
सियासत के सितारे:Silent Organiser: भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की चर्चा में संजय जोशी: पर्दे के पीछे का ताकतवर खिलाड़ी
– राजेश जयंत
भारतीय जनता पार्टी में संगठनात्मक बदलाव की चर्चाओं के बीच संजय जोशी का नाम एक बार फिर सुर्खियों में है। कभी गुजरात और यूपी जैसे राज्यों में पार्टी को मजबूत करने वाले संजय जोशी लंबे समय से पर्दे के पीछे सक्रिय हैं। मोदी-शाह युग में भले ही उन्हें साइडलाइन कर दिया गया हो, लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं और संघ के कई वरिष्ठ प्रचारकों के बीच उनकी पकड़ आज भी मजबूत है।

संजय जोशी “साइलेंट ऑर्गेनाइजर” मूल रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं और भाजपा संगठन में उनका सफर तीन दशकों से भी ज्यादा लंबा है। गुजरात में संगठन को खड़ा करने, यूपी में पार्टी को विस्तार देने और जमीनी कार्यकर्ताओं को जोड़ने में उनकी अहम भूमिका रही है। यही वजह है कि भाजपा के मिडिल लेवल नेताओं और पुराने कार्यकर्ताओं में आज भी उनकी लोकप्रियता बनी हुई है।

मोदी से मतभेद के चलते उन्हें 2012 के बाद संगठन से बाहर कर दिया गया, लेकिन उन्होंने कभी खुलकर बगावत नहीं की। इसके बजाय, वे चुपचाप कार्यकर्ताओं से संपर्क बनाए रखते रहे और संगठन के भीतर “साइलेंट लॉबी” को मजबूत किया। संघ के कुछ वरिष्ठ प्रचारक और पुराने भाजपा नेता आज भी उन्हें “मीडिया से दूर, जमीनी नेता” मानते हैं, जो पार्टी की रीढ़ माने जाते हैं।

नितिन गडकरी जैसे नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध हैं, जो कभी मोदी की कार्यशैली से असहमत रहे। यूपी, गुजरात और मध्य भारत के कई पुराने कार्यकर्ता भी संजय जोशी के साथ खड़े नजर आते हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत है- संगठन में गहरी जड़ें, व्यक्तिगत ईगो से ऊपर रहना, और कार्यकर्ताओं के बीच सीधा संवाद।
संजय जोशी ने कभी खुद को प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं बनाया, बल्कि हमेशा संगठन में रहकर पार्टी को मजबूत किया। यही वजह है कि जब भी भाजपा में संगठनात्मक बदलाव की चर्चा होती है, संघ के कुछ धड़े उनका नाम आगे बढ़ाते हैं।
हालांकि, भाजपा अध्यक्ष या संघ प्रमुख बनने का फैसला पूरी तरह शीर्ष नेतृत्व- मोदी, शाह और संघ के टॉप ब्रास की मर्जी पर निर्भर है। फिलहाल उनके नाम को लेकर सिर्फ अटकलें और चर्चाएं हैं, लेकिन पर्दे के पीछे उनकी ताकत और नेटवर्क को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
*हालिया घटनाक्रम और ताजा बयान:*
2024 लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा नेतृत्व में बदलाव की चर्चाओं ने संजय जोशी को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भाजपा और संघ के बीच लगातार मंथन चल रहा है। सूत्रों के मुताबिक, संघ के कुछ धड़े संजय जोशी को संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका देने की वकालत कर रहे हैं, खासकर जब पार्टी को जमीनी स्तर पर दोबारा मजबूती देने की जरूरत महसूस हो रही है। इसी दौरान दिल्ली, लखनऊ और अहमदाबाद जैसे शहरों में उनके समर्थकों ने पोस्टर लगाए, जिनमें उन्हें “संगठन का असली स्तंभ” बताया गया।
इस पर संजय जोशी ने सोशल मीडिया पर बयान जारी किया- “नरेंद्र मोदी मेरे और पार्टी के नेता हैं, मैं संगठन की एकता में विश्वास करता हूं। कृपया मेरे नाम पर कोई भ्रम या पोस्टर वार न करें, इससे पार्टी को नुकसान होता है।”
इसके अलावा, मई 2025 में अपने सोशल मीडिया अपडेट में भी उन्होंने लिखा- “पार्टी और कार्यकर्ता ही मेरी असली ताकत हैं। मैं हमेशा संगठन और देशहित में काम करता रहूंगा।”
हाल ही में एक निजी बातचीत में जोशी ने कहा- “मेरा लक्ष्य पद नहीं, पार्टी को मजबूत करना है। अगर शीर्ष नेतृत्व मुझे कोई जिम्मेदारी देता है तो मैं उसे पूरी निष्ठा से निभाऊंगा।”
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि पार्टी के भीतर चल रही खींचतान और जमीनी स्तर पर उत्साह की जरूरत के इस दौर में संजय जोशी जैसे अनुभवी संगठनकर्ता की वापसी पर गंभीरता से विचार हो रहा है। हालांकि, भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा- “अध्यक्ष पद पर फैसला पूरी तरह सामूहिक सहमति और संगठन की जरूरतों के हिसाब से होगा। संजय जोशी जैसे नेता पार्टी के लिए पूंजी हैं, भले ही वे पद पर हों या न हों।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा की मौजूदा चुनौतियों के बीच, संजय जोशी जैसे अनुभवी संगठनकर्ता की भूमिका और अहम हो सकती है, खासकर जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच संवाद और उत्साह बढ़ाने में।
निष्कर्षतःऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि शीर्ष नेतृत्व उन्हें दोबारा जिम्मेदारी देता है या नहीं….?





