विलुप्त हो रही साहित्य की विधा पहेलियों पर केन्द्रित पुस्तक “मन का पिटारा”

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विलुप्त हो रही साहित्य की विधा पहेलियों पर केन्द्रित पुस्तक “मन का पिटारा”

इंदौर की सांस्कृतिक -साहित्यिक संस्था शुभ संकल्प समूह द्वारा साहित्यकार मंजू श्रीवास्तव “मन” की पुस्तक “मन का पिटारा” हाल ही  में प्रकाशित की गई .मंजू श्रीवास्तव की यह पुस्तक विलुप्त हो रही साहित्य की विधा पहेलियों पर केन्द्रित है .मंजू जी बताती हैं कि उनकी इस पुस्तक में शिशु मनोविज्ञान पर विस्तृत रूप से शोध किया गया है .बच्चों में यह बड़ी लोकप्रिय विधा है ,लेखिका मंजू श्रीवास्तव अमेरिकी निवासी, वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार हैं। लेखिका और प्रकाशन संस्था का कहना है कि इस पुस्तक में माध्यम से विलुप्त विधा को संरक्षित करने का प्रयास किया गया है .

पहेलियाँ भारतीय साहित्य में हमेशा ही ज्ञान का   एक महत्वपूर्ण माध्यम मानी गयी हैं ,पहेलियाँ, बुझौवल या प्रहेलिका एक तरह का प्रश्नयुक्त वाक्य होता है. इसमें किसी वस्तु का लक्षण या गुण घुमा-फिराकर भ्रामक रूप में प्रस्तुत किया जाता है. पहेलियों का इस्तेमाल शिक्षा, मनोरंजन और सामने वाले के चातुर्य को चुनौती देने में किया जाता है.पहेली एक प्रश्न, कथन या शब्द पहेली है जिसका सही उत्तर या अर्थ निकालने के लिए सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता होती है।