रविवारीय गपशप: कभी अहसान न बताकर उपकार करने वाले अफसर
सरकारी अफ़सरों को अक्सर खड़ूस समझा जाता है , लोग सोचते है कि ये तो कुर्सी के पीछे तन कर बैठे रहने के लिए हैं , पर ये पूरी सच्चाई नहीं है । राजनांदगाँव में जब मैं परिविक्षा पर डिप्टी कलेक्टर बन कर पहुँचा तो उन दिनों वहाँ ए.डी.एम. के पद पर मिश्रा जी पदस्थ थे । तहसीलदार से पदोन्नत होकर ए.डी.एम. बने मिश्रा जी उनकी बुज़ुर्गियत के कारण मुझे अपने से लगते थे , सो अक्सर ट्रेनिंग के सबक़ ख़त्म होते ही मैं उनके चेंबर में जा बैठता । चेंबर में चाय नाश्ता तो मिलता ही था , शाम को रेस्ट हाउस तक जाने की लिफ्ट भी मिल जाती । मैं देखता था कि जब शाम को वे घर जाने के लिए निकलते तो पूरे ऑफिस का चक्कर मारा करते , और बरामदे में जो भी कोई नागरिक मिलता उससे रुक कर पूछते “ क्या बात है , अभी तक कैसे रुके हो , वो अपनी तकलीफ़ सुनाता और वे यथा संभव उसकी समस्या सुलझाते और तब ना सुलझती तो दूसरे दिन अपने ऑफिस में आने को कहते ।
इसी तरह जब मैं सीहोर में पदस्थ हुआ तो वहाँ सीमा शर्मा जी ए.डी.एम. थीं । मैं तब एस.डी.एम. सीहोर था । एक बार की बात है , उन दिनों परिवहन विभाग के टेंप्रेरी परमिट देने के अधिकार कलेक्टरों को दे दिये गये थे , शाम के समय जब दफ़्तर ख़त्म हो रहा था , और हम अपनी अपनी गाड़ियाँ बुला कर घर जाने की जुगत में थे , तभी कलेक्टर का रीडर एक बुजुर्ग सज्जन को ले कर हमारी तरफ़ बढ़ा , उसने मुझसे कहा कि कलेक्टर साहब बंगले चले गये हैं और इनका बस के परमिट पर दस्तख़त हो नहीं पाये हैं , अब क्या करें ? मैंने कहा , अब क्या कर सकते हैं ? इन्हें समझा दें कि कल सुबह आ जायें । बुज़ुर्गवार सज्जन ने बड़ी चिंता में कहा “ कल सुबह तो मेरे बेटे की बरात जानी है , ये बारात की बस का परमिट था , नहीं हुआ तो बड़ी दिक़्क़त होगी । कलेक्टर शायद अजय सिंह बघेल हुआ करते थे । सीमा मैडम ने रीडर के हाथ से कागज लिये और कहा , यहीं रुकना और बंगले की और चल दीं । थोड़ी देर बाद वे दस्तख़त शुदा परमिट लेकर वापस आयीं और कहा ये लो , अब ले जाओ बारात ।
बिना अहसान जताये मदद करने में मेरे परिवहन आयुक्त रहे एन.के.त्रिपाठी का भी जवाब नहीं था । परिवहन विभाग की पदस्थापना के दौरान मैं एक माह के लिए सिंगापुर ट्रेनिंग कोर्स पर गया था । लौट कर आया तो किसी काम के सिलसिले में मेरा भोपाल जाना हुआ । प्रमुख सचिव के कक्ष के बाहर स्टेनो के कमरे में बैठ मैं अपनी बारी का इन्तिजार कर रहा था कि प्रमुख सचिव के निज सहायक ने मुझसे कहा “ आप तो सिंगापुर घूम रहे थे पर आप पर आई बला को आपके परिवहन आयुक्त ने बड़े खूबसूरत ढंग से मोड़ दिया और आप बच गये “ । मैं कुछ समझा नहीं तो मैंने पूछा साफ़ साफ़ बताओ क्या बात है ? निज सहायक ने आलमारी से एक फ़ाइल निकाल कर मुझे दिखाई । फ़ाईल में मंत्रालय के विभागीय अवर सचिव व उपसचिव की एक टीप थी जिसमें लिखा था कि “आनन्द शर्मा के विदेश जाने से विभाग की गतिविधियों पर प्रभाव पड़ रहा है , और इनके द्वारा समय पर विधानसभा प्रश्नों का जवाब नहीं भेजा जाता है ,इसलिए इनके स्थान पर किसी अन्य अधिकारी को उपपरिवहन आयुक्त के पद पर पदस्थ करने को सामान्य प्रशासन विभाग को लिखा जाये “। प्रमुख सचिव ने उस पर आयुक्त की टीप माँगी और त्रिपाठी जी ने बड़ी स्पष्टता से लिखा कि वर्तमान उपआयुक्त अपने कर्तव्यों का भलीभाँति निर्वहन कर रहे हैं , और ट्रेनिंग में बाहर जाने पर अधिकारी को उसके कर्तव्यों से हटाने की परंपरा नहीं है । परिवहन आयुक्त की टीप पर प्रमुख सचिव में सहमत होते हुए नस्ती दाखिल रिकॉर्ड होने लिख दी थी । मुझे आश्चर्य था कि इस बाबत त्रिपाठी जी ने मुझसे कुछ कहा ही नहीं था और बिना मेरे जाने ये बला टल चुकी थी ।