नौकरी पूरी कर रिटायर होने के बाद यदि किसी अफसर को पाई-पाई के लिए मोहताज होना पड़े, तो कैसा अनुभव होगा? यदि किसी को अमीरी में जीवन गुजारने के बाद बुढा़पे में बीपीएल का दर्जा देकर गरीबी के मुंह में धकेल दिया जाए, तो क्या वह व्यक्ति जिंदगी की जगह मौत का दामन थामने का विकल्प नहीं चुनेगा? यदि किसी की नौकरी में रहते आकस्मिक मृत्यु हो जाए और उसके परिवार के हिस्से में पेंशन के नाम पर पांच सौ रूपया महीना थमा दिया जाए, तो बच्चों संग जीवन गुजारने को मजबूर उस कल्याणी का हाल क्या होगा? वह मन मसोसकर क्या बच्चों के पिता और नई पेंशन नीति को पानी पी-पीकर गाली देने और कोसने को मजबूर नहीं होगी? क्या ऐसी स्थिति में कबीर दास जी का वह दोहा चरितार्थ नहीं होगा कि ” दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय। मरी खाल की सांस से, लोह भसम हो जाय।” यानि कि इस दोहे में कबीर जी कहते हैं किसी को दुर्बल या कमज़ोर समझ कर उसको नहीं सताना चाहिए, क्योंकि दुर्बल की हाय या श्राप बहुत प्रभावशाली होता है। जैसे मरे हुए जानवर की खाल को जलाने से लोहा तक पिघल जाता है।
नई पेंशन नीति सरकारी कर्मचारियों को उसी तरह टेंशन दे रही है, जिस तरह बुढ़ापे में बुजुर्ग से लाठी भी छीनी जा रही हो। पेंशन कर्मचारियों के बुढ़ापे का सहारा होती है और नई पेंशन नीति में कर्मचारियों के हिस्से में आ रही अल्प राशि उन्हें भूखों मरने का तोहफा खुशी-खुशी स्वीकार करने को मजबूर करने जैसा ही है। निश्चित तौर से सरकार शिकंजा कसे और सरकारी कर्मचारियों को भ्रष्टाचार करने पर कड़ी सजा का प्रावधान रखे, लेकिन पेंशन के साथ स्वाभिमान संग बुढ़ापा बिताने का उनका अधिकार कायम रखना चाहिए। इसी बात की लड़ाई लड़ रहे हैं लाखों सरकारी कर्मचारी-अधिकारी, शिक्षक और अफसर, जिनके जीवन पर बोझ बन चुकी है नई पेंशन नीति…जिसको न तो वह निगल पा रहे हैं और न ही उगल पा रहे हैं। तो सरकार का टेंशन यह है कि पुरानी पेंशन लागू करने पर आर्थिक बोझ से उसकी कमर झुकेगी नहीं, तो दर्द तो देती ही रहेगी। सरकार के लिए भी लाखों कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने का उपहार देने का मामला भी कुछ ऐसा ही है कि न निगलने जैसा और न उगलने जैसा। अब सरकार बनने पर जब कांग्रेस पुरानी पेंशन बहाल करने का लालच दे रही है, तो भाजपा सरकार भी दबाव में तो रहेगी कि आखिर लाखों कर्मचारियों को इस तरह हाथ से तो नहीं जाने दिया जा सकता है। सो कर्मचारियों की किस्मत संवारकर अपनी सरकार की सेहत बनाए रखने का फैसला चुनना शायद बेहतर विकल्प है, यह सरकार भी सोच रही हो। और 2023 से पहले सरकार कर्मचारियों को यह उपहार देकर उनका दिल जीतने की योजना बना भी चुकी हो! पर इसका खुलासा सही समय पर ही होगा। तब तक शायद कर्मचारियों के आंदोलन तेजी पकड़कर सरकार से मांग पूरी कराने का उपक्रम चलता रहे।
मध्यप्रदेश के लाखों कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना पुनः बहाल करने तथा नई पेंशन योजना 2005 को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में 4,42,141 कर्मचारी नई पेंशन स्कीम के दायरे में है। सरकार ने 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारियों एवं स्थाई कर्मियों को नई पेंशन स्कीम के दायरे में लिया है। इनके वेतन से प्रति माह 10% राशि नई पेंशन स्कीम के नाम पर काटी जा रही है और 14% राशि राज्य सरकार जमा कर रही है। लेकिन नई पेंशन स्कीम लागू करके सरकार ने प्रदेश के 4,42,141 कर्मचारियों का भविष्य निजी हाथों में सौंप दिया है। और निजी हाथों का दिल सरकार की तरह प्रेम से भरा नहीं होता। निजी हाथ यही चाहते हैं कि उनके चेहरे पर खुशी बरकरार रखने के लिए जो भी ठीक हो, वह राह चुनी जाए। ऐसे में नई पेंशन स्कीम लाखों कर्मचारियों को अंधेरे में धकेल रही है। कर्मचारियों एवं स्थाई कर्मियों को सरकार की नई पेंशन योजना 2005 इसीलिए मंजूर नहीं है। उनकी मांग है कि राज्य सरकार तत्काल राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ सरकार का अनुसरण करते हुए मध्यप्रदेश में भी 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारियों, स्थाई कर्मियों के लिए नई पेंशन योजना 2005 के स्थान पर पुरानी पेंशन योजना लागू करने का फैसला लेकर लाखों कर्मचारियों के चेहरे पर खुशी बिखेर दे। ताकि कर्माचारी और उनके परिवार टेंशन फ्री हो सकें। और उनका बुढ़ापा ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ की तरह अंधेरे की जगह उजाले से भर जाए।