राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं का संकट और भूमिका महत्वपूर्ण

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राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं का संकट और भूमिका महत्वपूर्ण

लोकसभा चुनाव के दौरान और बाद में राहुल गाँधी की कांग्रेस , लालू यादव की आर जे डी , ममता की तृणमूल कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टी देश के अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के संकट , समुदाय के अपने शरीयत कानून , वक्फ बोर्ड के अधिकार , बांग्ला देश की घटनाओं के साथ मुस्लिम विस्थापितों आदि मुद्दे उठाकर अपने वोट बैंक को पक्का करने की कोशिश कर रहे हैं | वहीं एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम अस्मिता के साथ राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी सबका साथ और सबका विकास के आदर्शों के आधार पर यही दावा करते हैं कि सभी योजनाओं , कार्यक्रमों और बजट से सभी क्षेत्रों , वर्गों , समुदायों की जनता को लाभ मिल रहा है | कहीं अल्प संख्यकों के साथ भेदभाव नहीं हो रहा है | यही कारण है कि कई प्रदेशों के मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिए हैं | सबसे बड़ा प्रमाण गुजरात का है , जहाँ सी एस डी एस के सर्वे से प्रमाणित है कि 29 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं ने भी भाजपा को वोट दिए | हिंदुत्व के लिए समर्पित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शीर्ष नेता लगातार यही स्पष्ट करते रहे हैं कि वे भारत में उत्पन्न 98 प्रतिशत मुस्लिमों को हिन्दू और भारतीय ही मानते हैं , फिर उनकी उपासना पद्धति अलग हो | इसी दृष्टि से मोदी सरकार भी समान नागरिक संहिता के लिए अभियान चला रही है | उत्तराखंड में तो इसके प्रारुप को विधान सभा में पारित कर दिया गया |

तब सवाल उठता है कि मुस्लिम अधिकारों , आरक्षण और हितों के नाम पर कुछ राजनीतिक पार्टियों के नेता सामाजिक भेदभाव और कटुता क्यों उत्पन्न कर रहे हैं | इनमें असली राष्ट्रवादी नेता कौन है ? इस सन्दर्भ में आज़ादी से पहले बीसवीं शताब्दी में स्वयं मुस्लिम नेताओं द्वारा साम्प्रदायिकता के विरुद्ध उठाई गई बातों को याद दिलाना उचित लगता है | अलीगढ़ के प्रसिद्ध विद्वान नेता सर सैय्यद अहमद खान ने 27 जनवरी 1883 को पटना में हिन्दू मुस्लिम एकता पर ऐतिहासिक व्याख्यान देते हुए कहा था – ” हम भारत की हवा में सांस लेते हैं , गंगा यमुना सहित नदियों का जल पीते हैं , भारत की जमीन पर उपजा अनाज खाते हैं | भारत में रहने से शरीर के रंग एक हैं | | यदि हम जीवन में धर्म – ईश्वर की बात को अपनी मान्यता के अनुसार रहने दें , तो मानना पड़ेगा कि हमारा देश एक , कौम एक है और देश की तरक्की भलाई , एकता , परस्पर सहानुभूति और प्रेम पर निर्भर है | अनबन , झगड़े और फूट हमें समाप्त कर देगी | ” यही नहीं पंजाब में हिन्दुओं की एक सभा में उन्होंने कहा – ” हिंदुस्तान का हर निवासी अपने को हिन्दू कह सकता है | मुझे इस बात का दुःख है कि आप मुझे हिन्दू नहीं समझते , जबकि मैं भी हिंदुस्तान का वासी हूँ | ”

इसी तरह 1896 में लोकमान्य तिलक द्वारा शोलापुर में प्रारम्भ किए गए गणपति उतसव में हिन्दू मुस्लिम सिख पारसी सभी धर्मावलबी शामिल होते थे | उस समय के एक साप्ताहिक अखबार ‘ रफत गोफ्तार ‘ ने लिखा था – ” गणपति उत्सव में स्थानीय मुसलमान गणपतिजी का सम्मान करते जुलूसों में शामिल हुए | नासिक में तो गणपति विसर्जन जुलुस का नेतृत्व एक मुस्लिम सज्जन कर रहे थे | ” इस समय बिहार बंगाल और वहां के मुस्लिमों को लेकर सर्वाधिक राजनीति हो रही है | इतिहास इस बात का गवाह है कि लार्ड कर्जन ने 1903 में हिन्दू मुस्लिम एकता तोड़ने के लिए ही बंगाल के विभाजन कि योजना पर अमल शुरू किया था | इसके विरुद्ध समाज में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी | स्वदेशी रैली हुई और राखी अपील जारी की गई | 1905 में लियाकत हुसैन ने सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को पत्र लिखकर बंग विभाजन से निपटने के लिए बहिष्कार को एकमात्र उपाय बताया था | बिहार में 1908 और 1909 में हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए सम्मेलनों के आयोजन हुए | उस समय हिन्दू मुस्लिम नेताओं का प्रभाव जनता पर था | बहरहाल अंग्रेजों के कारण बंगाल ही नहीं देश का भी विभाजन हुआ | लेकिन क्या आज उस तरह का कोई बड़ा राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता है ? कांग्रेस पार्टी में दशकों से प्रमुख स्थानों पर रहे सलमान खुर्शीद या बंगाल में अधीर रंजन चौधरी अपने मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में न तो स्वयं चुनाव जीत पाते हैं , न किसीको जितवा पाते हैं | आर जे डी और समाजवादी या शरद पवार की विभाजित एन सी पी में जो नेता मुस्लिम नेता बढ़ाए गए , उनकी आपराधिक गतिविधियों से देश के किसी राज्य में उनकी विश्वसनीयता मुस्लिम समाज में नहीं बन पाई | ओवेसी भी हैदराबाद और दो चार चुनाव क्षेत्रों को प्रभावित कर पाते हैं | ये सब अपने प्रचार और देशी विदेशी समर्थन से सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय के हितों की ठेकेदारी का दावा करते रहते हैं |

देश में सबसे अधिक मुस्लिम जम्मू-कश्मीर में रहते हैं. |आबादी में इनकी हिस्सेदारी 68.31% है | मुफ़्ती मोहम्मद सईद जम्मू और कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री थे। वे जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष थे। वे भारत के गृह मंत्री भी रहे। यह भी कांग्रेस से निकले वी पी सिंह के अल्प सत्ता काल में | उत्तर प्रदेश भारत की सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है. | देश की कुल आबादी का 16.51 फीसदी यहीं बसता है | इस सूबे में चुनावों में हुई हार-जीत का गणित देश की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाता है | साल 2011 की जनगणना पर नजर डाले तो यूपी की कुल आबादी 19.98 करोड़ रही और इसमें 3.84 करोड़ मुस्लिम रहे | इस हिसाब से देखा जाए तो इस सूबे की कुल आबादी में 20.26 फीसदी मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है | यही वजह है कि सियासी शतरंजी बिसात पर मुस्लिम वोट बैंक की अहमियत को अनदेखा नहीं किया जा सकता है | यहां विभिन्न राजनीतिक दलों की हार-जीत का दारोमदार मुस्लिम नेताओं पर रहता है | ऐसे कुछ असरदार और रौबदार नेताओं में आजम खान, मुख्तार अंसारी, नसीमुद्दीन सिद्दीकी हैं तो इमरान मसूद शफीकुर्रहमान बर्क, नाहिद हसन, हाजी फजलुर्रहमान, एसटी हसन जैसे नेताओं के नाम गिनाए जाते रहे हैं | लेकिन इनके विवादों की चर्चा काम नहीं होती और किसी अन्य राज्य में तो उनका कोई असर नहीं होता |लोकसभा चुनाव 2024 में कुल 78 मुस्लिम उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। इसमें निर्दलीय उम्मीदवार भी शामिल हैं। जबकि 2019 में 115 मुस्लिम उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। इस बार संसद में 24 मुस्लिम सांसद चुनकर आए हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के 7, समाजवादी पार्टी के 4, टीएमसी के 5, आईयूएमएल के 3, नेशनल कॉन्फ्रेंस के दो और 2 निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवार जीतकर संसद पहुंचे हैं।इसमें युसुफ पठान, असदुद्दीन ओवैसी, और इकरा चौधरी जैसे बड़े चेहरे शामिल हैं। फिर भी करीब बीस करोड़ मुस्लिम आबादी में व्यापक प्रभाव रखने वाला क्या कोई एक मुस्लिम नेता है ?