रविवारीय गपशप: अफसर से ज्यादा महत्वपूर्ण है उनका पी ए

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रविवारीय गपशप: अफसर से ज्यादा महत्वपूर्ण है उनका पी ए

आनंद शर्मा

मंदिरों में आने वाले भक्तगण जितनी श्रद्धा से देवता को शीश नवाते हैं , उतने ही विनय भाव से गर्भगृह के बाहर विराजमान देवता के मुख्य सेवक या वाहन को भी धोक देते हैं । उज्जैन के श्री महाकालेश्वर हों या मुंबई के श्री सिद्धिविनायक , दर्शनों के बाद आप नंदी और मूषक के कानों में इन दर्शनार्थियों को अपनी मनोकामनाएं फुसफुसाते हुए देख सकते हैं । यह व्यवहार केवल धार्मिक स्थलों तक सीमित नहीं है , किसी भी सरकारी दफ्तर में जाओ , अफ़सर के बाद सबसे महत्वपूर्ण शख़्स उस अफ़सर का पी.ए. या स्टेनोग्राफ़र हुआ करता है जो उसके ऑफिस के बाहर विराजमान होता है और उसके पास ऐसे अफ़सर के मुलाक़ातियों को उनकी अर्ज़ी लगाते आसानी से देखा जा सकता है ।

मैं जब नौकरी में आया तो अकादमी में किसी लेक्चर के दौरान किसी अनुभवी व्याख्याता ने कहा था कि कलेक्ट्रेट में कलेक्टर के बाद सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति उसका स्टेनो होता है सो उससे बना कर रखना । अफसरों के इन पीए बाबुओं का महत्व मैंने हर जगह पाया , ये और बात है कि कई बार इन पी.ए. बाबुओं के कुछ होशियार सहायक इनसे भी एक कदम आगे रहा करते हैं । नरसिंहपुर में जब मैं पदस्थ हुआ तो मैंने पाया कि कलेक्टर का पीए तो कोई और था पर चलती शंकर लाल सोनी की थी जो स्टेनो बाबू के सहायक थे , और कलेक्टर से लेकर बाकी दफ्तर के लोग सोनी जी को ही स्टेनो मानते थे । यही हाल ग्वालियर में परिवहन विभाग का था , जहाँ पीए तो खर्चे बाबू थे पर जलवे राजदेव बाबू के हुआ करते थे , जो खर्चे बाबू के महज़ सहायक ही थे । अपने काम में माहिर राजदेव के इस प्रभाव से कुछ लोग इतने नाराज हो बैठे के कालांतर में इसे दूरदराज के किसी ऑफिस में अपने बाकी के दिन काटने पड़ गए । भोपाल में वल्लभ भवन स्थित सचिवालय में भी आप देखो , अफ़सर का विभाग बदलते ही उसके पीए का विभाग भी ऐसे बदल जाता है मानो वो उसकी जीवन संगिनी हो ।

मैं जब इंदौर में अपर कलेक्टर के रूप में पदस्थ हुआ तो इंदौर नगर निगम में कमिश्नर श्री सीबी सिंह साहब थे जो मेरे पुराने मित्र थे । मैं उनसे औपचारिक मुलाकात के लिये पहुँचा तो उन्होंने अपने पीए शर्माजी से मेरा परिचय करा दिया और कहा छोटेमोटे काम तो आप इन्हीं से कह दिया करो । कुछ दिनों बाद की बात है , मैं ऑफ़िस के लिए निकल ही रहा था कि मेरी पत्नी बोली , आज घर में पानी नहीं आया है , घर की टंकी खाली होने वाली है , नगरनिगम में कमिश्नर आपके मित्र हैं तो उनसे पानी के टैंकर के लिए बोल देना । मैंने सोचा इतनी सी बात के लिए कमिश्नर साहब को क्या तकलीफ़ दूँ , एडिशनल कमिश्नर भी मेरे परिचित और जूनियर अफसर थे , सो मैंने मोबाइल पर उन्हीं से पानी के टैंकर की गुजारिश कर डाली । ऑफ़िस पहुँचने के कुछ समय बाद पुनः श्रीमती जी का फ़ोन आया कि पानी का टैंकर नहीं आया है तो मैंने पुनः उन्हीं अफ़सर को याद दिलाया । वे बोले “अरे सर माफ़ करें , किसी काम में उलझ गया था , बस अभी बोलता हूँ । मैंने वापस घर फ़ोन लगा कर कहा , थोड़ी देर में टैंकर आ जाएगा । इसके बाद मैं अपने ऑफिस के कामों में व्यस्त हो गया , शाम को ऑफिस ख़त्म होने के बाद , जब मैं अपनी कार मैं बैठ कलेक्ट्रेट से घर के लिए रवाना हो ही रहा था कि मोबाइल पर फिर श्रीमती जी के नाम से फ़ोन की घंटी बजी । फ़ोन उठाया तो वे शिकायती स्वर में बोलीं , अभी भी पानी का टैंकर नहीं आया है । मैंने तुरंत नगरनिगम के एडिशनल कमिश्नर को फ़ोन लगाया तो फ़ोन बंद आ रहा था , मैं कुछ अपराध बोध से ग्रस्त हो गया कि दिन भर में घर की सुध ही ना ले पाया और अब बिन पानी सब सून वाली बात हो रही थी । मुझे नगर निगम कमिश्नर के पीए की याद आई और मैंने शर्मा जी को फ़ोन लगा कर पानी के टैंकर भेजने का अनुरोध किया । शर्मा जी ने आश्वस्त किया कि थोड़ी देर में पानी का टैंकर पहुँच जाएगा । मैं आशंकित मन से घर की ओर चल पड़ा , पर जब घर के दरवाज़े पर पहुँच कर देखा तो वाहन अंदर जाने की जगह नहीं थी , दरवाज़े पर पानी का एक बड़ा टैंकर खड़ा घर की छत पर विद्यमान पानी की टंकियों में पानी भर रहा था।