

प्रदेश व्यापी गिद्ध गणना 2025 सम्पन्न, जिले में वृद्धि के साथ आंकड़ा एक हजार पार हुआ
मंदसौर से डॉ घनश्याम बटवाल की रिपोर्ट
मंदसौर। जिले में 17 फरवरी से प्रारंभ हुई तीन दिवसीय शीतकालीन गिद्ध गणना बुधवार को संपन्न हो गई है। इसमें गिद्धों की संख्या में वृद्धि दर्ज हुई है । यह गणना 17 से 19 फरवरी तक प्रतिदिन सुबह के सत्र में की गई। इस दौरान वन एवम राजस्व क्षेत्रों जहाँ पर गिद्धों की उपस्थिति देखी गई, जिसमें वन विभाग अधिकारी-कर्मचारी और वॉलंटियर्स तैनात रहे। चंबल नदी से लगे ऊंचे चट्टानी क्षेत्रों, वन एवं राजस्व क्षेत्र में गिद्धों की गणना की गई। इसमें अपस्ट्रीम और डाउन स्ट्रीम कैचमेंट एरिया में गणना की गई।
त्रिदिवसीय गिद्ध गणना में मंदसौर जिले में प्रथम दिवस कुल 728, द्वितीय दिवस कुल 992 एवं तृतीय दिवस कुल 1007 गिद्धों की गणना में उपस्थिति दर्ज हुई। इस गणना कार्य में बैठे हुए गिद्धों की ही गणना की गई।
यह संख्या गत वर्ष की तुलना में अधिक है, वनमण्डल, स्वयंसेवकों, ग्रामीणों और जलवायु परिस्थिति अनुकूलता से दुर्लभ प्रजाति के गिध्द पाए गए हैं और पिछले सालों की अपेक्षा इस साल संख्याओं में इज़ाफ़ा हुआ है। चालू गणना में आंकड़ा एक हजार पार होगया है यह अच्छा सूचक है।
हालांकि प्रदेश के अंतिम आंकड़े आना शेष है पर मंदसौर जिले में गिद्धों की संख्या में वृद्धि प्रदेश के अग्रणी जिलों में शुमार होना तय है।
इस तीन दिवसीय सर्वेक्षण में सात प्रजातियों के गिद्धों की पहचान की गई, जिनमें भारतीय गिद्ध (लंबी चोंच वाला गिद्ध), सफेद पीठ वाला गिद्ध, राज गिद्ध (लाल सिर वाला गिद्ध), मिस्र का गिद्ध, काला गिद्ध, हिमालयन और यूरेशियन ग्रिफोन शामिल हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इनमें से तीन प्रजातियाँ सर्दियों के मौसम में यहाँ अनुकूल वातावरण के कारण प्रवास करती हैं।
मंदसौर जिले के गांधीसागर अभयारण्य में गिद्धों की संख्या में यह वृद्धि संरक्षण प्रयासों का परिणाम है, जिसमें डाइक्लोफेनाक, निमेसुलाइड जैसी दवा पर प्रतिबंध, अभयारण्य के आसपास लगे ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता और गिद्धों के प्राकृतिक आवास की सुरक्षा शामिल है। गिद्ध पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे मृत जानवरों को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं।
इस सर्वेक्षण में स्थानीय स्वयं सेवकों ने भी सक्रिय भागीदारी निभाई, जिन्होंने गिद्धों के महत्व और उनकी घटती संख्या के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने में मदद की। यह वृद्धि न केवल अभयारण्य के लिए, बल्कि समग्र पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है।
गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य में गिद्धों की बढ़ती संख्या से यह स्पष्ट होता है कि सही संरक्षण प्रयासों से संकटग्रस्त प्रजातियों की संख्या में सुधार संभव है।