रविवारीय गपशप: अब समझ आया ‘ए टेल टोल्ड बाय एन इडियट’ का मतलब!
आज के जमाने में तो हर शासकीय संवर्ग का अपना संगठन है, जिसके सहारे उसे अपनी सेवा के दौरान आने वाली दुश्वारियों से निपटने का सहारा मिलता है। पर, पहले तो ज़िलों में पदस्थ संगी-साथी ही आपके सहारे हुआ करते थे। राजनांदगाँव में जब मुझे डोंगरगढ़ अनुविभाग का एसडीएम बनाया, तब मैं विभागीय रूप से ली जाने वाली राजस्व विषय की परीक्षा में पास नहीं था। इसका नतीज़ा ये था कि बतौर अनुविभागीय अधिकारी मैं मामले सुन तो सकता था, पर उस पर आदेश करने की मेरी अधिकारिता नहीं थी। मामलों को सुनकर मुझे किसी वरिष्ठ अधिकारी को भेजना होता था, जो मेरी रिपोर्टों के आधार पर फ़ैसले लिया करता था।
मेरे इस काम के लिए नियुक्त किए गए जीएस धनंजय साहब जो राजनांदगाँव ज़िले के एडीएम थे। धनंजय साहब वैसे तो बड़े सीनियर अधिकारी थे, पर मुझे अपने छोटे भाई की तरह स्नेह किया करते थे। बल्कि, मैं ये कहूं कि ज़िले में पदस्थ सभी वरिष्ठ अधिकारी मुझ जैसे प्रोबेशनर का ऐसा ही ध्यान रखते थे। ये रिवाज केवल अन्य अधिकारियों तक ही सीमित नहीं था, बल्कि कलेक्टर भी उसमें शामिल थे। जब मेरा विवाह हुआ, मैं डोंगरगढ़ का ही एसडीएम था। शादी कर के आने के बाद डोंगरगढ़ के परिचित साथी बोले पार्टी देनी चाहिए ताकि परिवार में नए सदस्य के आगमन की सबको खबर हो और सबसे परिचय भी हो सके।
पार्टी की तारीख़ तय की गई। मैंने तय किया कि ज़िले में पदस्थ अपने बाक़ी साथियों को भी आमंत्रित करूं। ज़िले के सब डिवीज़न के वरिष्ठों को तो फ़ोन पर अनुरोध कर लिया, पर ज़िले के बाक़ी अधिकारियों को जब अनुरोध करने गया तो उनके रुख़ से लगा कि वे सब औपचारिक रूप से ही आने का वादा कर रहे हैं। एसपी साहब ने तो कह भी दिया कि आनंद तुमने पार्टी डोंगरगढ़ में रखी है, यदि राजनांदगाँव रखते तो ज़रूर आता। पर, डोंगरगढ़ तो देखना पड़ेगा, कोई और काम नहीं हुआ तो प्लान करेंगे। मैं बाक़ी लोगों से मिलकर कलेक्टर साहब के पास गया, तब हर्षमंदर जी कलेक्टर हुआ करते थे।
कलेक्टर साहब से मैंने कहा कि सर शादी करके लौटा हूं, आपको आमंत्रित करने आया हूँ। सुनकर वे बड़े प्रसन्न हुए और घंटी बजाई। बोले धनंजय को बुलाओ। एडीएम साहब आए तो कलेक्टर ने कहा ‘आनंद शादी करके आए हैं, जो इनकी पार्टी की तिथि है। उस दिन राजस्व अधिकारियों और ज़िला अधिकारियों की बैठक डोंगरगढ़ में रख लो अपन सब चलेंगे, दिन में बैठक करेंगे और रात में पार्टी!’ मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। जब मैं जाने लगा तो बोले ‘सुनो ज़्यादा तामझाम मत करना, सादगी से ही पार्टी रखना।’ पार्टी वाली तारीख को पूरे ज़िले के अधिकारी एसपी साहब समेत आशीर्वाद देने के लिए मौजूद थे।
धनंजय साहब हर शनिवार आते और मेरे प्रकरण देखकर उस पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाते। एक बार हम ज़िले में आए किसी मंत्री के भ्रमण कार्यक्रम में साथ थे। क़ाफ़िला चल रहा था और हमारी जीप सबसे पीछे थी। किसी कार्यक्रम में जब भाषण चल रहा था, तो बातों बातों में मैंने धनंजय साहब से कहा कि सर मुझे एक बात समझ नहीं आती कि नरोना साहब ने अपनी किताब का ऐसा शीर्षक क्यों रखा ‘ए टेल टोल्ड बाय एन इडियट।’ धनंजय साहब कहने लगे अरे हम इडियट ही तो हैं। मैंने आश्चर्य से पूछा ‘वो कैसे?’ इस पर वे कहने लगे कि जो मंत्राणी जी भाषण दे रही हैं, ये हॉस्टल में हमारी वार्डन थीं। हम अपनी ज़रूरतों के लिए इनके आगे पीछे फ़िरा करते थे। हम पीएससी की तैयारी करा करते तो हमारा विशेष ध्यान रखतीं और कहा करती थीं कि भय्या आप लोग तो पढ़-लिख कर ज़रूर बड़े अफ़सर बनोगे! आज देखो उनकी बात तो सच निकली, पर हम अब भी उन्हीं के क़ाफ़िले की व्यवस्था देखने पीछे-पीछे फिर रहे हैं।