रविवारीय गपशप: मोबाइल क्रांति और संदेश से उपजी गलतफहमियां!

रविवारीय गपशप: मोबाइल क्रांति और संदेश से उपजी गलतफहमियां!

परसों शाम राजगढ़ से कुछ लोग मिलने आये और वल्लभ भवन में मेरे कक्ष तक आने के लिए प्रवेश पत्र का निवेदन किया , मैंने अपने निज सहायक को इस बाबत सूचना करने का कह दिया और निश्चिंत हो गया । थोड़ी देर बाद मिलने के लिए पहुँचे सज्जन का फ़ोन आया कि पास बनाने की सूचना तो पहुँची ही नहीं है । मैंने अपने स्टेनो से पूछा तो उसने कहा “ सर अचानक सारे फ़ोन बंद हो गये हैं , और नीचे प्रवेश पत्र कार्यालय पर सूचना का कोई जरिया नहीं है , नीचे ही किसी को संदेश के साथ भेजना होगा । मैंने कहा सुरक्षा कर्मियों के पास वायरलेस सेट होते हैं , उन्हें ढूँढ कर उनके माध्यम से संदेश पहुँचा दो । युक्ति काम कर गई और दूर दराज़ से आये उन सज्जनों के प्रवेश पत्र जारी हो गए ।

 

मुझे महसूस हुआ कि दूरसंचार की क्रांति के बाद , जिसमें मोबाइल और सोशल मीडिया ने संवाद को बहुत सुगम कर दिया है , पुलिस विभाग में सूचना के आदान प्रदान के लिए इस्तेमाल होने वाले वायरलेस सेट अब भी बहुत उपयोगी हैं । ये और बात है कि इसके संवाद प्रसारण से जुड़ी कई दिलचस्प दास्तान भी हैं । भोपाल आने के पूर्व जब मैं उज्जैन में पदस्थ था तो एक अजीब घटना हुई । उज्जैन में पदस्थ पुलिस अधीक्षक को पता चला कि कोई अधिकारी वायरलेस में वार्ता समाप्त होने के बाद जय हिन्द बोलने के बज़ाय कुछ और कहने लगे हैं । एस.पी . साहब ने समझाने के लिहाज़ से निर्देश दे दिये कि वायरलेस सेट पर बात करने के दौरान अपनी जाति , धर्म या वर्ग में प्रचलित संबोधन के बजाए पूर्व निर्धारित व प्रचलित परंपरा का का ही पालन करें । बस फिर क्या था , बवाल मच गया , किसी ने सोशल मीडिया पर संदेश चला दिये और एस.पी. साहब को ना जाने कहाँ कहाँ से फ़ोन आने लगे कि आप किसी को कोई संबोधन करने से मना कैसे कर सकते हो ? तंग आकर एस.पी. साहब को अपना मोबाइल बंद कर दूसरा नम्बर लेना पड़ा तब कहीं जाकर समस्या दूर हुई ।

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पुराने समय में पुलिस कंट्रोल रूम के माध्यम से संदेश प्रसारित होते थे क्योंकि हैंडसेट की क्षमता अधिक नहीं हुआ करती थी , और इस कारण प्रसारित संदेश भाषा की अस्पष्टता से कुछ और ही कहानी बयाँ कर बैठते थे । उन दिनों मैं उज्जैन में जिला मुख्यालय पर अनुविभागीय अधिकारी के पद पर पदस्थ था । एक दिन संदेश आया कि मुख्यमंत्री महोदय अपने दौरे में निकले हैं और उज्जैन स्थित हवाई पट्टी पर प्लेन से उतर कर हेलीकाप्टर से आगे जाएँगे । यानी उज्जैन की हवाई पट्टी में केवल वाहन की अदला बदली होनी थी । आते आते ये खबर भी आई कि साहब के साथ मैडम भी हैं । कलेक्टर ने मुझे कहा कि “ वे और एस.पी. हवाई पट्टी जाते हैं और तुम यहीं सर्किट हाउस में रहो ताकि कभी ये प्रोग्राम बने कि कुछ देर के लिए विश्राम भी करना है तो कोई सर्किट हाउस में रह कर पहले से अगवानी के लिए उपस्थित रह सके और आवश्यक प्रोटोकॉल प्रबंध कर सके । मैं सर्किट हाउस आकर बैठ गया , तभी मेरे ड्राईवर ने आकर कहा की सेट (वायरलेस ) पर आपके लिए काल है , मैं तुरंत उठ कर जीप के पास गया । कंट्रोल रूम से वायरलेस पे बैठे सज्जन ने मुझसे कहा कि कलेक्टर साहब ने कहा है कि हवाई पट्टी पर फुग्गे भेज दें | मै कुछ अचरज में आया ,मैंने फिर पूछा कि क्या मंगा रहे हैं ? उसने कहा सर फुग्गे …यानी कि गुब्बारे |

 

मुझे कुछ समझ नहीं पड़ी पर कोई और साधन न था कि बात कर सकें और वहां कोई लेंड लाईन फोन भी नहीं था । गुब्बारे क्यों बुलाये होंगे ये मैं सोच ही रहा था कि पुनः ड्राईवर दौड़ा दौड़ा आया और कहा फिर सेट पर काल है । मैं पुनः गया तो सेट पर आवाज़ आयी कि सर गुब्बारे नहीं बुकें बुलवाई हैं ,मैं कुछ और अचंभित हुआ ,पूछा बुकें ? दूसरी तरफ से कहा गया जी सर बुकें ..यानि कि किताबें …। मैंने पूछा भाई कौन सी किताबें ? मेधा पुरुष ने जबाब दिया कि ये तो नहीं बताया कि कौन सी किताबें , पर किताबें बुलाई हैं । मैं फिर सोच में पड़ गया कि ऐसा कौन सा कानूनी मसला सामने आ गया कि किताबों की जरुरत पड़ गयी और फिर कौन सी किताब ..भू राजस्व संहिता भेजूं कि दंड प्रक्रिया संहिता या कुछ और ? मैंने सेट पर अनुरोध किया कि किताबों के नाम तो पूछ कर बताओ । पांच मिनट बाद पुनः सेट पे आवाज गूंजी ,कण्ट्रोल टू एस डी एम सर ..मैंने तुरंत जबाब दिया ,,,जी बताइये । और अबकी बार जो उसने जबाब दिया उसे सुन कर मेरी हंसी छुट गयी ..बोलने लगे सर बुके बुलाये हैं बुके… यानी की गुलदस्ते । मेरी जान में जान आई और तुरंत आदमियों को दौड़ा कर ये फरमाइश पूरी की गयी ।