Target : सिपाही से तहसीलदार बने अनिल, अब लक्ष्य IAS बनना!
Jhansi : झांसी का सिपाही अनिल चौधरी अब तहसीलदार बन गए। UPPSC के जरिए उन्होंने जो सफलता पाई, वो आसान नहीं थी। उन्होंने 21वीं रैंक पाई है। पर, उन्होंने जो ठान लिया था, वो कर दिखाया। अब अनिल का लक्ष्य कलेक्टर बनना है और उन्हें अपनी मेहनत पर उम्मीद है कि वे ये भी कर लेंगे।
अनिल चौधरी जब यूपीपीएसी में लिखित परीक्षा पास करने के बाद जब इंटरव्यू में पहुंचे, तो उनसे पहला सवाल पूछा गया कि सिपाही जैसे पद पर 24 घंटे एक्टिव रहना पड़ता है। कभी भी बुलावा आ जाता है और पुलिसकर्मी को उतनी छुट्टी भी नहीं मिलती तो तुमने कैसे तैयारी की? अनिल ने जबाव दिया कि एक साल की विदआउट-पे लीव लेकर दिल्ली में कोचिंग की। कोचिंग में यह पता चल गया कि क्या पढ़ना है। मैंने नोट्स बना लिए थे और फिर सिर्फ उनका रिवीजन करना शुरू कर दिया। वापस ज्वाइनिंग कर अफसरों से आग्रह कर पुलिस लाइन में ट्रांसफर कराया। वहां टेलीफोन एक्सचेंज में नाइट ड्यूटी लगवाई। रात में ड्यूटी के साथ पढ़ने को मिल जाता था। दिन में 3-4 घंटे सोने के बाद लाइब्रेरी पढ़ने जाता था। सिर्फ 4-5 घंटे सोता था, इसलिए आज इस मुकाम पर पहुंच पाया हूं।
1 अगस्त 1994 में जन्मे अनिल चौधरी (27) मूलरूप से फिरोजाबाद के शिकोहाबाद के रहने वाले हैं। उनके पिता यशपाल किसान हैं और मां वीरमती गृहणी। भाई नारायण और बड़ी बहनों रेनू और प्रीति से छोटे अनिल बताते हैं कि गांव के प्राइवेट स्कूल से उनकी 12वीं तक की पढ़ाई हुई। इसके साथ ही UP पुलिस का एग्जाम दिया तो सिपाही बन गए। लेकिन, भर्ती पर रोक लग गई तो प्राइवेट नौकरी करनी पड़ी। फिर साल 2016 में उनको झांसी में पहली पोस्टिंग मिली। यहां कोतवाली थाना, सीओ सिटी समेत अन्य जगह कार्यरत रहे।
अफसर बनने का ख्वाब देखा
अनिल चौधरी के मुताबिक, बचपन से मेरा कोई बड़ा लक्ष्य नहीं था। गांव के माहौल में पला बड़ा, इसलिए सिर्फ इतना सोचता था कि सरकारी नौकरी लग जाए। सिपाही बना तो पढ़ाई छोड़ दी और नौकरी करने लगा। जब अफसरों के पास आना-जाना हुआ तो मन में अफसर बनने का ख्वाब आया। साल 2017 में बी.कॉम की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। साल 2018-19 में एक साल की छुट्टी ली और दिल्ली जाकर तैयारी की।
टीवी-मोबाइल से दूरी
अनिल बताते हैं कि तैयारी के दौरान मैंने टीवी-मोबाइल से दूरी बनाई। सोता सिर्फ 4 से 5 घंटे था, क्योंकि जॉब भी करनी थी और पढ़ना भी था। थाने में रहकर ये संभव नहीं लग रहा था। पुलिस अफसरों ने मेरी बहुत मदद की। उन्होंने तुरंत मेरा तबादला पुलिस लाइन में कर दिया। मैं वहां रात को टेलीफोन एक्सचेंज में जॉब करता था। वहां भी पढ़ने के लिए मिल जाता। लाइब्रेरी दूर थी, तो मैंने अपना घर बदल लिया। दो साल से मैं पूरी मेहनत से तैयारी कर रहा था।
पहले रुपए जुटाए, फिर कोचिंग
यूपी पीसीएस में 21वी रैंक पाने वाले अनिल चौधरी ने आगे बताया कि मेरा परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं था। इसलिए जॉब करके पहले कोचिंग के लिए रुपए जुटाए। रुपए जमा होने पर मैं कोचिंग करने गया। मेरे बड़े भाई नारायण ने मेरी बहुत हेल्प की। मेरा संघर्ष इसी से समझें कि मुझे अफसर बनने का ख्याल आया, तब मेरी पढ़ाई पूरी तरह से छूट चुकी थी। मुझे जीरो से स्टार्ट करना था, लेकिन मैंने मन में ठान लिया था, इसलिए मैं मुकाम हासिल कर पाया।
मकान मालिक ने सपोर्ट किया
दिन में लाइब्रेरी पढ़ने जाता था, लेकिन दूर होने के कारण समय बर्बाद होता था। इसलिए मैं लाइब्रेरी के पास शिवाजी नगर में किराए पर रहने लगा। मुझे पढ़ते और तैयारी करते हुए देख मकान मालिक ने मेरी बहुत मदद की। मुझे अपने परिवार की तरह रखा। दो साल में मुझे परिवार की कमी महसूस नहीं होने दी।
IAS बनने का सपना
अनिल ने कहा कि चौथे प्रयास में तहसीलदार में 21वीं रैंक आई है। लेकिन, मुझे IAS बनना है. जिस तरह से मैं सिपाही बनकर तैयारी कर रहा था, अब उसी तरह से तहसीलदार बनकर IAS के लिए तैयारी करुंगा।