रविवारीय गपशप :दंड प्रक्रिया में संशोधन के बाद अब साक्ष्य अधिनियम को सरलीकृत करने की जरूरत

421

रविवारीय गपशप :दंड प्रक्रिया में संशोधन के बाद अब साक्ष्य अधिनियम को सरलीकृत करने की जरूरत

 

 

पिछले दिनों मुझे एक मुक़दमे में गवाही देने इंदौर के ज़िला न्यायालय में जाने का अवसर आया । ये मुक़दमा पी.सी.एंड पी.एन.डी.टी. एक्ट के तहत था जिसमें गर्भधारण के दौरान गर्भ की पहचान को निषेध किया जाने का प्रावधान है । मामला सन् 2011 का था , जब मैं इंदौर में अपर कलेक्टर के पद पर था और मामले में मेरी गवाही आज से सात बरस पूर्व तभी हो चुकी थी , जब मैं इंदौर में ही अपर आयुक्त था , अब उस पर प्रतिपरीक्षण के लिए ये बुलावा आया था । चूँकि मेरे लिये तो इंदौर के कलेक्टर श्री आशीष ने पहले से ही लोक अभियोजक को आगाह कर रखा था सो जल्द ही मैं निवृत्त हो गया पर कचहरी जाने पर बहुत पुराने बहुतेरे प्रश्न फिर मन में घुमड़ गये । हमारे अधीनस्थ न्यायालयों में व्यवस्था और आनुषंगिक सुविधाओं में अभी भी बहुत काम होना बाक़ी है । न्यायिक दण्डाधिकारियों की बैठक का गरिमापूर्ण होना तो आवश्यक है ही , पर अधिवक्ताओं के बैठने , उन्हें अपने मुवक्किलों से मिलने और कोर्ट की कार्यवाहियों में भाग लेने आये साक्षियों के प्रतीक्षा स्थल आदि को लेकर अभी बहुत काम करना आवश्यक है । सभी जानते हैं कि न्यायालयीन कार्यों में साक्षियों का अहम रोल होता है । आख़िर पेचीदा मामलों में उनकी गवाही और तस्दीक़ों से ही , न्यायिक अधिकारी अपने निष्कर्ष निकालते हैं , पर मैंने पाया कि गवाही के लिए आये पक्षकार भी मुलज़िमों की तरह हाथ बांधे अपनी बारी की प्रतीक्षा में खड़े रहते हैं ।

भारत सरकार ने पिछले दिनों भारतीय दण्ड संहिता और दण्ड प्रक्रिया संहिता में बहुतेरे संशोधन किए हैं । मुझे लगता है अब साक्ष्य अधिनियम को भी सरलीकृत करने की आवश्यकता है । भला इस बात का क्या औचित्य कि ए.डी.एम. दूरदराज़ के ज़िले से बरसों पुरानी पोस्टिंग के ज़िले के न्यायालय में आकर अपने दस्तख़तों की तस्दीक़ करे । सरकारी दस्तावेज क्यों नहीं प्रामाणिक माने जा सकते । मेरे इस मामले में ही प्रकरण में गवाही केस दर्ज होने के सात बरस बाद हुई और उसका प्रतिपरीक्षण अब अगले सात बरस बाद हो रहा है । क्यों नहीं ऐसी गवाहियों में समय सीमा और औचित्य का निर्धारण किया जाना चाहिए । मामले की प्रकृति और अपराध की गंभीरता को लेकर अलग अलग साक्ष्य के मानदण्ड और समय सीमा भी तय होनी चाहिए । सौभाग्य से मध्यप्रदेश में भू राजस्व संहिता के सरलीकरण को लेकर पिछले दिनों काफ़ी काम हुआ है , अब आपराधिक मुक़दमों में प्रयुक्त क़ानूनों के लिये भी ऐसी गहन पड़ताल आवश्यक है । क्या ही अच्छा हो हम अपनी पुरानी सहज सरल पारंपरिक पंचायती न्याय व्यवस्था को जीवित कर सकें जो न केवल पारदर्शी होती थी , बल्कि तुरत निदान वाली भी हुआ करती थी ।

एक पुरानी घटना याद आ रही है , तब मैं राजनांदगाँव ज़िले की डोंगरगढ़ अनुविभाग का एस.डी.एम. था । एक दिन मुझे सुदूर गाँव से आया एक ग्रामीण मिला जो यह शिकायत करने आया था की अनुसूचित जाति का होने के कारण गाँव के नाई उसकी दाढ़ी बाल नहीं बना रहा है । मेरी पहली पोस्टिंग थी , नई उमर थी , और सामाजिक कुरीतियाँ को लेकर मन में एक अलग बैचेनी थी । मैंने उससे कहा तुम घर जाओ मैं कल ख़ुद तुम्हारे गाँव आऊँगा । दूसरे दिन अपने तहसीलदार और थानेदार के साथ मैं उस युवक के ग्राम पहुँचा , पंचायत में बैठ कर सभी संबंधितों को बुला लिया । नाई से मैंने कहा दाढ़ी क्यों नहीं बनाते , उसने कहा हुज़ूर अभी बना देता हूँ ! दाढ़ी बन गई । इसके बाद मैंने डाँट फटकार लगाई , थोड़ा धमकाया भी । जब मेरा पार्ट ख़त्म हो गया तो मैंने सरपंच से कहा , अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है ऐसा अब आगे न हो । सरपंच बोला “ सर दरअसल ये सजा ग्राम की पंचायत ने दी है सो जब तक ये पंचायत के फ़रमान की पूर्ति नहीं कर देता मैं गारंटी नहीं ले सकता “ मुझे कुछ आश्चर्य हुआ मैंने पूछा बात क्या है ? सरपंच बोला “ देखिए साहब मैं ख़ुद सतनामी हूँ , सो ये बात तो सही नहीं है कि इसकी जाति के कारण इससे भेदभाव है । वास्तव में पंचायत में इस साल पानी की कमी को देखते हुए ये निर्णय लिया गया था कि तालाब का पानी कोई सिंचाई के लिए ना ले बल्कि निस्तार में ही उपयोग हो , पर इसे अपने खेतों में चोरी से तालाब का पानी लेते पकड़ा गया और इसलिए इस पर दो सौ रुपये का जुर्माना लगाया गया है । अब जब तक ये जुर्माना नहीं भरता इसका ऐसा ही सामाजिक बहिष्कार चलता रहेगा , और आप कब तक आ आ कर इसकी दाढ़ी मूंछ बनवाते रहोगे । मुझे बात समझ आई , फिर भी मैंने कहा देखो गलती हुई है पर आप लोग जुर्माना कम कर दो , इतनी दूर से हम आए हैं अब इतनी सजा काफ़ी है । अंततः मामूली जुर्माने पर बात तय हुई , बंदे ने अपनी गलती पंचायत के समक्ष मानी और हम सदलबल मुख्यालय वापस आ गये ।