Struggling For Water: दुर्गम पहाड़ों के बीच मौजूद प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी ढोने को मजबूर हैं 100 आदिवासी परिवार
राजेश चौरसिया की विशेष रिपोर्ट
छतरपुर : जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर किशनगढ़ क्षेत्र के आदिवासी अंचल पाठापुर गांव के 100 से अधिक आदिवासी परिवार इन दिनों भीषण जलसंकट से जूझ रहे हैं। गांव में जल स्रोत न होने के कारण इन परिवारों के पन्ना टाइगर रिजर्व के दुर्गम पहाड़ों में मौजूद प्राकृतिक जलस्रोतों से पानी ढोना पड़ रहा है, जो कि लोगों के लिए किसी जंग के बराबर है।
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खतरनाक पथरीले रास्तों पर जान जोखिम में डालकर पाठापुर के ग्रामीण पहाड़ी से रिसने वाले पानी को अपने घरों तक ला रहे हैं। पानी के लिए ग्रामीण को लगभग 2 से 3 किलोमीटर की दूरी तय करके जंगल जाना होता है और इसके बाद खतरनाक पहाड़ी रास्ते से कुप्पों में पानी भरकर वापिस लाना होता है। इस दौरान ग्रामीण रस्सी के सहारे कुप्पों को पहाड़ों पर चढ़ाते हैं, वहीं कुछ लोग पथरीले सीढ़ीनुमा रास्तों से होकर गांव तक वापिस आते हैं।
पानी के लिए मशक्कत करने वाले इन लोगों के लिए सदैव खतरा बना रहता है, साथ ही जंगल के हिंसक वन्य जीवों से भी बचना इनके लिए एक चुनौती होती है।
मूलभूत सुविधाओं के लिए मोहताज पाठापुर गांव के आदिवासियों का कहना है कि गांव में जलसंकट इतना गहरा चुका है कि अब पानी लेने में ही उनका पूरा समय निकल रहा है। न तो मजदूरी कर पा रहे हैं और न ही घर के अन्य काम। जिम्मेदार अधिकारियों से कई बार पानी के लिए गुहार लगाई जा चुकी है लेकिन वहां से भी निराशा ही हाथ लगी। ऐसा नहीं है कि पाठापुर गांव के जलसंकट की जिम्मेदार अधिकारियों व स्थानीय अमले को खबर नहीं लेकिन उनकी अनदेखी के चलते उपेक्षा का दंश गरीब आदिवासी वर्ग को झेलना पड़ रहा है।