जब उसे 10th बोर्ड में 93.4% मार्क्स आए तब उसने एक इंटरव्यू में सहज ही कह दिया था कि मैं बड़ी होकर कलेक्टर बनूंगी और NEWS की हेडिंग बन गई ‘कलेक्टर बनना चाहती है सुरभि’ और यह NEWS जीवन का एक अभिन्न अंग बनकर उसके मन में छप गई थी और उसने IAS क्रैक करके ही दम लिया।
मैंने इस NEWS को कई बार पढ़ा और हर बार जब मैं निराश हो जाती थी तब यह NEWS ही याद दिलाती थी कि मुझे कलेक्टर बनना है। Railway में इंजीनियर की नौकरी करने के बाद एक बार अपनी मां से कहा कि अब मैं कुछ नहीं करना चाहती,अब मैं बहुत थक गई हूं, तब उसकी मां ने फिर उस NEWS की याद दिलाई और कहा- तुम्हारे जीवन का लक्ष्य कलेक्टर बनना है,अभी और मेहनत करो, तुम इसे प्राप्त करोगी और मां की बात को आत्मसात कर एक बार फिर उस NEWS स्टोरी को पढ़ा और जुट गई अपने मिशन में और 2016 की IAS परीक्षा में पूरे देश में 50वीं रैंक हासिल की।
जी हां हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के सतना जिले के एक छोटे से गांव अमदरा की रहने वाली सुरभि गौतम की। अमदरा से ही उसने टांट पट्टी वाले हिंदी मीडियम स्कूल से अपनी 12 वीं तक की पढ़ाई की। ऐसे स्कूल में जहां मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव था। वहां न तो अच्छे टीचर थे और ना ही पढ़ाई लिखाई की अच्छी व्यवस्था। किताबें समय पर नहीं मिलती थी। बिजली पानी की अच्छी व्यवस्था नहीं थी। रात में सुरभि को लालटेन जलाकर पढ़ाई करनी पड़ती थी।
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उसने IAS बनने का सपना दसवीं क्लास से ही देखना शुरू कर दिया था जब उसके 93.4 प्रतिशत अंक आए थे।सुरभि ने
यह सिद्ध कर दिखाया कि अगर जोश हो, जुनून हूं, जज्बा हो तो भाषा आड़े नहीं आती है। जिंदगी में कुछ बेहतर करने के लिए भाषा कभी रुकावट नहीं बनती। सुरभि उन लोगों के लिए एक करारा जवाब है, जिन्हें या तो अपने हिंदीभाषी होने पर शर्म आती है या फिर जो हिंदी को बहुत गया गुजरा समझते हैं, लेकिन सुरभि गर्व से कहती है कि उनकी पहली से लेकर बारहवीं तक की पढ़ाई हिंदी मीडियम स्कूल से हुई है।
सुरभि के पिता मैहर सिविल कोर्ट में वकील हैं और मां सुशीला गौतम गांव के हायर सेकेंडरी स्कूल में टीचर।
सुरभि बचपन से ही पढ़ने में मेधावी रही है। सुरभि ने गेट, इसरो,IES, एमपीपीएससी, आईएएस आदि देश की लगभग सभी कठिन माने जाने वाली परीक्षाएं पास की हैं। यहां तक पहुंचना सुरभि के लिए आसान नहीं था।
जानते हैं, सुरभि के सफर के बारे में
मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में कन्या के जन्म पर कुछ खास प्रसन्नता नहीं हुई थी। केवल उनके मां-बाप खुश थे पर परिवार के लिए यह बाकी दिनों जैसा था। सुरभि के परिवार में उस समय कुल 30 सदस्य थे जिनमें कई सारे बच्चे भी शामिल थे। सुरभि भी परिवार के बाकी बच्चों की तरह वहीं के एक साधारण हिंदी मीडियम स्कूल में जाने लगीं और दूसरे बच्चों के साथ पलने लगीं। उनका बचपन एकदम साधारण तरीके से बीत रहा था। कोई बच्चों पर खास ध्यान भी नहीं देता था।
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जब पहली बार हुई तारीफ
सुरभि के घर में इतने लोग थे कि किसी के पास काम से वक्त नहीं था जो किसी पर ध्यान दे, खासकर बच्चों पर। वह जब पांचवी क्लास में थी तो उनका बोर्ड का रिजल्ट आया जिसमें उनके मैथ्स में 100 में 100 नंबर आये थे. उनकी कॉपी देखकर टीचर ने सुरभि की तारीफ की और उन्हें मोटिवेट किया की तुम आगे और भी अच्छा करने की क्षमता रखती हो। वो उनकी तब तक की जिंदगी का पहला मौका था कि उन्हें किसी ने नोटिस किया था। बस उसी पल वे समझ गईं की अगर थोड़ी भी इंपॉर्टेंस पानी है या नज़र में आना है तो पढ़ाई ही एकमात्र तरीका है। उस दिन से सुरभि ने भीड़ से अलग अपनी पहचान बनाने के लिए पढ़ाई को जरिया बनाने की ठान ली।
दसवीं में पत्रकार के सामने कह दिया था कलेक्टर बनूंगी
सुरभि की सफलता की तो बस अभी शुरुआत हुई थी। उनका दसवीं का रिजल्ट आया तो इस बार उन्होंने मैथ्स के साथ ही साइंस में भी 100 में 100 अंक प्राप्त किए थे। साथ ही उनकी अच्छी रैंक भी आयी थी। ऐसे में एक पत्रकार उनका इंटरव्यू करने पहुंचा और उनसे पूछा कि बड़े होकर क्या बनेंगी। सुरभि ने इसके पहले कभी गंभीरता से नहीं सोचा था कि केरियर किस क्षेत्र में बनाएंगी। उन्होंने सहज जवाब दिया कि नहीं पता। इस पर उन्हें कहा गया कि ये क्या जवाब हुआ, कुछ तो कहिये तो उन्होंने ऐसे ही जो दिमाग में आया कह दिया कि बड़े होकर कलेक्टर बनूंगी, बस अगले दिन की हेडलाइन में यह छप गया।दरअसल इस NEWS के साथ ही सुरभि के मन में भी कहीं कलेक्टर बनने का सपना छप गया था जो आगे चलकर सामने आया।
जब रिमेटिक फीवर की समस्या हुई
12 वीं क्लास तक सुरभि को रिमेटिक फीवर की समस्या थी जिसके चलते उनके पेरेंट्स उन्हें हर दिन में गांव से 120 दूर जबलपुर डॉक्टर के पास लेकर जाया करते थे। हाई डोज इंजेक्शन दिए जाते थे। इस समस्या के दौरान सुरभि को शारीरिक तौर पर तेज दर्द का सामना करना पड़ता था। उनकी हड्डियां कमजोर हो चुकी थी लेकिन उसने हिम्मत को कभी कमजोर नही होने दिया।
गांव की पहली लड़की जो बाहर पढ़ने गयी
सुरभि पढ़ाई में लगातार कमाल कर रही थी और उनको PCM में सबसे ज्यादा अंक लाने के कारण एपीजे अब्दुल कलाम स्कॉलरशिप भी मिल गयी थी। 12वीं के बाद सुरभि गांव से बाहर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए गयीं और वहां की पहली लड़की बनी जो गांव से बाहर पढ़ने गयी।
जब तय किया कि इंग्लिश पर कमांड करके ही रहूंगी
क्लास में पहुंची तो टीचर्स से छिपती घूमीं क्योंकि एक गांव की लड़की के लिए सब कुछ बहुत नया और अनोखा था खासकर इंग्लिश भाषा। सब बच्चे जहां इंग्लिश में आंसर दे रहे थे वहीं सुरभि सवाल का जवाब जानने पर भी इंग्लिश न आने की वजह से नहीं दे पायीं।
लैब में एक्सपेरिटमेंट नहीं कर पायीं क्योंकि उनके लिए सब नया था। वो उनकी जिंदगी का सबसे खराब दिन था। हॉस्टल आकर वे खूब रोयीं और घर फोन करके कहा कि वापस आ रही हैं। उनकी मां ने बस इतना ही कहा कि अगर तुम वापस आ गयीं तो गांव की बाकी लड़कियों के लिए हमेशा के लिए रास्ता बंद हो जाएगा। तब सुरभि की आत्मा जागी और उन्होंने तय किया कि चाहे जो हो जाए इंग्लिश पर कमांड करके ही रहेंगी। उस दिन से वे दिन-रात मेहनत करने लगीं और रिजल्ट कुछ ही दिनों में सामने था। यहां भी सुरभि ने गोल्ड मेडल हासिल करने के साथ-साथ University में टॉप किया और यूनिवर्सिटी चांसलर स्कालरशिप की हकदार बनीं।
IES exam के इतिहास में कभी किसी लड़की को इतने मार्क्स नही आए
सुरभि के लिए ये एक नये विस्तार का समय था। कॉलेज से निकली तो UPSC के लिये मिनिमम ऐज से कम थीं। इस बीच गेट, इसरो, सेल, एमपीपीएससी सभी एग्जाम दे डाले और इनके 6 महीने बाद IES एग्जाम भी। क्या आप यकीन करेंगे कि सुरभि पहली ही बार में सभी परीक्षाएं पास कर गयीं। यही नहीं IES में, जहां IIT पास कई विद्यार्थी शामिल होते है, वहां एक सामान्य इंजीनियरिंग कॉलेज से पास आउट सुरभि की ऑल इंडिया रैंक 01 आयी और जितने अंक उनके आये थे, UPSC के इतिहास में कभी किसी लड़की के नहीं आये।
कॉलेज पढ़ाई के बाद सुरभि का पहला प्लेसमेंट TCS में हुआ था लेकिन उन्होंने उस नौकरी को ज्वाइन नहीं किया क्योंकि उसकी दुनिया और सपने इससे कई गुना बड़े थे।
IES में देश भर में टॉप करने के बाद रेलवे में इंजीनियर की नौकरी के लिए ट्रेनिंग ज्वॉइन कर ली और अंततः अपने जीवनभर के संघर्ष का फल चखने के लिए तैयार हो गयीं। इतना सब पाने के बाद भी सुरभि को जो खुशी, जो संतोष महसूस होना चाहिए था, वो नहीं होता था।मन में एक बैचेनी सी रहती थी। उन्होंने अपनी मां को बताया तो मां ने बचपन की कलेक्टर वाली बात याद दिलायी। वह समाचार सामने रख दिया जिसमें छपा था ‘बड़ी होकर कलेक्टर बनना चाहती है सुरभि’. सुरभि ने फिर कई बार इसे पढ़ा तब उसे लगा कि इसी की कमी है जो उन्हें अखर रही है।
जब मां ने जीवन का मंत्र दिया
इतनी मेहनत, इतने संघर्ष के बाद भी सुरभि की वास्तविक मंजिल उनसे दूर थी। नौकरी के लिए ट्रेनिंग करते वक्त उन्हें मुश्किल से तीन या चार घंटे का समय तैयारी के लिए मिल पाता था। ऐसे में वे समय निकालने को लेकर बहुत परेशान रहने लगीं। उन्होंने फिर अपनी मां को फोन किया (जो जीवन भर उनकी मेंटर रहीं)। उनकी मां ने सुरभि को सांत्वना देने की जगह उनसे कहा, तुम्हारी उम्र में मेरे तीन बच्चे थे, तीसरा दस महीने का था, 30 लोगों का परिवार था, घर से दस कि.मी. पर नौकरी थी और एलर्जी की भयंकर समस्या। अब तुम सोच लो कि क्या तुम्हारा संघर्ष ज्यादा बड़ा है। तुम जो कर रही हो केवल अपने सपने के लिए कर रही हो।
सुरभि ने उस दिन के बाद से शिकायत करना बंद कर दिया। नौकरी के दौरान अपने फोन और टेबलेट पर जितना हो सका, स्टडी मैटेरियल इकट्ठा किया और रास्ते से लेकर नौकरी तक में जब समय मिलता, पढ़ती थीं। घंटों से मिनट चुराये। नतीजा यह हुआ कि साल 2016 में उन्होंने 50वीं रैंक के साथ IAS बनने का अपने बचपन का सपना आखिरकार पूरा कर लिया।
सुरभि कहती हैं कि उन्होंने जीवन भर इस बात को ध्यान रखा कि हार्डवर्क का कोई विकल्प नहीं होता और सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता।
There is no substitute of hardwork AND
There is no shortcut to success .
फिर आप सब को पता है 2016 में IAS Exam दी और पहली बार में ही उसे क्रैक किया। देश में 50 वीं रैंक आई और उसे गुजरात कैडर मिला। वर्तमान में सुरभि गुजरात के बड़ौदा में असिस्टेंट कलेक्टर है।