रविवारीय गपशप: दिनभर राजा-रानी की कहानियां और रात का डर!
आज पर्यटन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश का डंका बज रहा है। कहीं वनराज की धमक, कहीं चीते की चमक, कहीं अध्यात्म से ओतप्रोत महाकाल लोक और ओरछा के रामराजा का वैभव। कहीं पुरातत्व और दर्शन के गठजोड़ से भरा खजुराहो और मांडू का सौंदर्य। इन सबने मध्य प्रदेश में आने वाले पर्यटकों की संख्या में भारी इजाफा किया है। लेकिन, पावस के इन दिनों में जो सुपरहिट डेस्टिनेशन है, वो है माण्डू जिसे यूनेस्को ने भी ‘बेस्ट वर्ल्ड हेरिटेज सिटी’ घोषित किया है।
बारिश की हरियाली में मांडू आने का अनुभव स्वर्गिक सुख है। प्रकृति की गोद में बने इस बादलों के शहर में इन दिनों जैसे साक्षात कामदेव ही बसा करते हैं। राजा भोज और उनके सिंहासन बत्तीसी की कहानियां किसने नहीं सुनी होंगी। ये मांडू उन्ही परमार शासकों के दौरान विकसित हुआ। सैकड़ों बरस पहले बने दीवाने ख़ास की ख़ास बात ये है कि यहां अंदर की आवाज बाहर नहीं जाती। परमार काल के बाद मांडू, गौरी और ख़िलजी सुलतानों की रियासत रहा है, जो वास्तव में थे तो दिल्ली सल्तनत के गवर्नर पर, पर कालांतर में ख़ुद शासक बन बैठे। इनमें से कुछ जो कलाप्रेमी और संगीत मर्मज्ञ थे, उनसे ही मांडू का विस्तार हुआ।
आप लोगों को शायद ही यक़ीन हो कि उस जमाने में मांडू की आबादी 9 लाख थी और इसका ज़िक्र तूजके-जहांगीरी और फ़रिश्ता की डायरी में भी मिलता है। मांडू में वास्तुकला का अद्भुत प्रयोग है। जहाज़ महल की आकृति तो ऐसी है कि आपको लगेगा मानो आप सचमुच किसी जहाज़ पर खड़े हो और चारों और पानी का सैलाब है। अशर्फ़ी महल जो वास्तव में कभी पुस्तकालय हुआ करता था, बाद में नवाब की बेगमों का वज़न घटाने के लिए प्रयोग किया जाता था, के अलावा दीवाने आम, हिंडोला महल जैसी अनेक इमारतें है जो वास्तु कला का अद्भुत नमूना हैं। फिर बाज बहादुर का महल और रानी रुपमती का महल भी है जिनके प्रेम के क़िस्से पर बॉलीवुड ने फ़िल्म भी बनाई है।
मांडू आने वाले पर्यटक भी रुपमती और बाज़ बहादुर के प्रेम की दास्ताँ ज़रूर सुनना चाहते हैं और गाइड भी तड़का लगा लगाकर जो भी संभव हो, सुना देते हैं। बाज़ बहादुर मांडू का राजा होने के साथ आला दर्जे का गायक व रागों का ज्ञान रखने वाला संगीतज्ञ था और राग दीपक गाने में उस्ताद थे। बाज़बहादुर जब जंगल में शिकार करने गया था तब उसकी मुलाक़ात रुपमती से हुई और उसे ये भान हुआ कि रूपमती न केवल अनिंद्य सुंदरी है, बल्कि सुरीले कंठ की मलिका भी है। उसने रूपमती से प्रार्थना की कि वो उसके साथ चले। रुपमती ने दो शर्तें रखीं। पहली तो ये कि वो उसके महल में नहीं रहेगी, बल्कि अपनी सखियों के साथ अलग रहेगी और बाज़बहादुर तभी उससे मिल सकेगा जब उसकी मर्ज़ी होगी।
इस तरह रुपमती के लिए अलग महल बना। दूसरी शर्त ये थी कि महल ऐसे स्थान पर होना चाहिये जहाँ से वो रोज नर्मदा नदी के दर्शन कर सके सो इसकी भी व्यवस्था हुई। रूपमती के महल में वॉच टावर पर खड़े होकर हम आज भी नर्मदा नदी के दर्शन कर सकते हैं। इसे आधुनिक पर्यटक रुपमती पेवेलियन कहने लगे हैं। कहानी लम्बी और दिलचस्प है जिसे यदि आप सुनना चाहते हैं तो फिर आपको मांडू जाना होगा।
कुछ बरस पहले जब धार ज़िले में कलेक्टर श्री दीपक सिंह थे, तो मेरा मांडू जाने का कार्यक्रम बना और इन सभी नज़ारों का हमने तब ही लुत्फ़ उठाया था। मांडू में जहाज़ महल से लगा हुआ एक गेस्ट हाउस है, जो यूं तो पुरातत्व विभाग के अधीन है, पर उस पर नियंत्रण कलेक्टर का ही रहता है। दीपक से मैंने दरखास्त की कि हमें उसी गेस्ट हाउस में रुकाया जाए। मैं अपनी पत्नी और दोनों बेटियों के समेत भ्रमण पर था और गेस्ट हाउस में दो ही कमरे थे, तो दोनों ही कमरे हमने अपने लिए आरक्षित करा लिए। दिन भर राजा रानियों की दास्तान सुनते हुए रात में जब हम गेस्ट हाउस पहुंचे, तो पता लगा कि गेस्ट हाउस क्या वो तो जहाज़ महल का बाहिरी हिस्सा ही था, जो मुख्य द्वार पर रखवालों के लिए बना होगा। जिसके दो कमरे अब गेस्ट हाउस बना दिए थे।
हमें वहाँ ठहराकर स्टाफ ये कहकर बाहर चला गया कि यहाँ रात को कोई रुक नहीं सकता। क्योंकि, पर्यटकों के लिए दरवाज़े बंद कर दिये जाते हैं। चौकीदार भी दूर गेट पर ही मिलेगा तो आप लोग कुछ आवश्यकता पड़ने पर फ़ोन से ही बताइएगा। ख़ाना-पीना सब हो चुका था, तो शुभारत्रि कह हमने अपने खैरख्वाहों को रवाना किया और अपने कमरों में व्यवस्थित हो गये। चाँदनी रात में सामने जहाज़ महल चमक रहा था और उसकी ख़ूबसूरती को निहारते हम दिन में सुनी राजा-रानियों को कहानियों को दुहरा रहे थे। रात गहराने लगी तो हम अपने अपने कमरों में सोने चल दिये। मैं और मेरी श्रीमती सोने की तैयारी कर रहे थे कि अचानक मोबाइल पर घंटी आयी। मैंने फ़ोन उठाया तो मेरी बड़ी बेटी बोली ‘पापा बाथरूम में बेसिन का नल बंद नहीं हो रहा है और पानी फैल रहा है समझ नहीं आ रहा है क्या करें। पानी बंद न हुआ तो रात भर में पानी ख़त्म हो जाएगा और सुबह परेशानी होगी।
बात सही थी, गेस्ट हाउस का दूसरा कमरा सामने खुले गलियारे से होकर दूसरे किनारे पर था। मैंने अपनी पत्नी की ओर देखा और कहा कि जाकर देख आओ, वाश बेसिन के नीचे कोई नॉब होगा, बंद कर आओ। श्रीमती जी बोलीं ‘मैं इतनी रात में अकेले नहीं जा सकती, दिन भर न जाने क्या क्या सुना है इन महलों के बारे में। मुझे आश्चर्य हुआ, आमतौर पर मैंने पाया था कि मेरी पत्नी कभी डरती नहीं थी। सैकड़ों बार सरकारी बँगले में उसे अकेला छोड़ मैं दौरे किया करता था। मैंने कहा अच्छा तुम यहीं रुको, दरवाज़ा बंद कर लो मैं जाकर देख आता हूँ। श्रीमती जी बोलीं इस महलनुमा कमरे में मैं अकेली भी नहीं रुक सकती। मुझे हँसी छूट गई और मैं बोला चलो साथ में चल के देखते हैं, बच्चों को क्या परेशानी है।