रविवारीय गपशप :हर पोस्टिंग मैन लाइन ही है,लूप लाइन नहीं!
आनंद शर्मा
लूप लाइन एक ऐसा शब्द है जो प्रशासनिक अफ़सरों की पोस्टिंग को लेकर इस्तेमाल होता है , और इसका सीधा-सादा अर्थ है , ऐसी पदस्थापना जहाँ अफ़सर के पास “ पावर “ नहीं हो । कई बरसों तक फ़ील्ड पोस्टिंग के बाद मैं जब भोपाल वल्लभ भवन के सचिवालय में पदस्थ हुआ तो यारों ने कहा अब तुम्हारी लूप लाइन की पोस्टिंग हो गई है । मुझे सचमुच अंदाज़ नहीं था कि इसके क्या मायने होंगे । जब मुझे कार्य आवंटन आदेश में सामान्य प्रशासन विभाग के अपर सचिव का काम मिला तो खैरख्वाह बोले अरे कोई ढंग का विभाग ही मिल गया होता तो चपरासी-गाड़ी तो मिल जाती , मुझे लगा बात सच होती जा रही है । सा.प्र.वि. याने जी.ए.डी. में प्रमुख सचिव के रूप में मुक्तेश वार्ष्णेय पदस्थ थे जो मेरे मित्र और वरिष्ठ साथी अरुण तिवारी जी के मित्रों में से थे । ज्वाइन करने गया तो उन्होंने मुस्कुरा कर कहा “ जी.ए.डी. में तुम्हें मैंने ही पदस्थ कराया है , तुम्हारी पोस्टिंग होते समय मैं सी.एस. के पास ही बैठा था तो मैंने ही कहा कि आनन्द को मुझे दे दो । यहाँ कोई सचिव नहीं है , तो सचिव का काम तुम्हें ही करना है और चिंता ना करो तुम्हारी आफिस के उपयोग के लिए नई गाड़ी का आदेश कर दिया है , सुबह तुम्हारे बंगले पहुँच जाएगी “। भोपाल पहुंचते ही बैठने के लिए चेम्बर और गाड़ी मिल जाना तो बड़ी बात थी , मुझे लगा ये लूप लाइन वाली बात तो ठीक नहीं लग रही है ।
मेरे बैच के अन्य साथी जो वल्लभ भवन में ही पदस्थ थे , जब चाय के लिए मेरे कमरे में इकट्ठे होने लगे और कहने लगे कि इनके कमरे में चाय का मजा अलग है यहाँ तो काफ़ी हाउस वाला बेयरा भी क़लफ़दार पगड़ी में आता है तो मुझे लगा कि वल्लभ भवन में जलवा तो इसी विभाग का है । वल्लभ भवन की स्थापना और संधारण का पूरा कार्य जी.ए.डी. ही करता है । एक दिन मैं अपने कक्ष में बैठा था कि मुझे मेरे पूर्व के परिचित पी.ए. श्री प्रजापति जी का फ़ोन आया और उन्होंने कहा कि प्रभांशु कमल साहब आपसे बात करना चाहते हैं । कमल साहब ग्वालियर में मेरे कलेक्टर थे , मैंने कहा आप रुको मैं ही वहाँ आ जाता हूँ । मैं कमल साहब , जो तब पशुपालन विभाग के प्रमुख सचिव हो गए थे , के कमरे में गया तो उन्होंने कहा “अच्छा हुआ आप ख़ुद आ गए , मेरे कमरे के टॉयलेट में न जाने नीचे कहाँ से ऐसी बदबू आती है कि बैठना मुश्किल हो जाता है । मैंने थोड़ी देर में ही महसूस कर लिया कि वे सही कह रहे थे । मैंने वहीं से अपने अवर सचिव और संधारण के ज़िम्मेदार इंजीनियर को बुलवाया और नीचे निरीक्षण किया तो पता लगा कि उस कमरे के ठीक नीचे वल्लभ भवन की महिला कर्मियों का शौचालय था जिसमें कुछ दिक्कत थी और ये बदबू इसी कारण थी । मैंने कहा कि इसे तो तत्काल ठीक करना चाहिए क्योंकि ये तो हमारी महिला कर्मियों के लिए भी समस्या है । मेरे स्टाफ़ के लोग कहने लगे “ सर इस टॉयलेट को बंद कर देंगे तो महिलाओं का दूसरा शौचालय बहुत दूर है , वे विरोध करेंगी । मैंने उन्हें सख्ती से कहा , अपने भले के लिए भला कौन विरोध करेगा ? आप तत्काल काम शुरू करो । अगले सप्ताह कमल साहब ने मेरी इस तत्परता के लिए मुझे अपने कक्ष में बुला कर चाय पिलाई और काम हो जाने का धन्यवाद दिया ।
कुछ दिनों बाद की बात है , मैं सुबह सुबह वल्लभ भवन में प्रवेश कर रहा था कि देखा मेरे एक बैचमेट दूर से पैदल चले आ रहे हैं । वल्लभ भवन की एनेक्सी तब बन ही रही रही थीं । मैंने कहा आप पैदल क्यों आ रहे हो ? वे बोले अरे क्या बतायें यार मुझे जो गाड़ी विभाग ने उपलब्ध कराई है वो टेक्सी है और ये वल्लभ भवन वाले सरकारी गाड़ियों के पास ही बनाते हैं । मुझे आश्चर्य हुआ , मैंने अपने कमरे में पहुंचते ही सुरक्षा अधिकारी श्री भटेले को फ़ोन लगाया और पास न बनाने का कारण पूछा । भटेले जी भी वही बात कहने लगे तो मैंने कहा “ भटेले जी पास अधिकारी को दिया जाता है , न कि गाड़ी को “ मैं वैसे भी परिवहन विभाग में रह चुका हूँ और चाहो तो गृह विभाग के सर्क्यूलर देख लो । लाल और पीली बत्ती अधिकारी और ओहदे के मुताबिक़ व्यक्ति को उपलब्ध है न कि वाहन को यही बात पास में भी लागू होती है । वे तुरंत मेरे तर्क से सहमत हुए और दूसरे दिन ही मेरे मित्र के वाहन का भी पास बन गया और अपने वाहन से वे भी वहाँ तक आने लगे जहाँ तक मैंअपनी कार में बैठ कर पहुँचता था । मैंने सोचा लूप लाइन तो उनके लिए होती है जो अपने पावर का उपयोग करना न जानें वरना हर पोस्टिंग मैन लाइन ही हैं लूप लाइन नहीं ।