

रविवारीय गपशप : नवोदय विद्यालय का वो बच्चा जिसने सोच को नई दिशा दी!
आनंद शर्मा
कभी भी किसी शख्स को उसकी कमजोरी के कारण कम नहीं आंकना चाहिये , क्योंकि ईश्वर ने ना जाने किस को किस अंज़ाम के लिए रचा है । हममें से अधिकांश लोग इस आदत के शिकार हैं कि किसी मनुष्य की विकलांगता को उसकी कमज़ोरी मान बैठते हैं , और फिर वो ग़लतख़याली तभी दूर होती है जब वह शख़्सियत अपने आप को साबित करती है । हज़ारों संगीतकार , खिलाड़ी , चित्रकार और वैज्ञानिक ऐसे हुए हैं , जिनकी शारीरिक कमज़ोरी उनके जज़्बे के सामने छोटी पड़ी है । अपनी नौकरी के शुरुआती दिनों में मुझे भी इसका एक अनुभव हुआ था । राजनांदगांव जिले में पदस्थापना के कुछ समय बाद ही मुझे डोंगरगढ़ अनुविभाग में अनुविभागीय अधिकारी के रूप में पदस्थ कर दिया गया । उन दिनों नवोदय विद्यालयों की शुरुआत हुई ही थी , और शर्त के मुताबिक़ ऐसे विद्यालय जिले मुख्यालय से विलग ही खोले जा सकते थे और इसी कड़ी में राजनांदगांव जिले का नवोदय विद्यालय डोंगरगढ़ में प्रारंभ किया गया । विद्यालय के चेयरमैन तो कलेक्टर थे पर विद्यालय के कामों का साधारण संचालन स्थानीय एस.डी.ओ. होने के नाते मुझे ही करने को अधिकृत कर दिया गया था । विधालय के भवन निर्माण का कार्य प्रारंभ हो चुका था और तब तक नवोदय विद्यालय का संचालन तहसील के पास रिक्त पड़े शासकीय हाईस्कूल के भवन में होने लगा था । एक दिन की बात है , मैं अपने कार्यालय में बैठा था जरूरी काम निपटा रहा था तभी एक ग्रामीण सज्जन अपने बच्चे को लेकर मेरे समक्ष उपस्थित हुए और कहने लगे “ साहब ये मेरा बेटा है , जिसने नवोदय की प्रवेश परीक्षा पास की है , पर प्रिंसिपल साहब कह रहे हैं कि इसका प्रवेश नवोदय में नहीं हो सकता क्योंकि ये पैरों से विकलांग है । मैंने बच्चे को ध्यान से देखा , जो मेरे समक्ष जमीन पर बैठा था , पर जिसकी आँखों में ढेर सारी आशायें मानो हवा में तैर रही थीं । मैंने बच्चे और उसके पिता से कहा कि वो मुझे थोड़े समय बाद लंच टाइम में नवोदय विद्यालय में मिलें और अपने बचे कामकाज निपटाने लगा । नवोदय विद्यालय तहसील के सामने ही था और मेरा घर भी उससे थोड़ी ही दूरी पर था , तो लंच होते ही मैं सीधे स्कूल के आफिस में जा पहुँचा । प्राचार्य महोदय को पहले ही ख़बर करवा दी गई थी सो वे भी कार्यालय में ही थे और कार्यालय के बाहर वही ग्रामीण अपने बेटे के साथ खड़ा था । मैंने प्रिंसिपल साहब से कहा कि जब इस बालक ने प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की है तो आप किस आधार पर इसे प्रवेश देने से इंकार कर रहे हैं । प्राचार्य बोले “ सर ये बोर्डिंग स्कूल है , बच्चों को अपना बिस्तर ख़ुद बिछाना और उठाना पड़ता है , शौचालय जाना और भोजन करना ये सब करना होता है । हॉस्टल ऊपर की मंजिल पर है ये कैसे चढ़ेगा ? बच्चे का पिता जिसे मैंने पास बुला लिया था , कहने लगा सर ये सब कर लेगा , ऑफिस की सीढ़ी भी ये ख़ुद चढ़ कर आया है । मैंने सामने देखा , ऑफिस में जहाँ हम बैठे थे वहाँ तक आने में दस बीस सीढ़ियाँ थीं । मैंने फिर प्रश्नवाचक निगाह से प्रिंसिपल को देखा तो वो फिर कहने लगे “ अरे भाई ये स्कूल अभी जिस बिल्डिंग में लग रहा है वहाँ नहाने के लिए नल कनेक्शन नहीं है , कुँए से पानी खींच कर नहाना होता है , ये पैर से मजबूर बच्चा कैसे कुँए में चढ़ेगा और कैसे नहाएगा ? मैंने बच्चे को देखा और कहा चलो कुँए पर चलते हैं । हम सब विद्यालय के पीछे स्थित कुँए पर पहुँचे । कुँए की मुँडेर तक पहुँचने के लिए भी सीढ़ियाँ थीं । मैंने बच्चे को इशारा कर के पूछा कर लोगे ? बच्चे ने मुस्कुरा कर सर हिलाया और अगले ही पल फुर्ती से अपने हाथों के सहारे एक के बाद एक सीढ़ियाँ फ़लांगता कुँए की मुड़ेर तक जा पहुँचा और पानी खींचने के लिए बनी लोहे की रॉड से लटक रही बालटी को एक हाथ से पकड़ कुँए पर पलट दिया । रस्सी सरसराती हुई बाल्टी पानी में छप से जा गिरी । दूसरे ही पल उस बालक ने अपनी एक टाँग मुड़ेर पर टिकाई और दोनों हाथों से रस्सी खींचना चालू किया । कुछ ही मिनटों में पानी से भरी बाल्टी जगत पे आ लगी , बालक ने हाथ बढ़ाया और पानी से भरी बाल्टी को खींच कर अपने ऊपर पलट लिया । हम सब उसकी हाथों की ताक़त अपनी आँखों से देख चकित थे , और पानी में भीगे उस बच्चे को देख प्रिंसिपल साहब के सभी तर्क अब ठंडे पड़ चुके थे । उसी दिन बच्चे का नवोदय में एडमिशन मुक़र्रर हो गया । साल भर बाद एक दिन मैं ऑफिस जाने के लिए तैयार होकर घर से निकल ही रहा था कि नवोदय के प्रिंसिपल हाथों में मिठाई का डब्बा लिए मेरे सामने आ खड़े हुए और बोले साहब लीजिए मुँह मीठा करिए , मैं कुछ पूछता इसके पहले ही उन्होंने आगे कहा “ उस दिन आपने मेरे हाथों एक बड़ा पाप होने से बचा लिया , आज रिजल्ट निकला है और उस विकलांग बच्चे ने पूरे स्कूल में टॉप किया है “ । मैंने खुशी खुशी मिठाई खाई और कार्यालय के लिए रवाना हो गया ।