रविवारीय गपशप: जीवन के अंत समय में खींच ही लाती है मिट्टी!
कहते हैं ‘घर का जोगी जोगड़ा और आन गाँव का सिद्ध’ यानी आदमी को इज्जत कमाने बाहर जाना ही पड़ेगा। इसलिए आदमी रोज़गार और इज्जत की ख़ातिर घर बार छोड़कर दुनिया जहान में भटकते है। लेकिन, एक बात मैंने महसूस की और वो ये है कि सारा जीवन आदमी कहीं भी भटक ले। पर, अंत समय में उसे अपना घर ही याद आता ही है।
एक बार ट्रेन में यात्रा के दौरान एक सज्जन से मेरी मुलाकात हुई जो इंजीनियर थे और इटली में रह रहे थे। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि वे मूलतः छतरपुर के निवासी हैं और खजुराहो में गाइड थे। खजुराहो में दुनियाभर से लोग आते हैं, इसी दौरान इटली से खजुराहो घूमने आई एक लड़की से उनके नैन चार हुए और दोनों में प्यार हो गया। 80 के दशक में वे उस लड़की के साथ इटली चले गए। वहां उन्होंने फर्नीचर की दुकान डाल रखी थी। उन्होंने उस इतालवी लड़की से शादी कर ली थी।
बातचीत में उन्होंने बताया कि मैं तो हर वर्ष यहाँ आता हूँ। यहाँ से कुछ पुराना फर्नीचर, घरों के दरवाजे आदि खरीदकर इटली ले जाता हूँ और उन्हें वहां सुधारकर एंटिक आइटम के रूप में बेच देता हूँ। इसी बहाने हर साल अपने घर आने और सबको देखने सुनने का मौका मिल जाता है ल। मैंने पूछा तुम्हारे बीबी बच्चे नहीं आते, तो कहने लगे एकाध बार वे आए, पर उन्हें यहाँ अच्छा नहीं लगता। जब मैं आता हूँ तो दुकान मेरी बीबी को सम्हालनी पड़ती है, इसलिए मैं अकेला ही आता हूँ। मुझे तो हर साल यहाँ आये बिना चैन नहीं पड़ता, तो ये धंधे का बहाना मैंने इसीलिए ढूंढ लिया कि घर के लोगों से मुलाक़ात होती रहे।
ट्रेन के सफ़र में ही ऐसे ही एक और सज्जन से मेरी मुलाक़ात हुई, जो जर्मनी से अपना सबकुछ छोड़ कर आए थे। उनकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प थी। वे सन 1950 में ही जर्मनी चले गए थे। आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग करके राउरकेला प्लांट में नौकरी करते थे। कहने लगे कि एक बार किसी ट्रेनिंग में वहां गया और वहीं एक जर्मन लड़की से प्रेम हो गया। फिर क्या था वहीं शादी की और बस गया। फिर वापस इंडिया नहीं आया, कुछ बरस पहले रिटायर हो गया तो मेरा मन वहां नहीं लगा, इसलिए यहाँ आ गया।
मैंने पूछा यहाँ कौन है, तो कहने लगे कि सभी हैं, ताऊ हैं उनके लड़के मेरे भाई और उनके बच्चे गाँव में रहते हैं। मैंने कहा कुछ खेती बाड़ी, तो कहने लगे अरे नहीं वो तो सब मैंने तभी सबको दे रखी थी। अब तो बस एक छोटा सा घर वहीं गाँव में बनाया है और नाते रिश्तेदारों के बीच रह आता हूँ। पूरा भारत घूमता रहता हूँ, आज महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन करने जा रहा हूँ। मैंने फिर पूछा कि आपके बच्चे और पत्नी कहाँ हैं? तो कहने लगे अरे वो लोग़ तो सब जर्मनी में ही हैं। सब अपने अपने काम में लगे हैं पत्नी के भी सब रिश्तेदार वहीँ हैं, तो वो तो मेरे साथ नहीं आई। कहने लगी कि अब अंत समय में अपना देश क्या छोडूं पर मेरा तो देश ये ही है।
इसलिए मैं ही सब छोड़कर आ गया। अब कभी कभी साल दो साल में जब उनकी याद आती है, तो उनसे जाकर मिल आता हूँ। वे कभी मिलने नहीं आते? मैंने कहा तो गहरी सांस भरकर बोले उन्हें यहाँ का वातावरण सूट नहीं करता। पत्नी शुरू में जब हम जवान थे तो एकाध बार आई है, पर बच्चे कभी नहीं आए और न उनकी इच्छा होती है। मुझे थोडा आश्चर्य हो रहा था तो न चाहते हुए भी मैंने पूछा की इतने दिनों में इतने जीवनभर का सम्बन्ध, घर, संपत्ति पत्नी, बच्चे सब छोड़कर आप यहाँ आ गए विचित्र नहीं लगता आपको!
वे कहने लगे क्या करूँ मुझे अपने घर की और देश की बड़ी याद आती थी। नौकरी से रिटायर होकर एक-दो साल कोशिश की, पर फिर मुझसे रहा नहीं गया, बाल बच्चे तो अपने कामों में व्यस्त हैं और पत्नी अपने काम में। मुझे अपने वतन की बड़ी याद आती थी, तो मैं तो सब छोडकर आ गया। ऐसा नहीं है कि सम्बन्ध खत्म कर दिए, पर मैं ये जान गया हूँ कि वे कभी यहाँ नहीं आ पाएंगे और मैंने उनके साथ रहता तो मैं कभी यहाँ नहीं आ पाता। इसलिए मैंने ये रास्ता चुना। मुझे लगता अच्छा है अपने लोगों के बीच रहकर, चाहे कभी किसी से कोई काम न हो, न सही पर हिंदुस्तान में लोगों में प्यार ज्यादा है। अब आप ही देखो आपको क्या लेना देना हैं मुझसे और इतनी बातें पूछ रहे हो। वहां ऐसा नहीं है, सब अपने काम से काम रखते है। बस ऐसे ही जीवन गुजर जाएगा अपने देश में अपने लोगों के बीच अपने गाँव की मिटटी में दम तोडूंगा बस यही संतोष है।