Flashback: जम्मू कश्मीर की वह काली रात: घरों से होता पथराव और 2 जवानों का साहस

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दिनांक 31 दिसंबर, 2009 को लगभग 12 बजे दिन में मुझे अपने जम्मू स्थित CRPF के मुख्यालय में यह सूचना प्राप्त हुई कि कश्मीर के सोपोर क़स्बे से कुछ दूर सेब के बगीचे में हमारी फ़ोर्स के चार जवानों की एक आतंकवादी ने AK47 राइफ़ल से हत्या कर दी है।मैं उस समय जम्मू-कश्मीर में CRPF में स्पेशल DG था।

मुझे उस समय CRPF में आए हुए बहुत समय नहीं हुआ था और अपनी फ़ोर्स के चार जवानों की नृशंस हत्या ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। मुख्यालय की मैस में नव- वर्ष कार्यक्रम मनाये जाने की ज़ोर शोर से तैयारियां चल रही थी। मैंने IG मुख्यालय को निर्देशित किया कि आज रात का कार्यक्रम निरस्त कर दिया जाये। ऐसी आतंकवादी घटनाओं के अभ्यस्त उन पुराने CRPF के अधिकारी को मेरा निर्देश कुछ अटपटा सा लगा, परंतु कार्यक्रम निरस्त कर दिया गया।

अगले दिन मौसम साफ़ होने पर सेना के हेलीकाप्टर से, जिसे मेरी आवश्यकतानुसार उपलब्ध कराने के भारत सरकार के स्थायी निर्देश थे, मैं जम्मू से श्रीनगर अपने टैक- हेडक्वार्टर पहुँचा। उस समय जम्मू कश्मीर में 71 बटालियनों का भारी भरकम CRPF का बल तैनात था तथा मेरी सहायता के लिए चार IG पदस्थ थे। श्रीनगर में CRPF के IG कश्मीर के पद पर केरल काडर के IPS एन सी अस्थाना पदस्थ थे, जो बहुत अनुभवी और उत्साही अधिकारी थे।

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सोपोर क़स्बे से क़रीब चार किलोमीटर दूर 177 वीं बटालियन की E कंपनी का कैंप स्थित था। एक कंपनी में लगभग सौ लोग एक साथ उपस्थित रहते हैं तथा आवश्यकतानुसार समय- समय पर विभिन्न प्रकार की कठिन और ख़तरनाक ड्यूटी करते हैं। यह कंपनी अन्य कार्यों के अलावा सोपोर से वूलर झील जाने वाली सड़क की सुरक्षा का संवेदनशील और कठिन काम करती थी।सौ वर्ग किलोमीटर में फैली वूलर झील झेलम नदी द्वारा बनी है।

वूलर क्षेत्र में केवल आर्मी तैनात थी और इस सड़क पर सेना के वाहनों को सुरक्षित निकालने की ज़िम्मेदारी CRPF पर थी। घटना दिनांक को इस कंपनी की एक रोड ओपनिंग पार्टी के चार जवान इसी सड़क के अपने निर्धारित हिस्से की पेट्रोलिंग कर रहे थे, जिनका काम सड़क पर लैंड माइन और एक्सप्लोसिव इत्यादि का पता लगाना था।

चारों जवान चैकिंग करने के बाद सड़क से लगे सेब के बग़ीचे में बैठकर अपना लाया हुआ भोजन कर रहे थे। पास ही लगी हुई खुली ज़मीन में कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। अचानक उनमें से एक ने क्रिकेट के बैग में से राइफ़ल निकालकर फ़ायरिंग शुरू कर दी। जवानों ने अपनी तरफ़ से कुछ फ़ायरिंग की परंतु एकाएक हुए इस हमले का माक़ूल मुक़ाबला नहीं कर सके और शहीद हो गये।

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मैं IG अस्थाना के साथ अपने सुरक्षा कर्मियों सहित सोपोर होते हुए कम्पनी मुख्यालय पहुँचा। कंपनी के सभी लोग अपने साथ रात दिन रहने वाले चार जवानों की शहादत से हतप्रभ थे। मैंने कंपनी के लोगों को एकत्र कर बातचीत करनी शुरू की और उनका मनोबल बनाए रखने के लिए प्रेरणा स्वरूप कुछ उद्बोधन दिया।

मैंने उन्हें बताया कि हमारे साथियों की यह शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी और पूरा देश सदैव उनका चिर ऋणी रहेगा। मैंने कंपनी के लोगों के साथ बैठकर चाय पी और उनका तनाव कम करने के लिए काफ़ी देर तक उनसे अनौपचारिक चर्चा करता रहा। कश्मीरी जाड़े की शाम हो चली थी और कोहरे की चादर ने वातावरण को घेर लिया था।

मैंने IG अस्थाना से वापस श्रीनगर सोपोर क़स्बे से न होते हुए दूसरी तरफ़ वूलर झील का चक्कर काटते हुए श्रीनगर चलने के लिये कहा। मैंने सोचा कि पुराने मार्ग से वापस लौटना सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं होगा और दूसरे मार्ग से नया इलाक़ा भी देखने का अवसर मिल जायेगा। उन्होंने कहा कि वह रास्ता बहुत लंबा है इसलिए सोपोर होकर ही चले। उनकी बात मानकर हम सोपोर होते हुए श्रीनगर के लिए रवाना हुए।

सोपोर क़स्बे में जब हम एक घनी बस्ती से गुजर रहे थे तो अचानक हमारा क़ाफ़िला झटके से रूक गया।इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, हमारे पूरे क़ाफ़िले पर घरों की छतों से भारी पथराव होना शुरू हो गया। कुछ उपद्रवियों ने हमें दिन में कम्पनी मुख्यालय जाते हुए देखा था और यह अनुमान लगाया था कि हम वापस भी इसी रास्ते से लौटेंगे। हम लोग उनके एम्बुश में फँस चुके थे। मेरी बुलेटप्रूफ़ एंबेसडर कार की पीछे की सीट पर मेरे साथ IG अस्थाना दाहिनी तरफ़ बैठे थे और उन्होंने तत्काल अपनी एसाल्ट राइफ़ल लोड कर ली।

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मेरे पास कोई हथियार नहीं था। स्ट्रीट लाइट के हल्के प्रकाश में मैंने देखा कि दोनों तरफ़ मकानों में बनी परंपरागत बालकनी से लोग पहले से ही इकट्ठा किए गए बड़े-बड़े पत्थर फेंक रहे थे।मेरे क़ाफ़िले में सबसे आगे स्टील बॉडी की एक पायलट कार थी, उसके पीछे स्कॉर्ट कार, उसके पीछे हमारी कार, हमारे पीछे एक अन्य स्कॉर्ट कार और सबसे अंत में टेल कार थी।इन सभी गाड़ियों में सुरक्षा कर्मी बैठे थे।

मेरी कार उपद्रवियों का मुख्य निशाना थी और उस पर अनेक बड़े पत्थर आ कर टकराये परंतु मज़बूत बुलैट प्रूफ़ कांच होने के कारण हम बचे रहे। लेकिन ये मज़बूत कांच भी बहुत देर तक टिक नहीं सकते थे। स्थिति बहुत गंभीर थी क्योंकि एक कटिबद्ध हिंसक भीड़ के बीच में घिर जाना बहुत ख़तरनाक होता है।

सधे हुए पत्थरबाज़ों का पथराव तेज होता जा रहा था। यदि उत्तेजना में मैं अपने लोगों को गाड़ियों से उतरने के लिए कहता तो हमें हथियारों का प्रयोग करना पड़ता और दोनों तरफ़ के लोग को कुछ भी हो सकता था।बिना विचलित हुए कोई भी निर्णय लेने से पहले मैंने अपनी कार में आगे बैठे अपने PSO से पायलट कार से वायरलेस पर यह पूछने के लिए कहा कि वह रुक क्यों गया है।

पायलेट से उत्तर आने के पहले ही मैंने देखा कि पायलट गाड़ी के पीछे के स्टील दरवाज़े खुले और उसमें से दो जवान उतरकर पथराव की परवाह न करते हुए अपनी गाड़ी के आगे गये और सड़क अवरुद्ध करने के लिए लगाए गए लोहे के एक खंभे को उन्होंने उठाकर एक तरफ़ मोड़ दिया।

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उनके ऊपर पथराव होने लगा और हेल्मेट व जैकेट के बावजूद उन्हें चोटें लगी परन्तु वे वापस पायलट गाड़ी में आकर बैठ गए और हमारा क़ाफ़िला चल पड़ा। आगे जाकर हमारे क़ाफ़िले पर फिर पथराव हुआ और हमारे ऊपर फ़ायरिंग भी की गई परंतु हम लोग सुरक्षित क़स्बे के दूसरी तरफ़ निकल कर बारामूला- श्रीनगर हाईवे पर पहुँच गये। हाईवे पर पहुँच कर हम लोग श्रीनगर की ओर बायें मुड़ गये और देर रात सुरक्षित अपने टैक- हेडक्वार्टर श्रीनगर पहुँच गये।

पायलट गाड़ी से निकलकर मार्ग का व्यवधान हटाने वाले दोनों जवानों ने पत्थर लगने पर भी जिस समझदारी और साहस से कार्य किया था वह निश्चित ही प्रशंसनीय था। उनकी इस कार्रवाई से और बड़ी घटना होने से टल गई। इन जवानों को मैंने समुचित रूप से पुरस्कृत किया।

यदि वरिष्ठतम अधिकारी के क़ाफ़िले पर हुए हमले की यह घटना कोई और रूप ले लेती तो निश्चित रूप से यह आतंकवादियों और अलगाववादियों के लिए एक बड़ी उपलब्धि होती और सुरक्षा बलों के लिए एक गंभीर आघात सिद्ध होती।सात महीने बाद जुलाई में सेब के बग़ीचे वाला आतंकवादी CRPF द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया।

मैं भारत के सुरक्षा बलों को सैल्यूट करता हूँ जो दशकों से जम्मू कश्मीर की सुरक्षा एवं राष्ट्र की अखंडता के लिए अपना खून और पसीना ही नहीं बल्कि अपना सर्वस्व न्योछावर कर रहे हैं।