Madure : प्रकृति के संरक्षण के लिए ‘प्रकृति’ को जीवित प्राणी का दर्जा देने के लिए संरक्षक के क्षेत्राधिकार का उपयोग करते हुए उसे जीवित व्यक्ति के सभी अधिकार, कर्तव्य और दायित्व सौंपे हैं। यह फैसला मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) ने किया।
High Court की मदुरै पीठ ने तहसीलदार स्तर के एक पूर्व अधिकारी की याचिका पर अपने हाल के आदेश में प्रकृति संरक्षण को व्यापक महत्व दिया। याचिकाकर्ता ने कुछ लोगों को ‘जंगल की सरकारी जमीन’ का पट्टा (भूमि विलेख) मंजूर किया था, जिसके लिए उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई और उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर जाने का आदेश दिया गया था। याचिकाकर्ता ने इसे निरस्त करने की मांग की थी।
ए. पेरियाकरुपन की और से दायर याचिका पर अदालत ने कहा कि प्रकृति के अंधाधुंध विनाश से पारिस्थितिकी तंत्र में कई तरह की समस्याएं आएंगी और वनस्पतियों और जीव-जंतुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। न्यायमूर्ति एस श्रीमती ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के एक पूर्व के फैसले को याद किया, जिसमें उसने संरक्षक के क्षेत्राधिकार का उपयोग किया था और गंगोत्री एवं यमुनोत्री सहित ग्लेशियर को संरक्षित रखने के लिए उन्हें कानूनी अधिकारों से लैस कर दिया था।
उन्होंने कहा कि पिछली पीढ़ी ने प्रकृति मां को हमें पवित्र रूप में सौंपा है और हम इसे अगली पीढ़ी को उसी रूप में सौंपने के लिए आबद्ध हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि यह प्रकृति मां को न्यायिक दर्जा दिए जाने का उचित वक्त है। इसलिए यह अदालत ‘माता-पिता के अधिकार क्षेत्र’ को लागू करके ‘मातृ प्रकृति’ को ‘जीवित प्राणी’ के रूप में घोषित कर रही है।
याचिकाकर्ता ने अनुशासनात्मक कार्रवाई को निरस्त करने और प्रतिवादियों को उसे पूरी पेंशन तथा मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी का बकाया साढ़े सात प्रतिशत ब्याज के साथ सेवानिवृत्ति की तारीख से भुतान करने का निर्देश देने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि चूंकि मेघामलाई में विवादित भूमि का पट्टा रद्द कर दिया गया था और गांव के खाते में आवश्यक प्रविष्टियां कर दी गई थी, इसलिए सजा भी संशोधित की जानी चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि हमारा मानना है कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा को संशोधित किया जाना चाहिए।