

रविवारीय गपशप : जब लोकायुक्त जीपी सिंह के आदर्श वाक्य को पूर्व CS विजय सिंह ने कैसे किया चरितार्थ
आनंद शर्मा
मध्यप्रदेश के पहले लोकायुक्त और भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री जी.पी. सिंह कहा करते थे “नियम कानून इसलिए बने हैं कि गलत काम न हो , इसलिए नहीं कि सही काम रुक जाये “। शासकीय सेवा के प्रारंभ में ही मेरा इस सिद्धांत से परिचय हो गया जो ताजिंदगी क़ायम रहा आया ।
पुरानी बात है तब मैं नरसिंहपुर में डिप्टी कलेक्टर हुआ करता था और हमारे कलेक्टर थे , श्री ए.के. मंडलेकर । कलेक्टर का कोर्ट मेरे दफ्तर के बगल में ही था और उनके रीडर श्री दुबे जी कभी कभी चाय अवकाश में मेरा साथ दे दिया करते थे । एक दिन वे बोले सर आपको बन्दूक का लायसेंस ले लेना चाहिए । मुझे लगा बात सही है तो मैंने सादा कागज पर आवेदन बनाया और कलेक्टर के सामने रख दिया । मंडलेकर साहब ने पढ़ा और कोने में लिखा “इश्यू “ मैंने पूछा सर इसमें तो कुछ जाँच आदि करनी पड़ती है , वे बोले तुम मेरे एस.डी.एम. हो तुम्हारे चरित्र सत्यापन की क्या जरूरत है ? जो मैं जानता हूँ , उसे मुझे दूसरे से पूछने की जरूरत नहीं है । कुछ महीनों बाद मुझे गोटेगांव सब डिवीजन के एस.डी.एम. का प्रभार भी दे दिया गया । एक दिन मैं कोर्ट रूम में अपनी आसंदी पर बैठा मुकदमों की सुनवाई कर रहा था , तभी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के तहत एक भूमि के कब्जे के विवाद का मामला सुनवाई के लिए समक्ष आया । एक पक्षकार ने आवेदन दिया कि भूमि पर यथास्थिति के आदेश के बाद भी फ़सल बो ली गई है , इसलिए मुकदमे के फ़ैसला होने तक फ़सल कटवा कर सुरक्षित रखी जावे । सामने वाले पक्षकार के वकील साहब ने कहा कि ये झूठ बोल रहे हैं , इनके आवेदन की जाँच करा ली जावे और जवाब के लिए उन्हें समय दिया जावे । मैं विचार कर ही रहा था कि वकील साहब के मुंशी ने एक कागज़ की पर्ची मेरे मेरे हाथ में दे दी । मैंने पर्ची खोली तो उसमें संदेश था कि मुकदमे की सुनवाई के लिए एक हफ़्ते की मोहलत दे दें , और नीचे भूतपूर्व सांसद का हस्ताक्षर युक्त नाम लिखा था । मैंने पर्ची फाड़ कर डस्टबिन में डाली और आदेश में लिखा कि मुझे ऐतबार हो गया है कि यथास्थिति के बावजूद मौके पर फसल बो ली गई है। अतः न्यायालय के संरक्षण में फसल कटाई का आदेश दिया जाता है ।
एक और घटना है , तब मैं परिवहन विभाग में उपायुक्त था और हमारे कमिश्नर थे श्री एन.के. त्रिपाठी । एक दिन दोपहर को उन्होंने मुझे अपने कक्ष में बुलाया और एक फाइल दे कर कहा कि ये इंदौर में ड्राइवर्स ट्रेनिंग स्कूल का प्रस्ताव है , इसे लेकर दिल्ली स्थित भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय में दे आओ । मैं कुछ असहज हुआ , त्रिपाठी साहब ने मेरी हिचकिचाहट को भांपा और मुस्कुरा कर बोले चिंता मत करो परिवहन में सचिव श्री विजय सिंह साहब हैं , उनसे बात हो गयी है , बस तुम चले जाओ । दूसरे दिन सुबह मैं परिवहन विभाग में पहुँच कर डायरेक्टर साहब से मिला तो उन्होंने मुझे अंडर सेक्रेटरी के पास भेज दिया । अंडर सेक्रेटरी साहब को मैंने प्रस्ताव दिया तो उन्होंने उसमे खामियां ढूंढनी चालू कर दीं । थोड़ी देर बाद हम दोनों ही डायरेक्टर साहब के पास गए , अंडर सेक्रेटरी ने उन्हें कमियों के बारे में बताया और फिर हम सब संयुक्त सचिव के पास पहुँचे जो एक सीनियर आय.ए.एस. आफिसर थे । डायरेक्टर साहब ने स्थिति बतायी और पूछा सर इन्हे कमी दूर कराने के लिए वापस भेज दें ? संयुक्त सचिव को जैसे कुछ भान सा था बोले नहीं पहले सेक्रेटरी सर से बात कर लेते हैं , और फिर हम तीनों हमारे पूर्व मुख्य सचिव श्री विजय सिंह के कमरे में पहुँचे । मैंने अपना परिचय दिया तो उन्होंने पूछा ले आये प्रस्ताव ? मैंने थोड़ा संकोच से कहा जी ले तो आया था पर ये कह रहे हैं कि इसमें कुछ कमी है । उनकी भवें तनीं , बोले “कमी ? व्हाट कमी ? किसने कहा “ मैंने डायरेक्टर साहब कि तरफ देखा तो उन्होंने झट ऊँगली अंडर सेक्रेटरी कि तरफ घुमाई कि सर इन्होने एक्जामिन किया है , विजय सिंह बोले आप लोग यही करते रहते हो,राज्यों से प्रस्ताव आते हैं , आप खामियां ढूंढते हो और फिर वापस कर देते हो , सारा फंड ऐसे ही लेप्स हो जाता है , कितना पैसा है आपके पास इस मद में अभी ? डायेक्टर साहब बोले अभी तो एक करोड़ होगा , विजय सिंह साहब बोले ” प्रोजेक्ट सेंक्शन किया जाता है अभी एक करोड़ रिलीज करो , बाकी फण्ड प्रोग्रेस रिपोर्ट आने के बाद दे देना और ये मामूली खामियां हैं , जो बाद में भी ठीक करा सकते हो , ठीक है ?” सब एक स्वर में बोले , ठीक है सर । अब विजय सिंह ने मेरी ओर देखा और कहा “आज सेंक्शन लेटर ले के जाना और सोमवार को आ कर जो कमिया बता रहे हैं उनकी पूर्ति कर जाना , ठीक है ? “ मैंने कहा ठीक है सर । उस दिन मैंने अनुभव किया कि जी.पी सिंह के आदर्श वाक्य को विजय सिंह जी ने कैसे चरितार्थ किया था ।