सुनक ऋषि: क्या यह भारत का पश्चिम में सूर्योदय है

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सुनक ऋषि: क्या यह भारत का पश्चिम में सूर्योदय है

सुनक ऋषि: क्या यह भारत का पश्चिम में सूर्योदय है

रमण रावल

कोई इसे अतिरंजना माने तो माने,मैं तो सुनक ऋषि के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने के मसले पर ऐसा ही सोचता हूं। कहते हैं इतिहास अपने को दोहराता है। तो समझ लीजिये कि वह चक्र पूरा होने जा रहा है। निश्चित ही इस बार तौर-तरीके साम्राज्यवादी न होकर लोकतांत्रिक हैं। भारतीय मूल के सुनक के पालक ने जब भारत के पंजाब से पहले अफ्रीका, फिर 1960 में ब्रिटेन का रूख किया था, तब कहीं से कहीं तक उनके मन में ब्रिटेन पर राज करने का सपना नहीं था। वे बेहतर आजीविका के लिये अपनी मिट्‌टी से अलग हो रहे थे। आज के दौर में विक्टोरिया कालीन मानसिकता रखी ही नहीं जा सकती,फिर भी यह तो मानना पड़ेगा कि संयोग भी क्या खूब होते हैं। जिस देश के राजाओं ने भारत ही नहीं दुनिया के दर्जनों मुल्कों को गुलाम बनाकर राज किया, क्या कभी उनके मन में कहीं ये ख्याल आया भी होगा कि उस गुलाम देश का एक होनहार उनकी प्रजा का पालक बनकर उभरेगा? इस तरह के पल ही इतिहास में दर्ज होते हैं और इन संयोगों से ही इतिहास बनते-बिगड़ते हैं। ऐसा ही संयोग तब भी आया था,जब एक दशक पहले भारतीय मूल के ब्रिटिश उद्योगपति संजीव मेहता(गुजराती) ने उस ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीद लिया था,जो चोर दरवाजे से भारत में व्यापार करने सत्रहवीं शताब्दी में आई थी और बाद में ब्रिटिश साम्राज्य की राजनीतिक एजेंट बनकर रियासतों पर कब्जे करने लग गई। उस कंपनी और उस मुल्क के मुखिया भारत के मूल निवासी हैं। कैसा अद्भुत संयोग है। विश्व गुरु बनने के पथ पर अग्रसर होते भारत के कदम।

महारानी विक्टोरिया के शासनकाल के बारे में कहा जाता था कि उनके राज में कभी सूर्यास्त नहीं होता। जिसका मतलब यह था कि उनके शासनाधीन देश इतने थे कि कहीं सूर्यास्त हो रहा होता तो कहीं सूर्योदय हो रहा होता था। उन पश्चिम वालों ने पूर्व वाले देश पर राज किया था तो आज उसी भारत के बेटे ने पश्चिम में भारत का सूर्योदय कर दिया। यह सही है कि सुनक का भारत से सीधा और ज्वलंत रिश्ता नहीं रहा। कभी अपने पूर्वजों का देश तो अब साथ में ससुराल वाला मुल्क होने के नाते भारत से उनके तार जुड़े रहे।वे भारत के प्रख्यात उद्योगपति व समाजसेवी नारायण मूर्ति के दामाद हैं। उनकी बेटी अक्षता के पति हैं सुनक। वे जरूर ब्रिटेन में पैदा हुए, पले-बड़े, लेकिन वे भारत के ही रक्त बीज हैं।

अब जबकि दुनिया एक बड़ा बाजार बन चुकी है या मुट्‌ठी में कैद होकर रह गई है, तब भी यह बात उतनी ही मायने रखती है, जितनी अट्‌ठारहवीं सदी में कंपनी सरकार के भारत में राज करने के समय रखती थी कि कोई विदेशी आकर राजसत्ता या कारोबार पर छा जाता है। हम इसके लिये ब्रिटन की राजनीतिक व्यवस्था,शासन प्रणाली की तारीफ कर सकते हैं जहां एक पाकिस्तानी मूल का व्यक्ति लंदन का महापौर(सादिक खान) हो सकता है और भारत मूल का व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री भी हो सकता है। याद रहे,इंदौर के राजेश अग्रवाल लंदन के उप महापौर हैं।

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सुनक ऋषि विधिवत रूप से 28 अक्टूबर को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चुन लिये जायेंगे। यूं तो मॉरीशस,फिजी जैसे द्वीप समूहों के देशों में भारतीय मूल के प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति बनते रहे हैं, लेकिन सुनक की बात इन सबसे अलग इस मा्यने में है कि वे मौजूदा पीढ़ी से एक पायदान पहले के ही हैं और इक्कीसवीं सदी में उस देश के मुखिया बनने जा रहे हैं, जिसने अतीत में उनके अपने देश पर दो सदी तक राज किया । कमोबेश ज्यादातर कामयाब व्यक्ति की तरह सुनक व उनके परिवार का सफर भी आसान नहीं रहा। चिकित्सक पिता के पुत्र होने के बावजूद सुनक को अपनी उच्च स्तरीय पढ़़ाई के लिये रेस्त्रा्ं में वेटर तक बनना पड़ा। 42 वर्षीय सुनक को बचपन में सनक की हद तक स्टार वार्स के सुपर हीरो का जीवन पसंद था और सोचते भी यही थे कि वे एक दिन सुपर हीरो जरूर बनेंगे, लेकिन यकीनन उसका स्वरूप उस देश के प्रधानमंत्री का होगा, जहां वे रहते हैं, यह तो कल्पना नहीं रही होगी।

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वे सुनक ही थे कि अभी महज दो महीने पहले उनके सामने से परोसी हुई थाली जैसे छीन ली गई थी, जब जनता की पसंद होने के बावजूद वे अपनी ही कंजरवेटिव पार्टी के सदस्यों के मतदान में करीब 20 हजार वोट से लीज ट्रस से हार गये थे। वजह यह थी कि आज भी कंजरवेटिव पार्टी के भीतर अंग्रेजों की साहबों वाली मानसिकता है और उन्हें काले भारतीय अपने पर राज करने वाले नहीं लगते। हर दौर में कामयाब रहने वाले सुनक को अगस्त में इसी के चलते हाथ आये प्रधानमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था और अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय और काबिल लीज ट्रस प्रधानमंत्री बना दी गई थी। सुनक की किस्मत इतनी जल्दी पलट गई, यह बिरली बात है। लीज ब्रिटेन की लगातर बिगड़ रही अर्थ व्यवस्था को थाम नहीं सकी, जिसका भऱोसा उन्होंने तब दिलाया था। उस वक्त सुनक पर अपने प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से दगा करने का आरोप भी लगा था, जब सुनक इस्तीफा देकर सरकार से बाहर हो गये थे।

भारतीय आम तौर पर किस्मत में भरोसा करते हैं और यह मानते हैं कि जो भी होता है और बेहतर के लिये होता है। तो दो माह पहले सुनक यदि प्रधानमंत्री न बन पाये तो मुझे लगता है यह उनके लिये ज्यादा फायदे का सौदा साबित हो सकता है। वैसे तो सुनक बैंकर रहे हैं और वित्तीय मामलों के जानकार हैं तो आशा तो यही की जाती है कि ब्रिटेन को मंदी से उबारने,उद्योग धंधे पटरी वापस लाने,रोजगार के अवसर बढ़ाने और लोगों में आत्म विश्वास बरकरार रखने के पूरे प्रयास करेंगे ही। ब्रिटेन में आम चुनाव जनवरी 2025 में होने हैं और मौजूदा हालात को देखते हुए सुनक ऋषि की तब तक पद पर बने रहने की ज्यादा संभावना है। दिसंबर 2019 में भारी बहुमत से जीत जाने के बाद भी पहले बोरिस जॅानसन, फिर लीज ट्रस के हटने के बाद अब कंजरवेटिव पार्टी भी बार-बार नेता बदलने का खेल नहीं खेलना चाहेगी, बशर्ते ऐसी परिस्थितियां ही पैदा न हो जाये। याने अपनी विफलता से विचलित होकर सुनक भी इस्तीफा देकर चलते बने तो बात अलग है। बहरहाल।

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अब सबसे अहम मसला यह है कि सुनक ऐसा क्या करेंगे, जिससे ब्रिटेन चौतरफा संकट से काफी हद तक उबर जाये। यूं देखा जाये तो ब्रेक्जिट(यूरोपियन यूनियन से अलग होना) के बाद से ही ब्रिटेन के हालात बिगड़ते जा रहे हैं। अभी तक ऐसा कोई नेतृत्व नहीं उभऱा, जिसने देश को बदतर हालात से बाहर निकालने में जी-जान लगा दी हो या लोगों में अपार भऱोसा जगा दिया हो । ऐसे में यदि किसी एक बड़े मोर्चे पर भी सुनक ने कामयाबी हासिल कर ली तो वे सरकार के शेष कार्यकाल तक पद पर बने रह सकते हैं।

एक भारतीय मूल का होने के नाते भारत को ब्रिटन से और सुनक को भारत से काफी उम्मीदें रहेंगी ही। सुनक ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों की परवाह की और भारत सरकार के साथ निरंतर संवाद और समन्वय बनाये रखा,साथ ही भारतीय हितों के अनुकूल नीतियां बनाये रखीं तो भारत से भरपूर सहायता मिल सकती है, जो अंतत: सुनक को स्थायित्व देने में मददगार होंगी। भारत के लिये भी यह बेहतर अवसर है जब वह दुनिया में अपने लिये बन रहे अनुकूल माहौल को आगे बढ़ाते हुए ब्रिटेन की स्थितियों से फायदा उठाते हुए अपने को मजबूत करे और सुनक को भी दृढ़ता प्रदान करे। आखिरकार किसी भी देश को विश्व शक्ति बनने के लिये अनेक मोर्चे फतह करते चलने पड़ते हैं और कहीं समझौते करने पड़ते हैं तो कहीं झुकना भी पड़ता है। यह सब यदि देश हित में होगा तो भारत इस गौरव को ऐतिहासिक बनाने में भरपूर सहायता कर सकता है कि कोई भारतीय मूल का व्यक्ति ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बना, जिसने देश को संकट से उबारा। कुल मिलाकर भारत के लिये देश के भीतर और बाहर भी तेजी से माहौल की अनुकूलता बढ़ रही है, जो उसे इक्कीसवीं सदी के नये भारत के निर्माण को मजबूती दे रही है।