और जनजातीय समाज के अध्ययन से मानस में सामाजिक संकल्पना का वर्णन मिलता है। इसमें विवाह पद्धति वैदिक और लौकिक सब रीतियों से विवाह संपन्न होता है बारातियों की भोजन व्यवस्था भी बहुत सुंदर वर्णन देखने को मिलता है- “पंच केवल करि जेबन लागे।
गारि गान सुनी अति अनुरागे।
भांति अनेक परे पकवाने
सुधा सरिस नहिं जाहि बखाने।।
बालकांड में यह वर्णन मिलता है कि सब लोग पंच कौर करके (प्रणाय स्वाहा ,व्यानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा और समानाय स्वाहा )इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए पहले ग्रास लेकर भोजन करते है। अनेक तरह से अमृत के समान स्वादिष्ट पकवानों का भोजन परोसे गए ।
भारत में आध्यात्मिकता का भाव कण-कण में विद्यमान है। पवित्र देव ,ऋषि मुनियों,तपस्वियों की तपोभूमि रही है। सनातन परंपरा के ध्वज वाहक के रूप में भारत देश की पहचान सदा बनी है।इन्हीं सकारात्मक भावपूर्ण भक्तिपूर्ण वातावरण अनेक वर्षों तक धर्म पताका लहराता रहेगा ।श्रीराम रूपी दिग्दर्शन सदा धरा पर बना रहेगी।
“हरि अनंत हरि कथा अनंता
कहहिं सुनहिं बहू विधि सब संता।।
-डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय
शिक्षाविद,लेखक,इंदौर