रविवारीय गपशप : रंगपंचमी और मां जानकी के मंदिर में संतान पाने की मनौती!

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रविवारीय गपशप : रंगपंचमी और मां जानकी के मंदिर में संतान पाने की मनौती!

होली के रंग अभी भी चेहरों पर हैं और रंगपंचमी की धूमधाम की तैयारियाँ चल रही हैं । हमारे देश की संस्कृति भी रंगबिरंगी है । ढेर सारे त्योहारों हैं , और हर त्योहार के पीछे भी ना जाने कितनी कहानियाँ जुड़ी हुई हैं , ढेर सारी ऐतिहासिक , पौराणिक और उनसे जुड़ी हुई बहुत सी लोककथाएँ । भक्त प्रह्लाद और हिरणाकश्यप की कहानी तो सब जानते ही हैं , कि कैसे प्रह्लाद को जलाने के प्रयास में होलिका ख़ुद जल गई थी । बौद्ध धर्म में लोग मानते हैं कि बोधि ज्ञान प्राप्त होने के बाद तथागत इसी दिन कपिलवस्तु पधारे थे और उनके आगमन के उल्लास को कौमुदी उत्सव या होली के रूप में मनाया गया था । जैन धर्म में कहते हैं , होली आत्मशुद्धि का त्योहार मानते हैं और इसे धूपावली भी कहते हैं । कहते हैं भगवान शिव ने जब कामदेव को भस्म किया तो उसके इस त्याग को लोग होली के रूप में मनाने लगे । रत्नावली नाटिका जिसे चक्रवर्ती सम्राट हर्ष ने छटी शताब्दी में लिखा था , उसमें भी होली के त्योहार मनाने का जिक्र आता है । त्योहार मनाने के भी अपने अलग अलग तरीक़े हैं । ब्रज में लट्ठमार होली होती है तो बुन्देलखण्ड में धुलेड़ीं के दिन लोग होली नहीं खेलते क्योंकि उस दिन झाँसी की रानी के पति का स्वर्गवास हो गया था ।


रविवारीय गपशप: जीवन की उलझने और उन्हें सुलझाने की जुगत! 


कृष्ण का संबंध तो होली से बखूबी है पर रामायण के पात्र भी होली के त्योहार से जुड़े हैं । मैं जब विदिशा में कलेक्टर था तो होली के बाद पड़ने वाली रंगपंचमी के त्यौहार में हमारे एस.पी. साहब ने कहा कि हमें करीला चलना पड़ेगा , पंचमी में वहाँ बड़ा मेला भरता है । करीला यूँ तो अशोकनगर जिले में है ,पर उसकी सीमा विदिशा जिले से लगी होने के कारण विदिशा जिले में इस मेले का काफी हद तक विस्तार रहता है और लाखों लोग इस मेले में विदिशा जिले से ही आते हैं । जब मैं अपने एस.पी. साहब के साथ करीला मेले की व्यवस्थाएँ देखने पहुंचा तो पता लगा कि यहाँ माँ जानकी का एक प्राचीन मंदिर है । किंवदंती है कि यहीं पर ऋषि बाल्मीकि का आश्रम था , जहाँ वे वनवास के दौरान रहीं थीं और यहीं लव-कुश का जन्म हुआ था ।कहते हैं लव कुश के जन्म में स्वर्ग से अप्सराये आयीं थीं और ख़ुशी में खूब नाची थीं , जिसे हम बधाई का नाच कहते हैं । अब लोग इस मंदिर में रंगपंचमी के दिन आते है और संतान की कामना से प्रार्थना करते हैं और मंशा पूरी हो जाये तो राई नृत्य करवाते है । वे अप्सराएँ अब राइ नर्तकियों के रूप में लोगों की मनोकामनाएं पूरी होने पर अपनी नृत्य की अदाकारी पेश करती हैं । श्रद्धालु अपनी अपनी क्षमता अनुसार एक राई यानी एक नर्तकी का डाँस या ग्यारह राई अथवा एक सौ एक राई करवाते हैं । समाज के बड़े और संपन्न लोग अपनी ओर से नर्तकियों का इन्तिजाम करके आते है , इसके लिये उन्हें पैसे ज्यादा खर्चने पड़ते है , पर ऐसा नहीं की गरीब की टेक है नहीं है । मेले स्थल पर ही बेडनियों का जमघट रहता है , जो थोड़े से ठुमके तो पचास रूपये में भी लगा देती हैं । हाँ संतान के अलावा भी कई और मनोकामनाएं लोग करते हैं और पूरी भी खूब होती हैं तभी तो जगह जगह नर्तकियों के नृत्य की महफ़िल जमी रहती है । प्रदेश के बड़े बड़े राजनेता भी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मन्नत माँगते हैं और पूरी होने पर उनकी ओर से भी बेड़नियों के नृत्य के आयोजन होते रहते हैं । देवी का आभार जताने के लिए कराए जा रहे ऐसे आयोजनों में जनसामान्य भी इस मनोरंजन को पाने में कोई कसर नहीं छोड़ते । है न दिलचस्प हमारी संस्कृति के रंग , तो सभी को होली के अवसर पर ढेर सारी शुभकामनाएँ।