
रविवारीय गपशप: अलीराजपुर से लेकर दिल्ली तक रविवारीय गपशप कॉलम की गूंज
आनंद शर्मा
लिखना मेरा शौक है , पर मुझे लगता नहीं था कि मेरी पहचान मेरे लिखने के कारण भी हो सकती है , लेकिन कई अवसर ऐसे आये कि मुझे इसका महत्व भी महसूस हुआ । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के ओ.एस.डी. होने के नाते कई अवसरों पर मुख्यमंत्री जी के साथ भ्रमण में जाना होता था । एक बार की बात है विधानसभा के उप-चुनाव के दौरान किसी चुनावी सभा में अलीराजपुर के सुदूर इलाके में दौरा था । कार्यक्रम शुरू हुआ तो मैं अपनी आदत के मुताबिक मंच से उतर कर आम जनता की भीड़ के पिछले हिस्से में पहुंच गया , तभी भीड़ के पीछे खड़े एक ग्रामीण सज्जन ने मुझसे कहा “ आप अच्छा लिखते हो” । मैंने पूछा आप कहाँ पढ़ते हो ? उसने कहा “मैं मीडियावाला पर आपकी रविवार की गपशप पढ़ता हूँ “। मैं जान कर हैरान था की अलीराजपुर के इस सुदूर ग्रामीण इलाके में भी सोशल मीडिया पहुँचा हुआ है । इसी तरह किसी कार्यक्रम में मैं डिंडोरी गया हुआ था । कार्यक्रम शुरू होते ही मुझे याद आया कि मुख्यमंत्री जी को देने के लिए कुछ आवश्यक दस्तावेज मैं अपनी कार में ही भूल आया हूँ । भीड़ से निकल मैं अपनी गाड़ी को तलाश करने लगा , तभी एक सिपाही मेरे पास आकर बोला , आप क्यों परेशान हैं? मैंने उससे कहा कि मैं अपनी गाड़ी नहीं ढूंढ पा रहा हूँ तो उसने कहा सभी गाड़ियाँ मंच के दूसरी ओर पार्क कर दी गई हैं । मैंने अपनी परेशानी बतायी तो उसने कहा आप निश्चिंत रहें मैं अभी आता हूँ । वो दौड़ कर गया और कुछ ही देर में मेरे बैग को लेकर मेरे पास आ गया । मैंने उस आरक्षक को धन्यवाद कहा तो वो बोला मैंने आपको पहचान लिया था , आप अखबारों में लिखते हो । पर तब भी मुझे लगता था कि मुख्यमंत्री जी के साथ रहने के कारण लोग पहचान जाते होंगे लेकिन कुछ और धटनाओं ने ये धारणा भी बदल दी ।
कुछ माह पूर्व की बात है , हम रिटायर्ड साथियों का एक ग्रुप यूरोप भ्रमण के लिए जाने वाला था । इंदौर एयरपोर्ट पर साथ जा रहे सी.बी. सिंह साहब पहले ही पहुँच गए थे । मैंने पहुँच कर फ़ोन लगाया तो वे बोले “व्ही.आई.पी. लाउंज में आ जाओ । मैं पहुँचा तो सिंह साहब उनके साथ खड़े दो
अधिकारियों से मेरा परिचय कराने लगे कि ये फ़लाँ फ़लाँ हैं , तभी उनमें से एक ने कहा मैं इन्हें जानता हूँ और रविवार को नियमित रूप से इनका लिखा पढ़ता हूँ , दूसरे अधिकारी ने भी हामी भरी और कहा आजकल तो साहब का लिखा प्रजातंत्र में भी छप रहा है । मुझे जान कर आश्चर्य हुआ कि नए अधिकारी अभी भी इसे पढ़ रहे हैं । यूरोप की फ्लाइट सुबह सुबह पाँच बजे की थी । हम पहले ही दिल्ली पहुँच कर मध्यप्रदेश भवन में रुक गए थे । रात्रि के दो बजे हमें एयरपोर्ट के लिए रवाना होना था , जिसके लिए हमारे साथी चौधरी जी ने भवन के स्टाफ को बोल रखा था । विदेश यात्रा के हिसाब से सामान कुछ ज़्यादा था तो मैंने महेश से पूछा कौन कौन से वाहन किस बैठक क्षमता के आयेंगे तय कर लिया है या नहीं वरना रात को दो बजे किससे कहेंगे ? उन्होंने कहा मैंने कह तो दिया है , फिर भी आप तसल्ली कर लो । मैं वाहन के इंतिज़ाम करने वाले बंदे से मिला और यही सब पूछा तो उसने कहा दो टैक्सी के लिए कह दिया है , समय पर आ जायेंगी । मैंने फिर दरयाफ़्त की कि भाई कितने लोग बैठ पाएँगे? सारा सामान आ पायेगा या नहीं ? जब मैंने कुछ ज़्यादा ही चिंता ज़ाहिर की तो उसने मुझसे कहा “ आप चिंता न करो , आप मुझे नहीं जानते पर मैं आपको जानता हूँ , आप रिटायर आय.ए.एस. अफ़सर हो , और मीडियावाला में लिखते हो । हम हर हफ़्ते इसे पढ़ते हैं । कोई दिक्कत न आयेगी आप निश्चिंत होकर आराम करो । मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि यहाँ इतनी दूर मध्यप्रदेश भवन में भी लोग मीडियावाला पर मेरी गपशप पढ़ रहे हैं ! मैंने सोचा नहीं था कि मुख्यमंत्री के ओ.एस.डी. से इतर ये पहचान भी कभी काम आयेगी ।
अलीराजपुर से लेकर दिल्ली तक रविवारीय गपशप कॉलम की गूंज





