The Burning Bangladesh:खतरे की घंटी नहीं तोप गरज रही है
बांग्लादेश में जो दो-चार महीने से चल रहा था, उसकी इतनी निकृष्ट परिणिति तो सुनिश्चित थी। सरकार की आरक्षण विरोधी नीति के खिलाफ भड़का यह आंदोलन इस मुद्दे पर तो दिखावटी था, उसका असल मकसद शेख हसीना को सत्ता से उखाड फेंकना था, जिसनें वह सफल भी रहा। भले ही इसके लिये आंदोलनकारियों को अपने ही देश को घोर अराजकता की खाई में धकेल देना पड़ा हो। यह सत्ता प्राप्ति का ऐसा भस्मासुरी खेल है, जिसमें विरोधी की शिकस्त अपनी बरबादी से भी मिलती हो तो प्राप्त की जाने में संकोच नहीं किया जाता । इस पूरे खेल में एक बार फिर से यह स्पष्ट हो गया कि बांग्लादेशियों को इससे कोई मतलब नहीं कि पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने में भारत की अतुलनीय भूमिका रही थी। 1971 के बाद से ही वहां जब-जब सत्ता विरोधी आंदोलन हुए,उसमें हिंदुओं के कत्लेाम,लूटपाट,आगजनी भी जमकर हुई। आपको विश्व इतिहास में ऐसा दोगलापन कहीं नहीं मिलेगा, जब अपने मुक्तिदाता की पीठ में भी छुरा घोंपने से परहेज नही किया गया।
पंचतंत्र की एक कथा का सार यह है कि भले ही आप बिच्छू को कीचड़ से बाहर निकालें, वह तो डंक ही मारेगा। अब यह तो उसे बचाने वाले को तय करना है कि वह उसके प्राणों की रक्षा करे या अपने प्राणों की आफत मोल ले। बांग्लादेश के इतिहास पर नजर डालें तो पाते हैं कि वहां के लोगों ने उनकी स्वतंत्रता की खातिर घोर अत्याचार सहने वाले व जेल में लंबा समय बिताने वाले शेख मुजीबुर्रहमान तक को समूचे परिवार के साथ कुल 36 लोगों को बर्बरता पूर्वक मार डाला और भारत यात्रा पर होने से शेख हसीना व उनकी बहन ही सलामत रह पाईं। उन लोगों से यह आशा करना सिवाय मूर्खता के कुछ भी नहीं कि वे वहां बसे हिंदुओं पर रहम करेंगे और उनके मंदिर,पूजा स्थलों का सम्मान करेंगे। 1971 के बाद से जब-जब अवामी लीग की सरकार को हटाया या हराया, तब-तब उन्होंने हिंदुओं पर भी जबरदस्त जुल्म ढाये।
इस समय बांग्लादेश से जो खबरें आ रही हैं, वे भविष्य के बड़े खतरे का बिगुल बजा रहे हैं। वहां के दंगाइयों ने एक बार साबित कर दिया कि वे अपने देश की आजादी में शेख मुजीबुर्रहमान के योगदान व उनके परिवार के बलिदान की भी रत्ती भर चिंता नहीं करते । ऐसे में वहां बसे हिंदुओं का किसी गंगा-जमुनी रहम की आशा रखना हद दर्जे की मूर्खता ही होती। जो अराजक भीड़ संसद भवन में घुसकर वहां तोड़फोड़ कर सकती है, जो भीड़ प्रधानमंत्री आवास से साजो सामान लूटकर सड़क पर लहराते हुए ले जायें, जैसे किसी सस्ते माल की सेल से खरीद कर आ रहे हों, वे हिंदुओं की जान-माल-असबाब पर मेहरबानी कैसे करते? मुझे हैरत इस बात की है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के बनने के बाद से ही वहां हिंदुओं पर अत्याचार,लूट,बलात्कार,जबरिया धर्म परिवर्तन का अखंड सिलसिला चल रहा हो, वहां वे अभी-भी रुके हुए क्यों हैं?
खबरें आ रही हैं कि बांग्लादेश के मौजूदा हालात के पीछे अमेरिका का हाथ है। शेख हसीना के इस्तीफा देकर पलायन के तत्काल बाद ही सेना ने मोर्चा संभाल लिया और सबसे पहला काम विपक्षी नेता खालिदा जिया की रिहाई का किया गया। वे पूर्व तानाशाह जियाउर रहमान की बेवा हैं, जो 1977 से 1981 तक राष्ट्पति रहे थे। उनकी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने जनवरी 2024 में हुए आम चुनाव का बहिष्कार किया था, जिससे अवामी लीग भारी बहुमत से सत्ता में आई थी। उसके बाद से ही देश में आंदोलन खड़ा हुआ था,जो ज्वालामुखी बनकर फटा है।
बांग्लादेश की घटना भारत को चिंतित व सावधान करने वाली है। नेपाल में हाल ही में चीन समर्थक सरकार आई है। श्रीलंका चीन के प्रभाव में जा रहा है। पाकिस्तान में चीन समर्थक सेना का सत्ता पर दबदबा है। बांग्लादेश में सेना भी चीन समर्थक है। चीन और भारत के रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे। इसलिये शेख हसीना के हाथ से सत्ता जाना केवल वहां का अंदरूनी मामला नहीं रह गया है। हसीना तो अभी भारत में रुकी हुई हैं। उनका यहां लंबे समय रुकना कठिन है।
इस माहौल में एक बार फिर याद आ रहा है नागरिकता कानून में हुआ संशोधन, जिसके तहत पाकिस्तान,बांग्लादेश,अफगानिस्तान,नेपाल में बसे हिंदुओं को भारत में बसने की रियायत दी गई है, जो कतिपय तुष्टिकरणप्रेमी नेताओं को पसंद नहीं आया था और जिसे मुस्लिम विरोधी तक करार दे दिया गया था। जबकि वह पड़ोसी मुल्कों में बसे मूल भारतीयों के लिये सम्मानजनक पुर्नवास की व्यवस्था करता है। अभी आग दावानल भी बन सकती है। इसे चिंगारी समझना भयंकर भूल होगी।
रमण रावल
संपादक - वीकेंड पोस्ट
स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर
संपादक - चौथासंसार, इंदौर
प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर
शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर
समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर
कार्यकारी संपादक - चौथा संसार, इंदौर
उप संपादक - नवभारत, इंदौर
साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर
समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर
1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।
शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन
उल्लेखनीय-
० 1990 में दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।
० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।
० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।
० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।
० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।
सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।
विशेष- भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।
मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।
किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।
भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।
रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।
संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन आदि में लेखन।