रविवारीय गपशप :गणपति और उनके वाहन का सुखद संयोग
पिछले दिनों सभी ने गणपति जी की धूमधाम से विदाई की , इंदौर में तो अनन्त चतुर्दशी पर निकलने वाली झांकियों के दर्शकों की संख्या का एक रिकॉर्ड भी दर्ज हुआ । हमारे घर भी हर वर्ष की तरह गणपति विराजित हुए । दरअसल गणपति को घर में विराजमान कर पूजा करने में कोई बड़ा कर्मकाण्ड नहीं लगता बस सरल सहज पूजा पद्धति ही पर्याप्त है , इसलिए शायद तिलक ने इस त्योहार को हमारी आज़ादी के आंदोलन से जनसामान्य को जोड़ने के उपाय की तरह रचा बसा दिया था और इसी कारण से हमारे जैसे अनेक घरों में गणपति विराज कर अपनी छटा बिखेरते हैं ।
पर इस बार इंदौर आने पर कहानी कुछ दिलचस्प भी हुई । हुआ कुछ यूँ की भोपाल से रवानगी के वक्त सामान कम करने की मेरी धुन अपने चरम पर थी । इसी अभियान में जब चूहे दानी का नंबर आया तो मैंने ज़ोर देकर कहा कि अब बस इंदौर चूहेदानी ले जाने की कोई आवश्यकता नहीं है आख़िर बहुमंज़िला इमारत में विद्यमान फ़्लैट में भला चूहेदानी का क्या काम इतनी मंज़िल ऊपर भला चूहा कहाँ से आएगा ,और इस तरह दो तीन जितनी भी मात्रा में संचित चूहेदानी थीं वे भोपाल में ही इधर उधर कर दी गयीं । इंदौर में गणपति के विराजमान होने के दो चार दिन के अंदर ही उनके वाहन के दर्शन हो गये । श्रीमती जी ने चूहे को देखकर पहले चिल्लाया और फिर मुझ पर आँख दिखाई कि देखा अब फिर चूहे दानी का इंतिज़ाम करो । दो दिन तो ढूँढने में लगे कि चूहे दानी कहाँ मिलेगी ? और इस बीच चूहे महाराज किचन के हर खाने में अपना जौहर दिखाते रहे । चूहेदानी के लगाते ही , रात को चूहे जी फँस गये । हमने चूहेदानी को चूहा सहित बिल्डिंग के चौकीदार को रमेश को दिया और कहा जरा दूर छोड़ के आना । रमेश ने हाँ में सर हिलाया और थोड़ी देर बाद ख़ाली चूहेदानी वापस कर दी ।
एक दिन ही गुजरा था कि दूसरे दिन रात को किचन की ट्रॉली खिसकाते ही श्रीमती फिर चिल्लाईं , अरे चूहा फिर वापस आ गया । हम सभी हैरान कि इतनी ऊपर की मंज़िल पर चूहा वापस कैसे आ गया और वापस आया कि कोई दूसरा चूहा नमूदार हो गया है । बहरहाल फिर चूहेदानी लगाई गई , लेकिन इस बार चूहा नहीं फ़सा , हम रोज़ सुबह देखते पर पाते कि लगाये गये व्यंजन को चूहे ने चखा भी नहीं था । इस बीच गणपति की विदाई का वक़्त आ गया । मेरी बेटी बोली देखना अब गणपति को लेकर ही चूहे महाराज जाएँगे , और सच विदाई को सुबह ही रोटी अचार की लालच में हमारी चूहेदानी आबाद थी । शाम को “गणपति बप्पा मोरिया अगले बरस तू जल्दी आ” करने के बाद दूसरे दिन सुबह मैंने सोचा कि चौकीदार के बजाय मैं स्वयं इसे ठिकाने लगाऊँगा , सो सुबह के वक्त रेसीडेंसी क्लब जाते हुए मैंने अपनी कार में चूहेदानी को रखा और अपनी बिल्डिंग के बाहर दूसरी ओर सुदूर छोर पर चूहेदानी को खोल चूहे को आज़ाद किया । छूटते ही चूहा वापस हमारी बिल्डिंग की ओर ऐसा सरपट भागा जैसे बच्चे स्कूल की छुट्टी के बाद बस रुकने पर घर की ओर भागते हैं ।