लालू प्रसाद यादव की कहानी- एक हंसमुख लेकिन दुखांत नायक

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पूर्व IPS एनके त्रिपाठी की त्वरित टिप्पणी                         रांची सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू प्रसाद यादव को दोषी ठहराते हुए 5 साल की सजा सुनाई है। यह केस आरसी/47ए/96 कुख्यात चारा घोटाले में 139.5 करोड़ के गबन का है जो लालू के विरुद्ध इस अदालत का पांचवां और आखिरी ( एक अभी भी पटना में है) प्रकरण है। इस मामले में कुल 38 जीवित दोषी हैं। लालू पहले ही चार मामलों में कारावास की सजा पा चुके हैं। चौथे मामले में उन्हें आईपीसी में 7 साल और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में 7 साल की सजा सुनाई गई और वह भी पहले सात साल के बाद फिर दूसरी सात साल की सज़ा थी। हालांकि भारतीय न्यायिक सेवा प्रणाली में यह आश्चर्य की बात नहीं है कि पहले ही मामले में उनकी अपील अभी भी लंबित है। वर्तमान सजा में वे जेल जाएंगे और जमानत के लिए आवेदन करेंगे और अपील दायर करेंगे। चूंकि उनका स्वास्थ्य वास्तव में खराब है, इसलिए उन्हें एम्स रांची में रखा जाएगा। झारखंड सरकार को लालू का समर्थन प्राप्त है, इसलिए उन्हें एम्स में व्यक्तिगत आराम की कोई कमी नहीं होगी। याद कीजिए पिछली बार जब वह एम्स में थे तब वे निदेशक के बंगले में रह रहे थे। फिर भी कारावास हमेशा दर्दनाक होता है।

लालू सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय भारतीय नेताओं में से एक हैं। अति साधारण पृष्ठभूमि से आये लालू यादव का एक उल्लेखनीय करियर रहा है। फुलवरिया, गोपालगंज में जन्मे लालू पढ़ाई के लिए पटना चले गए, जहां वे अपने बड़े भाई के साथ रहते थे जो वेटरनरी कॉलेज में चपरासी थे। लालू भी उसी पशु चिकित्सा महाविद्यालय में लिपिक बने (विडंबना यह है कि लालू पशु चिकित्सा विभाग के लिए ही जेल गये हैं)। 1970 में, लालू ने पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव के रूप में छात्र राजनीति में प्रवेश किया, 1973 में इसके अध्यक्ष बने और 1974 में जेपी आंदोलन में सम्मिलित हुए। वे जनता पार्टी के नेताओं के काफी करीब हो गए। उन्हें 1977 में छपरा से संसद का उम्मीदवार बनाया गया , जिसे उन्होंने 29 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के व्यक्ति के रूप में जीता था।

1990 में बिहार में जनता दल सत्ता में आया। राम सुंदर दास और रघुनाथ झा मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे थे। हालांकि किस्मत लालू प्रसाद यादव पर तब खिली जब देवीलाल ने उन्हें समझौते का उम्मीदवार बनाया। बहुत शीघ्र लालू ने 23 सितंबर, 1990 को अपना साहस दिखाया, जब उन्होंने अयोध्या की राम रथ यात्रा के दौरान समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। इसने उन्हें बिहार के लोगों के बीच एक धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में स्थापित कर दिया। लालू सात साल तक मुख्यमंत्री रहे और इसी अवधि में चारा घोटाला हुआ। पशु चिकित्सा विभाग की बड़ी राशि सरकारी कोषागारों से फर्जी कंपनियों को चारा, दवा व उपकरणों के फ़र्ज़ी बिलों पर दी गई। 1997 में जब जांच के दौरान लालू को जेल भेजा गया तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को पार्टी में अपना दबदबा दिखाते हुए मुख्यमंत्री बना दिया। राबड़ी 2005 तक तीन बार में लगातार मुख्यमंत्री रहीं। लालू बिहार के नेता बने रहे और बाद में यूपीए सरकार में रेल मंत्री बने।

लालू ने पिछड़ी जातियों और मुस्लिम के वोटों को एकजुट किया, जो यूपी में मुलायम सिंह यादव ने किया था। वे एक लोकलुभावन नेता थे और बहुत ख़राब शासन के बावजूद सफल रहे। रेलवे में उन्होंने वित्तीय स्थिति को छुपाया लेकिन उन्होंने गरीब रथ जैसी ट्रेनें शुरू कीं। कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल लालू का सम्मान करते हैं।

लालू उन चंद दुर्भाग्यपूर्ण नेताओं में से एक हैं जो भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए। हालाँकि भ्रष्टाचार का व्यावहारिक दैनिक जीवन में कोई महत्व नहीं है। राजनेताओं के भ्रष्टाचार को जब तक यह सामान्य लोगों को चोट नहीं पहुँचाता है इसे जीवन की एक पद्धति के रूप में स्वीकार और सम्मानित किया जाता है। सिद्ध भ्रष्टाचार के पांच अलग-अलग मामलों में सजा के बावजूद लालू अपने समर्थकों के प्रिय बने रहेंगे और उनका परिवार फलता फूलता रहेगा। वे एक मामूली परिवार से आने वाले तथा शुरुआत में आदर्शवादी नेता थे परन्तु धन इकट्ठा करने और अपने वंश को बढ़ाने का एक विशिष्ट उदाहरण बन गए है। फिर भी राजनीतिक रूप से और सामाजिक न्याय के मसीहा के रूप में वे बेहद सफल रहे हैं। लेकिन वृद्धावस्था में उन्हें कारावास भुगतना पड़ रहा है। वे हमेशा जनता के बीच बहुत खुशमिजाज रहे थे, लेकिन निश्चित रूप से एक दुखांत नायक के रूप में इतिहास में जाने जायेंगे । शुरुआती उदय में बेहद भाग्यशाली, वे अपने स्वयं के विरोधाभासों के कारण कानून के साथ टकराव के कारण दुर्भाग्यशाली रहे।