Story of Kalidas: कालिदास और मूर्खता की कथा!

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Story of Kalidas: कालिदास और मूर्खता की कथा!

मुकेश नेमा

कालिदास के बारे मे सबसे अच्छी बात यह थी कि वे बचपन में मूर्ख थे। बाद मे कवि हुए। वैसे उन्होने कविताओ के अलावा नाटक भी लिखे।इससे हमारे यहाँ के लेखन मे दिलचस्पी रखने वाले इस नतीजे पर पहुँचे कि मूर्ख कुछ भी कर सकता है। मूर्ख चाहें तो कविता करे। चाहे तो नाटक लिखे , कोई भी उसका हाथ नही पकड सकता। मूर्खता वैसे तो पूरी अधिकारिता से जीवन के हर क्षेत्र मे पैर पसार सकती है परन्तु कविता उसके लिए सबसे उपयुक्त स्थान है। कालिदास इस बात के प्रमाण पत्र हैं कि जो बचपन मे मूर्ख हो उसके युवावस्था में कवि हो जाने की संभावनाये अधिक भीषण होती हैं।

अब कालिदास मूर्ख होने के कारण कवि हुए या कवि होने भर से उन्हे मूर्ख मान लिया गया। वे मूलत: मूर्ख ही थे या पाठको मे अपने प्रति नाटकीय उत्सुकता पैदा करने के प्रयोजन से उन्होने खुद यह कहानी गढ़ी,इस पर भारतीय साहित्य वालो को ,मेरी अध्यक्षता में एक अलग से गोष्ठी कर विचार करना चाहिये।

पर यह तो तय है कि कालिदास भारतीय साहित्य के अनेकानेक लेखको ,कवियो की प्रेरणा बने ।बहुतों ने कालिदास के बचपन मे मूर्ख होने वाली कहानी सुनी। जिन्हें अपने मूर्ख होने पर कोई संदेह नही था वे उत्साह मे आकर साहित्य पर चढ बैठे। उन्होंने बहुत कुछ लिखा। लगातार लिखा। इस विश्वास के साथ लिखा कि वे जो लिख रहे है वो साहित्य है। अब ये बात अलग है कि पढने वाले उनसे सहमत नही रहे। हमारा साहित्य आज जितनी भी समृद्ध दिखता है आपको उसके पीछे ऐसे ही उत्साही लोगो द्वारा मूर्खतावश किया गया परिश्रम है। वैसे भी कालिदास अकेले क्या कर लेते साहित्य के लिए ।ऐसे मे मुझ जैसे लोग आगे आये और साहित्य को अनिच्छावश ही सही पर समृद्ध होना ही पड़ा।

लोगो को कालिदास के मूर्ख होने वाली धारणा पर भरोसा है। वे पेड की जिस डाल पर बैठते थे उसी पर कुल्हाडी चलाते देखे गये थे। बस इतनी सी बात पर वे मूर्ख मान लिये गये। अब भी ऐसा होता है। आजकल भी लोग जिसके भरोसे बडे बनते है सबसे पहले उसे ही निपटाते हैं। पर आजकल ऐसा करने वालो के पास कवि होने के अलावा ,नेता ,बिजनेसमेन होने के अलावा वो जो भी होना चाहे ,होने की बेहतर गुंजाईश है।

कालिदास की कथा से एक और तथ्य स्थापित हुआ। लिखने वालो को भी एकाध गॉडफादर रखना चाहिए। वररूचि जैसा गॉडफादर मिले तो आदमी कवि बनने के अलावा बडे आदमी का दामाद भी बन सकता है। बडे आदमी का दामाद हो जाना लेखन कार्य का चरमोत्कर्ष है।
कालिदास के कालिदास होने का क्रैडिट वररूचि को इसलिये भी है क्योकि कालिदास के पिताजी ने उन्हे पैदा करने के अलावा और भी कुछ किया हो ऐसा कही पढने को मुझे अब तक मिल नही सका है।

मूर्ख कालिदास अपनी तीखी कुल्हाडी और तेज पंडित वररूचि की कृपा से ,विद्योत्तमा जैसी तिलोत्तमा सुंदरी के पति और उज्जैयनी के राजा विक्रमादित्य के दामाद हुए। और दामाद होने के नाते उन्होने अपने हर श्लोक के लिये अपने ससुर से लाख लाख तक स्वर्णमुद्राये झटकी। उनमें से बहुत से श्लोक तो ऐसे भी थे जिनके लिये आजकल के प्रकाशक दमडी भी ना दे।स्वर्णमुद्राओ की आवक से एकाएक विद्वान हुए कालिदास ने लिखना तभी बंद किया जब ससुर ने उन्हे खजाना पूरी तरह से खाली होने की सूचना दी।

कालिदास हमारे देश के उपलब्ध इतिहास अनुसार एकमात्र ऐसे व्यक्ति है जो विवाह उपरान्त मूर्ख से बुद्धिमान हुए। और जो केवल कविताये लिखने भर से एक विदुषी महिला के पति होने के अतिरिक्त करोडपति भी हो सके।
कविकुलगुरू महाकवि कालिदास के बाद हमारे देश मे जितने भी दामाद हुये वे कालिदास के पदचिन्हो पर चले । उनके द्वारा ससुर का यथासंभव धनहरण किया गया।अब ऐसा करने के लिये मूर्ख या कवि होना भी आवश्यक नही रह गया है।

इस प्रसंग से हमे यह भी शिक्षा मिलती है कि स्वर्णमुद्राओ का लेखन से सीधा संबंध है। स्वर्ण मुद्राएं गाँठ मे हो तो बंदा दर्जन भर घोस्ट राईटर नौकरी पर रख सकता है। उनके लिखे को अपने नाम से प्रकाशित करवा कर अपने मुद्रा कोष में और इज़ाफ़ा कर सकता है। यह सब संभव न हो तो लेखक को अपनी तरफ से पूरी कोशिश करना चाहिये कि उसे कोई गाँठ का पूरा ,प्रतिष्ठित प्रकाशक बतौर ससुर हासिल हो जाए। आप अपना लिखा प्रकाशित करवा सके और उससे यथोचित पारश्रमिक भी अर्जित कर पाये उसके लिये किसी सुयोग्य प्रकाशक की सुंदर कन्या का पति होना सर्वश्रैष्ठ उपाय है।

कहते है कुमारसंभव मे कालिदास महादेव पार्वती के अंतरंग समय का कुछ इतना अधिक विशद वर्णन कर बैठे कि पार्वती उनसे कुपित हो गयी और उन्हे स्त्री संसर्ग से मृत्यु होने का शाप दे दिया। हालाँकि ये शाप था मुझे इस पर पर्याप्त संदेह है। कालिदास ने इस शाप के बहाने ससुरजी के धन का पूरा सदुपयोग किया। देश विदेश घूमे। सुंदर महिलाओं और सुंदर स्थानो को निकटता से देखा। उनकी गहन दृष्टि ने मेघदूत रचा। पर भारत भर से राजी हुये नही वो।सीलोन जा पहुँचे और वहाँ एक अप्सरा सी महिला के घर को गलती से स्वर्ग समझ कर वहीं स्वर्गवासी हुए।

पार्वती जी छटवी से दसवी शताब्दी के बीच जीते रहे कालिदास को शाप देकर ठीक ही किया। यदि वे ऐसा नही करती तो ये कवि हमारी वाली शताब्दी तक जीते रह सकते थे।और उनका होना हमारे आज के कवियो को हीन भावना मे डुबो कर मार सकता था।

कुल मिलाकर कालिदास के प्रेरणास्पद कृतित्व और व्यक्तित्व से भारतीय साहित्य और भारतीय दामाद सकारात्मक रूप से लाभान्वित हुए।इसीलिये मै बतौर लेखक और दामाद उनका आभारी हूँ।