वैशाख शुक्ल चतुर्थी का दिन वास्तव में दतिया का था, माई का था और नई परंपरा की शुरुआत का था …

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गौरव दिवस…हर गांव का गौरव दिवस, हर नगर का गौरव दिवस, हर महानगर का गौरव दिवस। 8 फरवरी को गौरव दिवस नवाचार की शुरुआत शिवराज के पैतृक गांव जैत से हुई थी। जैत उस दिन खुशियों से सराबोर था। जैत को आदर्श गांव बनाने का हर प्रस्ताव पारित हो रहा था। और विकास में समाज और हर निवासी की सहभागिता का नया मॉडल आकार ले रहा था। हर जाति-समाज के बुजुर्गों का वंदन-अभिनंदन पत्नी साधना संग शिवराज खुद मंच पर कर रहे थे। और गौरव दिवस का यह सफर करीब-करीब तीन महीने बाद दतिया तक पहुंच गया है। 4 मई को वैशाख माह की शुक्लपक्ष चतुर्थी का दिन यानि माई के प्राकट्य दिवस को दतिया का ‘गौरव दिवस’ मनाया गया। यह खास इसलिए था कि एक नई परंपरा की शुरुआत माई की नगरी में हो रही थी।
यह नई परंपरा थी माई की रथ यात्रा का संपूर्ण दतिया में भ्रमण। यह रथ घोड़े-हाथी, बैल या मशीन से नहीं चल रहा था, बल्कि माई के भक्त रथ को खींचकर नगर के घर-घर ले जा रहे थे। और परंपरा की शुरुआत खुद मुख्यमंत्री शिवराज ने माई की रथ में पूजा कर और माई का रथ खींचकर की। और यह परंपरा अब हर साल माई भक्तों की आस्था का मुख्य आकर्षण रहेगी। गृह मंत्री मिश्रा कह रहे थे कि हम रहें या न रहें…लेकिन परंपरा हमेशा रहती है। जगन्नाथ जी की यात्रा किसने शुरू की, पता नहीं लेकिन परंपरा चल रही है। महाकाल की रथ यात्रा कब शुरू हुई, पता नहीं…लेकिन परंपरा चल रही है। मां पीतांबरा माई की रथ यात्रा की परंपरा भी चलती रहेगी, हम रहें या न रहें…। यह बात सौ टका सही है। और गौरव दिवस के बहाने ही सही, वैशाख शुक्ल चतुर्थी का दिन माई का दिन था, दतिया का दिन था और माई की रथ यात्रा की परंपरा की शुरुआत का दिन था।
और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गदगद थे कि गौरव दिवस का उनका नवाचार लगातार पंख लगाकर आकाश को छू रहा है। मंच से उन्होंने नरोत्तम की तारीफ की, तो दतियावासियों से सीधे रूबरू होते हुए पूछ ही लिया कि क्या कभी कल्पना की थी कि दतिया में मेडिकल कॉलेज खुलेगा? क्या सोचा था कि लॉ कॉलेज खुलेगा? क्या कभी सोचा था कि दतिया में हवाई पट्टी बनेगी? और अब तो 400 करोड़ का मोटर ड्राइविंग स्कूल भी दतिया में लेकर आ गए डॉ. नरोत्तम मिश्रा। कमाल कर दिया और इतिहास रच दिया। लेकिन दतिया के लोग तय करें कि स्वच्छता में नंबर एक पर आना है और विकास में हर नागरिक को सहभागी बनना है।
वैशाख शुक्ल चतुर्थी का दिन वास्तव में दतिया का था, माई का था और नई परंपरा की शुरुआत का था ...
चाहे आंगनवाड़ी हो, चाहे अस्पताल के लिए कुछ करना हो यानि भाव यही कि हमारा शहर, गांव को सजाने-संवारने का काम सिर्फ सरकार भरोसे नहीं बल्कि अपनी जिम्मेदारी समझकर हर नागरिक को करना है। वाह शिवराज, क्या बात है? आखिर गौरव दिवस का नवाचार हर दिन एक-एक कदम आगे बढ़ा रहा है। सरकार के भरोसे रहकर नहीं बल्कि समाज की सहभागिता से ही विकास संभव है, यह सोच एक पौधे की तरह रोपित हो रही है। निश्चित तौर से समय लगेगा, लेकिन जब यह सपना सच होगा और पौधा जब वृक्ष बनकर अपनी खुशबू बिखेरेगा…तब लोग भले ही यह भूल जाएं कि सोच का यह पौधा किसने रोपा था, लेकिन हर गांव और हर शहर विकास का पर्याय बन चुका होगा।

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तो नरोत्तम मिश्रा ने तो चुनौती ही दे दी कि दतिया बदल चुका है। मन की बात कहें या यह कहें कि मन की पीड़ा जुबां पर भी आ गई कि लोग दतिया को बदनाम करते थे। कहावत कहते थे कि न ऐंठ दतिया में, न फेंट दतिया में और सज्जन सपूत से न भेंट दतिया में …। चुनौती दी कि वह लोग आएं और देखें कि दो दिन से पूरा दतिया सजा है, हर घर में मेहमान हैं। होटल, लॉज, धर्मशाला और खाना-पीना सब फ्री है। सज्जन सपूतों से भेंट हो रही है। यह दर्द जो कहीं सीने में जिंदा था, वह बाहर छलक ही गया। डॉ. मिश्रा ने दावा किया कि अब दतिया बदल गया है। मन की आवाज यही थी कि अब बदनाम मत करना हमारे दतिया को। अब यहां सज्जन भी हैं और सपूत भी हैं।

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वैसे दतिया की तारीफ में भी कहावत है कि “झांसी गले की फांसी, दतिया गले का हार…ललितपुर न छोड़िए जब तक मिले उधार।” और वैसे भी दतिया तपस्वियों की स्थली है। परमपूज्य स्वामी जी और पीतांबरा माई का मंदिर तो विश्वविख्यात है ही, साथ ही ऐसे कई धार्मिक पवित्र स्थान हैं… जहां मत्था टेकने पर यह महसूस हो ही जाता है कि यह महान संतों की तपस्थली है और आशीर्वाद बरस रहा है। तो माई की रथयात्रा की परंपरा माईभक्तों की झोली को खुशियों से सराबोर रखे और दतिया का ‘गौरव दिवस’ यहां के हर नागरिक को यह गौरव करने का अवसर दे कि उनकी सहभागिता से उनका शहर आदर्श शहर का आकार ले चुका है। वैशाख शुक्ल चतुर्थी का 4 मई 2022 का यह दिन वास्तव में दतिया का था, माई का था और नई परंपरा की शुरुआत का था …।