रविवारीय गपशप: मंत्री जी से हाथ जोड़कर माफी मांग लेना, मुझे नगर निगम कमिश्नर नहीं बनना 

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रविवारीय गपशप: मंत्री जी से हाथ जोड़कर माफी मांग लेना, मुझे नगर निगम कमिश्नर नहीं बनना 

 

आनंद शर्मा 

नौकरी के दौरान मिलने वाले अधिकांश लोगों के , दोस्ती से लेकर मातमपुर्सी तक के व्यवहार काम निकालने के ही होते हैं , इसका एक रोचक किस्सा मुझे बी.एम.शर्मा जी ने सुनाया था जो नौकरी में तो मुझसे एक साल ही बड़े थे पर अनुभव , कार्यकुशलता और हाज़िरजवाबी में दस गुना आगे थे । सन् 1995 में मैं सागर से स्थानांतरित होकर उज्जैन आ गया । तीसरे या चौथे दिन की बात होगी , कोठी के नाम से प्रसिद्ध कलेक्ट्रेट में किसी बैठक में मैं हिस्सा ले रहा था , तभी कमिश्नर ऑफिस का एक बाबू मेरे पास आया और मेरे सामने लिफ़ाफ़ा रख कर बोला “आपके मकान का अलाटमेंट्स ऑर्डर है” । मैंने भारी प्रसन्नता और अचरज से ये सोचते हुए लिफाफा खोला कि ग़ज़ब जिला है , जहाँ बिना आवेदन किए ही मकान का आबंटन हो गया है , पर लिफाफा खोलते ही ख़ुशफ़हमी ग़ायब हो गई क्योंकि उस पर श्री बी.एम. शर्मा का नाम था । और इस तरह जब उनके नाम का लिफाफा मैं उन्हें देने गया तब श्री बृज मोहन शर्मा से मेरा पहला परिचय हुआ , जहाँ वे संयुक्त संचालक लोक शिक्षा के पद पर पदस्थ थे । बाद में मुझे धीमे धीमे ये भी पता चला कि और भी कई लोग मुझे कद काठी और शक्ल में उनके जैसा होने से बी.एम. शर्मा समझ लेते हैं । नीमच से जब मेरी पदस्थापना ग्वालियर हुई , तो ये मेरे लिए बड़ी राहत की बाद थी कि वहाँ बी.एम. शर्मा जी पहले से ए.डी.एम. के रूप में पदस्थ थे । नए शहर में ए.डी.एम. अपना दोस्त हो तो क्या कहना । समय समय पर होने वाली पार्टियों और सरकारी समारोहों में हम निरंतर मिलने लगे और अंतरंगता और गहरी होने लगी । इसी बीच श्री बी.एम. शर्मा जी का तबादला नगर निगम ग्वालियर के कमिश्नर के पद पर हो गया । उन दिनों नगर निगम ग्वालियर के कमिश्नर के पद का निर्वाह बड़ा कठिन माना जाता था और तरह तरह के स्थानीय राजनीतिक समीकरण और व्यक्तिगत हित के दबाव ने इसे और चुनौतीपूर्ण बना दिया था , पर बी.एम. शर्मा तो सभी चुनौतियों से निपटने वाले अफसर माने जाते थे , सो सब ठीक चलने लगा ।

एक दिन अचानक ख़बर आई कि बी.एम. शर्मा जी अस्पताल में भर्ती हैं । हम मित्र गण चिंतित हुए और शीघ्र ही उनसे मिलने जा पहुँचे । अस्पताल पहुँचे तो पता चला अब सब ठीक है ख़तरे की कोई बात नहीं है । बी.एम. बिस्तर पर पड़े थे और थोड़े से अनमने से थे । मैं पास बैठा तो कहने लगे “ यार बहुत हो गया , अब नगर निगम की कमिश्नरी मुझसे न होगी , मैंने तो पी.एस. से कह भी दिया है कि मुझे हटा दो । मैंने बात बदलने और माहौल सामान्य करने की नियत से कहा “ अब क्यों फिक्र कर रहे हो , डाक्टर तो कह रहा है कि सब ठीक है” । शर्मा जी कहने लगे “स्वास्थ्य की बात नहीं है पर यार क्या कहें ये जगह ही बड़ी विचित्र है ।” मैंने पूछा ऐसा क्या हो गया ? तो वो बोले “अभी थोड़ी देर पहले एक पार्षद आया था । पहले तो पास बैठा और पूछने लगा कि अब कैसी तबीयत है ? जब मैंने कहा कि चिंता की कोई बात नहीं , डाक्टर कह रहा है सब ठीक है , तो इतना सुनते ही उसने कमीज़ के अंदर हाथ डाल कर एक फ़ाइल निकाली और कहने लगा , फिर तो इस फाइल पर मंज़ूरी के दस्तखत कर दो ।” मैं सुन कर हंस हंस के लोटपोट हो गया और सचमुच एकाद सप्ताह के बाद जब मैं अपने दफ्तर में बैठा काम कर रहा था तो भोपाल से मयंक वर्मा का फ़ोन आया जो नगरीय प्रशासन विभाग के अफसर थे और उन दिनों प्रदेश के एक महत्वपूर्ण मन्त्री के विशेष सहायक थे । मयंक फ़ोन पर कहने लगे , बधाई हो साहब बी.एम.सर तो ख़ुद ही हट रहे हैं तो कमिश्नर के लिए साहब ने आपका नाम फाइनल किया है । मैंने कहा मयंक भाई मंत्री जी से मेरी ओर से हाथ जोड़ कर माफ़ी माँग लेना , मुझे ग्वालियर के नगर निगम का कमिश्नर नहीं बनना है ।

मंत्री जी से हाथ जोड़कर माफी मांग लेना, मुझे नगर निगम कमिश्नर नहीं बनना

जब पार्षद ने अस्पताल में भर्ती निगम कमिश्नर के सामने एक जब से फाइल निकाल सामने रख दी

किस्से मेरे और और मेरे से वरिष्ठ बीएम शर्मा के