अफसरों पर मुख्यमंत्री की हिदायत का असर नहीं….
प्रदेश के आला अफसरों की एक बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक सार्थक पहल की थी। उन्होंने कहा था कि अखबारों में छपी खबरों पर ‘हमें क्या लेना देना’ का रुख न अपनाएं। उनका कहना था कि खबर सही है तो उस पर कार्रवाई करें, गलत हो तो स्पष्टीकरण जारी करें। उन्होंने हिदायत दी थी कि यदि आपने खबरों पर कार्रवाई न की तो फिर मैं कार्रवाई करूंगा। संभवत: किसी मुख्यमंत्री ने पहली बार खबरों पर इतनी रुचि दिखाई थी। निर्देश दिए लगभग एक सप्ताह का समय गुजर गया लेकिन उनकी हिदायत का कोई असर पड़ा, ऐसा दिखता नहीं। व्यक्तिगत खबरों को तो छोड़िए, सार्वजनिक महत्व की खबर पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा।
राजधानी की स्ट्रीट लाइट के मसले को ही ले लें। नगर निगम और बिजली कंपनी में बिल भुगतान विवाद के कारण एक सप्ताह से प्रमुख सड़कों की बिजली बंद है। लोग अंधेरे में आने-जाने को मजबूर हैं। खबरें छप रहीं, लेकिन किसी अफसर ने मामले की गंभीरता को नहीं समझा। जबकि इस मसले पर पहले दिन ही एक्शन में आना चाहिए था। यह एक उदाहरण हर आदमी और उसकी सुरक्षा से जुड़ा है। अन्य किसी खबर पर भी कार्रवाई की कोई सूचना नहीं है। अफसरों ने मुख्यमंत्री के निर्देश को हवा में उड़ा रखा है। मुख्यमंत्री को ही तय करना है, क्या तरीका अपनाएं?
राहुल उठाएंगे मप्र से चुनाव लड़ने का जोखिम….!
प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी के एक कथन से राहुल गांधी के मध्यप्रदेश की किसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की अटकलें चल निकली हैं। पटवारी से राहुल के मप्र से चुनाव लड़ने को लेकर सवाल पूछा गया था। उन्होंने कहा कि बाबा महाकाल जो निर्देश देंगे, वह होगा। न उन्होंने सवाल का समर्थन किया, न ही खंडन। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से राहुल गांधी का कद बढ़ रहा है। वे मप्र की किसी सीट से चुनाव लड़ें तो कांग्रेस को फायदा हो सकता है।
लेकिन क्या राहुल गांधी यह जोखिम उठाएंगे? जोखिम इसलिए कि कांग्रेस ने भले विधानसभा के पिछले चुनाव के बाद प्रदेश में सरकार बना ली थी लेकिन उसके 6 माह बाद हुए लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस सिर्फ छिंदवाड़ा किसी तरह जीत सकी थी। वह भी तब जब कमलनाथ मुख्यमंत्री थे और उनके बेटे नकुलनाथ मैदान में। दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिग्गज तक बड़े अंतर से चुनाव हार गए थे। राहुल गांधी उप्र की परंपरागत सीट अमेठी से पिछला चुनाव हार चुके हैं। वे केरल से सांसद हैं। राहुल यदि मप्र से चुनाव लड़े और हार गए तो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के जरिए कमाई पूरी पूंजी पर पानी फिर जाएगा। हां, वे कमलनाथ के प्रभाव वाली छिंदवाड़ा सीट से चुनाव लड़कर जरूर यह जोखिम उठा सकते हैं।
ऐसा क्या बड़ा अपराध कर बैठे अशोक शाह….?
महिला बाल विकास के एसीएस अशोक शाह कांग्रेस के साथ भाजपा के भी निशाने पर हैं। अपराध है, लाड़ली लक्ष्मी उत्सव कार्यक्रम में उनका कहना कि महिलाओं का एक बड़ा वर्ग बच्चियों को अपना दूध नहीं पिलाता। इशारा लड़कों की तुलना में लड़कियों के साथ पक्षपात करने की ओर था। उन्होंने यह बात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में कही। बस क्या था, पहले कांग्रेस ने उनके कथन को महिलाओं, बेटियों का अपमान बताया। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, पूर्व मंत्री रंजना बघेल जैसी भाजपा नेत्रियों ने भी शाह पर हमला बोल दिया।
उनके कथन को महिला विरोधी और सरकार की छवि खराब करने वाला बताया। सवाल है कि क्या वास्तव में अशोक शाह ने कोई बड़ा अपराध कर दिया? जिस मंच से स्वयं मुख्यमंत्री कह रहे हों कि बड़ी तादाद में लड़कियों के साथ भेदभाव होता है, लड़का होने पर खुशी और लड़की होने पर मातम की स्थिति रहती है, बच्चियों को गर्भ में ही मार देने की घटनाएं होती है, लड़कों और लड़कियों के खिलाने-पिलाने और पढ़ाने में पक्षपात किया जाता है। क्या इन बातों की तुलना में शाह का बयान ज्यादा गंभीर है? उन्होंने यही कहा न कि जो माताएं बच्ची होने पर उन्हें अपना दूध नहीं पिलाती हैं, वे भी पिलाएं ताकि बच्ची का पूरा विकास हो। इसमें इतना हाय-तौबा मचाने जैसा क्या है?
शराब को लेकर अपनों के कारण धर्मसंकट….
शराबबंदी और शराब की अवैध बिक्री सरकार के गले की फांस बन रही है। इसे लेकर भाजपा सरकार अपनों के कारण ही धर्मसंकट में है। धर्मसंकट इसलिए कि सरकार न अपनों की मांग पूरी कर सकती, न ही उनके खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्रवाई कर सकती। पहले संकट की वजह पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती थीं।
वे अब भी शराब नीति और शराबबंदी को लेकर सरकार को अल्टीमेटम दे रही हैं। वे कहती हैं कि वे दो-चार माह में सरकार को अपनी नीति बदलने के लिए बाध्य कर देंगी। तसल्ली की बात यह है कि प्रारंभ में वे शराबबंदी के लिए लट्ठ लेकर निकलने की बात करती थीं, अब सिर्फ नीति में परिवर्तन की बात कर रही हैं। भाजपा के एक विधायक पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने शराब को लेकर अलग तरह से मोर्चा खोला है। उनका कहना है कि गांव-गांव में अवैध शराब बिक रही है। जिससे यह सामाजिक बुराई तेजी से फैल रही है। उनका कहना है कि अवैध शराब बिक्री पर कार्रवाई न होने से भाजपा और सरकार बदनाम है। विश्नोई का कहना है कि यदि शराब की यह अवैध बिक्री रोक दी जाए तो हर गांव में भाजपा के वोट बढ़ सकते हैं। साफ है कि शराब का मुद्दा भाजपा के अपनों ने ही पकड़ रखा है। लिहाजा, भाजपा कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है। उसके सामने यह बड़ा धर्मसंकट है।
मुख्यमंत्री बनने का उतावलापन या वजह कुछ और….!
इंदौर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक कार्यक्रम में प्रदेश के दो मंत्री तुलसी सिलावट एवं इंदर सिंह परमार एक हरकत के कारण मजाक का पात्र बन गए। सीएम राइज स्कूलों से जुड़े इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने छात्र-छात्राओं से पूछा था कि जो बच्चे मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, हाथ उठाएं। इसे मुख्यमंत्री बनने का उतावलापन कहें या वजह कुछ और, बच्चों के साथ परमार एवं सिलावट ने भी हाथ उठा दिए। हाथ उठाते ही दोनों मंत्री कांग्रेस के निशाने पर आ गए। दोनों मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी नहीं है। सिलावट तब भी पहले मंत्री रह चुके हैं, अजा वर्ग से आते हैं और वरिष्ठ हैं लेकिन परमार तो पहली बार मंत्री बने हैं। फिर भी दोनों का हाथ उठा देना गले नहीं उतरा। हालांकि एक नेता ने इसकी दूसरी ही वजह बताई। उन्होंने कहा कि आमतौर पर मंच पर बैठे नेता मुख्यमंत्री का पूरा भाषण नहीं सुनते। उनका दिमाग कई बार और कहीं होता है। संभव है दोनों मंत्री सुन ही न पाए हों कि मुख्यमंत्री ने किस बात को लेकर हाथ उठाने को कहा है और उन्होंने भी हाथ उठा दिए। दूसरा ये भी हो सकता है कि जैसे ताली बजवाने के लिए मंच पर बैठे नेता इशारा करते हैं, उसी तरह इन्होंने बच्चों को हाथ उठाने का इशारा करने के लिए खुद हाथ उठा दिए हों। वजह जो भी हो लेकिन दोनों मंत्री मजाक का पात्र तो बन गए।