‘राज’ की तलाश में ‘ठाकरे’…

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‘राज’ की तलाश में ‘ठाकरे’…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

महाराष्ट्र में ठाकरे भाइयों के 20 साल बाद साथ आने से राज्य के राजनीतिक समीकरण बदलना तय हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष, सबकी नजर बालासाहेब ठाकरे परिवार के एक मंच पर आने के बाद यह कयास लगाने में जुटी है कि आगे क्या होगा। और यह भी सबको पता है की वर्तमान में राज और उद्धव ठाकरे अलग-अलग रहकर जो कुछ भी कर रहे थे, एक साथ आने पर महाराष्ट्र की राजनीति में दोनों मिलकर उससे बहुत कुछ बेहतर कर पाने में सफल होंगे। बात यहां मराठी मानुष की भी नहीं है पर मराठी मानुष के सम्मान और प्रतिष्ठा से अलग भी नहीं है। ठाकरे बंधुओं ने बड़ी होशियारी से स्कूलों में हिंदी भाषा को मुद्दा बनाकर अपनी एक अलग लकीर खींच दी है जो एमके स्टालिन के हिंदी विरोधी दक्षिण ब्रांड को भी आईना दिखाते हुए राष्ट्रभक्ति के रंग में भी रंगी नजर आ रही है, तो मराठी मानुष के कंधे से कंधा भी मिला रही है। ऐसे में अब एकनाथ की शिवसेना मुसीबत में है तो फडणवीस की भाजपा भी नए समीकरणों से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी।

इसीलिए सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए संजय निरुपम ने प्रतिक्रिया दी है, “फ्रॉम एमवीए टू टीवीए… कांग्रेस को घटाकर एक नया राजनीतिक गठबंधन बना है। पहले यह एमवीए था अर्थात महा विकास अघाड़ी। इसका नया नाम टीवीए होना चाहिए-ठाकरे विकास अघाड़ी।” तो निरूपम सही निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि भले ही नाम कुछ भी रहे लेकिन यह नया गठजोड़, ठाकरे बंधुओं के लिए विकास का नया अवसर तो है ही। राज ठाकर और उद्धव ठाकरे ‘मराठी विजय रैली’ का नेतृत्व करते एक साथ मंच पर दिखे, तो आगे महाराष्ट्र की राजनीति में संभावनाओं के नए पुख्ता समीकरणों से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। महाराष्ट्र की सियासत में शनिवार, 5 जुलाई 2025 को करीब दो दशक के बाद एक ऐसी सियासी तस्वीर सामने आई है जो एक मंच पर मौजूद ठाकरे भाईयों के एक और एक मिलकर 11 होने की बात बयां कर विरोधी दलों के नेताओं की धड़कनें बढ़ा रही है।

मराठी विजय रैली में उद्धव ठाकरे ने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि हमें हिंदू और हिंदुस्तान तो मंजूर है, लेकिन हम यह बर्दाश्त नहीं करेंगे कि हमारे लोगों पर जबरदस्ती हिंदी थोपी जाए। आपकी सात पीढ़ियां खत्म हो जाएंगी, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा हिंदी थोपे जाने के खिलाफ लड़ाई में उद्धव और राज ठाकरे को समर्थन दिए जाने के एक दिन बाद, उद्धव सेना ने स्पष्टीकरण जारी करके कहा कि ठाकरे बंधुओं का विरोध हिंदी के खिलाफ नहीं था बल्कि प्राइमरी तक के स्कूलों में इसे तीसरी भाषा के रूप में शामिल करने के फैसले के खिलाफ था। शिवसेना-यूबीटी के प्रवक्ता संजय राउत ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा, ‘दक्षिणी राज्य इस मुद्दे पर वर्षों से लड़ रहे हैं। हिंदी थोपे जाने के खिलाफ उनके रुख का मतलब है कि वे हिंदी नहीं बोलेंगे और न ही किसी को हिंदी बोलने देंगे। लेकिन महाराष्ट्र में हमारा रुख ऐसा नहीं है। हम हिंदी बोलते हैं… हमारा रुख यह है कि प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी के लिए सख्ती बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हमारी लड़ाई यहीं तक सीमित है।’

तो ठाकरे बंधुओं की विजयी शुरुआत यह भी है कि उद्धव और राज ठाकरे ने नई शिक्षा नीति के तहत त्रि-भाषा नीति का विरोध किया था, जिसके तहत महाराष्ट्र के प्राथमिक विद्यालयों (कक्षा 1 से 5 तक) में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में शामिल किया जाता। उन्होंने इस नीति के खिलाफ मुंबई में बड़ा विरोध प्रदर्शन करने की चेतावनी दी थी। इसके बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने त्रि-भाषा नीति को लागू करने से संबंधित सभी अधिसूचनाएं रद्द कर दी थीं और इसकी समीक्षा के लिए शिक्षाविद् डॉ. नरेंद्र जाधव के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया। उद्धव और राज ठाकरे ने सरकार के इस फैसले को अपनी और मराठी समुदाय की जीत बताया और इसका जश्न मनाने के लिए 5 जुलाई 2025 को मुंबई में एक संयुक्त मराठी विजय रैली आयोजित कर सियासी गंठजोड़ का महाआगाज कर दिया है।

महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री और बीजेपी नेता आशीष शेलार ने इसे चुनावी डर से उपजा गठबंधन बताया और कहा कि दो परिवार साथ आए, यह अच्छी बात है। अब दो राजनीतिक पार्टी साथ आती हैं या नहीं, यह उन्हें तय करना है। अगर साथ आती भी हैं तो बीजेपी को कोई आपत्ति नहीं है।

तो महाराष्ट्र की सियासत में ठाकरे बंधुओं का एक साथ आना ऐतिहासिक है। बाला साहेब ठाकरे के सामने परिवार से अलग होकर अपनी सियासी पारी शुरू करने वाले राज ठाकरे ने कोई भी कदम बिना सोचे विचारे आगे नहीं बढ़ाया है। राज ने अगर भाई उद्धव ठाकरे के साथ 20 साल बाद एक मंच पर साथ आना मंजूर किया है तो स्क्रिप्ट पहले से फाइनल है कि अब दोनों पार्टियों के बीच राजनीतिक गठबंधन 100 फीसदी होगा। दोनों ने लोगों के सामने ‘मन की बात’ कही है तो मराठी लोगों के लिए एक साथ सियासत भी जारी रखेंगे। और बाला साहब ठाकरे की शिवसेना पर कब्जा जमाने वाले एकनाथ भी अब घर वापसी कर ठाकरे परिवार के कंधे से कंधा मिला सकते हैं। राज ठाकरे के उद्धव के साथ आने के बाद अब इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि ऐसा नहीं भी हुआ तब भी ठाकरे बंधुओं का गठजोड़ कमाल दिखाने में सक्षम है। यह एकजुटता ठाकरे बंधुओं के महाराष्ट्र पर राज करने की तलाश में विजयी रंग भर सकती है… महाराष्ट्र में सियासी हलचल की वजह भी सिर्फ यही है।