

यानि ‘विसर्जन’ से ‘सृजन’ की राह पर कांग्रेस…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
मध्यप्रदेश में फिलहाल सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के ‘संगठन सृजन अभियान’ की हो रही है। 3 जून 2025 को जब मोहन सरकार पचमढ़ी में राजा भभूत सिंह के शौर्य और पराक्रम को समर्पित कैबिनेट बैठक का आयोजन कर रही थी। तब राजधानी भोपाल कांग्रेस के रंग में रंगी थी। कांग्रेस के सर्वेसर्वा और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी संगठन के सृजन के लिए पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को नसीहत दे रहे थे। उन्होंने बहुत खुलकर और पूरे आत्मविश्वास के साथ मध्यप्रदेश कांग्रेस नेतृत्व को आईना दिखा दिया। तो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी सशक्त विपक्ष की तरह सीधा हमला बोला। मानो नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पूरी तैयारी संग भोपाल आए थे। इसमें अपनी पार्टी की सारी खूबियों और खामियों का डंका पीटा, तो मध्यप्रदेश में भाजपा नेताओं को प्रतिक्रिया देने का पूरा मौका देना भी नहीं भूले। कांग्रेस में खुलकर चर्चा लंगड़े घोड़ों की हो रही है, जिन्हें रिटायर करने की बात राहुल कहकर गए हैं। यह लंगड़े घोड़े कौन हैं, कितने हैं और कैसे रिटायर किए जाएंगे…यह सवाल ‘विसर्जन’ की तरफ इशारा कर रहा है। तो क्या वास्तव में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने तय कर लिया है कि ”विसर्जन’ के रास्ते ही ‘सृजन’ की राह पर पहुंचा जाएगा। हालांकि इस फार्मूला को नकारा भी नहीं जा सकता है। भारत में तो पूरा दर्शन ही ‘विसर्जन’ से ‘सृजन’ पर केंद्रित है। ‘मृत्यु’ के बाद ‘जीवन’ की कल्पना वास्तव में हिंदू दर्शन की धुरी है। ‘दु:ख’ के बाद ‘सुख’ और ‘अंधकार’ के बाद ‘उजाले’ की कल्पना भी इसी दर्शन का हिस्सा है।
खैर मूल विषय पर लौटा जाए, तो राहुल गांधी कांग्रेस कार्यकर्ताओं में यह भरोसा जगाकर गए हैं कि संगठन का सृजन करने के भागीरथी प्रयास को वह पूर्णता तक लेकर जाएंगे। और संगठन के इस सृजन में रेस के घोड़ों को ही दौड़ाकर मध्यप्रदेश में रिकॉर्ड जीत के सपने को वह साकार करेंगे। जिलों में कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति में रेस के घोड़ों का पूरा ख्याल रखा जा रहा है। राहुल का भाव यही रहा कि रेस के घोड़ों को सबसे ताकतवर बनाकर ही रेस जीतकर दिखाएंगे। और बारात के घोड़ों को वह संगठन के कामकाज की कमान सौंपेंगे। जो अपना पूरा कमाल दिखाकर जीत का धमाल मचाएं। पर रेस में शामिल होने का मन भी नहीं बनाएं। तो सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी ‘लंगड़े घोड़ों’ ने। इसके जरिए राहुल ने मध्यप्रदेेश में लंबे समय से दु:ख, निराशा, अंधकार और हार का पर्याय बनी कांग्रेस को उबारने का फार्मूला सेट किया है। यह लंगड़े घोड़े न तो रेस में शामिल होने लायक बचे हैं, पर गजब की बात है कि हर रेस में यही शामिल हैं। और यह लंगड़े घोड़े न ही किसी बारात में नाचने की स्थिति में हैं, पर वहां भी यह दम भरकर फजीहत कराने में सबसे आगे नजर आ रहे हैं। यह भाव राहुल गांधी के हैं, मानो उन्हें यह सब साफ तौर पर नजर आ गया है। और कांग्रेस में जो राहुल को नजर आ गया, वह ही सत्य भी है और सुंदरतम भी है। हो सकता है कि लंगड़े घोड़ों के ‘विसर्जन’ का यह अभियान ही कांग्रेस को जीत का सम्मान दिलाने का दरवाजा खोलने का जरिया बन जाए। और बड़ी संभावनाएं भी इसमें ही शुमार मानी जा सकती हैं।
और राहुल अब नेता प्रतिपक्ष की स्टाइल में ऑपरेशन सिंदूर का नाम लिए बगैर ट्रंप के बहाने से ‘नरेंदर’ और ‘सरेंडर’ जैसे शब्दों का बखूबी विस्फोट कर गए। वहीं आरएसएस पर भी अपनी भावनाओं का तड़का लगाना नहीं भूले। ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का पूरा उत्साहवर्धन हुआ। तो भाजपा को भी राहुल पर आहुति देने का पूरा मौका मिल गया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने निशाना साधा कि इसीलिए तो राहुल गांधी को ‘पप्पू’ कहते हैं। आखिर वह परिपक्व कब होंगे? नेता प्रतिपक्ष मर्यादा छोड़ कर जिस भाव से बोलते हैं वह न केवल उनकी इज्जत खराब करते हैं, बल्कि देश के संस्कार के विरुद्ध भी बात करते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा राहुल गांधी ने जो शब्द इस्तेमाल किए हैं, वे उनकी तुच्छता को दर्शाते हैं। मैं उनकी कड़ी निंदा करता हूं। कांग्रेस को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। तो मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा भी राहुल गांधी के बयान पर भड़क गए। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी दिवालिया हो गए हैं। लगातार हार से वह विक्षिप्त हो चुके हैं। इसीलिए दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता के लिए उनके यह शब्द हैं। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी चीन के एजेंट और पाकिस्तान के प्रवक्ता की भूमिका निभा रहे हैं। राहुल को इस तरह की भाषा बोलने पर शर्म आनी चाहिए। देश यह देख रहा है और देश इसका जवाब देगा। राहुल के विवादित बयान पर अब यह सब तो होना ही था।
तो राहुल का भोपाल में ‘संगठन सृजन अभियान’ कम्प्लीट पैकेज की तरह असरकारक रहा। यह साफ हो गया कि कांग्रेस ‘विसर्जन’ से ‘सृजन’ की राह पर है। पर लंगड़े घोड़ों का ”विसर्जन’ कर रेस के घोड़ों से सृजन का उनका अभियान कितना असर दिखा पाता है, यह संगठन में हो रहे बदलाव के बाद सबके सामने आ जाएगा। हालांकि मध्यप्रदेश में फिलहाल 2028 बहुत दूर है, तब तक कांग्रेस ‘विसर्जन’ करने में सफल हो सकी, तो शायद ‘सृजन’ का फल पाने की हकदार भी हो सकेगी…।