नेताओं द्वारा राजनीतिक गड्ढे खोदने से ही हो रहा कांग्रेस का पतन

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नेताओं द्वारा राजनीतिक गड्ढे खोदने से ही हो रहा कांग्रेस का पतन

आलोक मेहता

मध्य प्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पराजय के लिए कांग्रेस को अधिक समीक्षा की आवश्यकता नहीं है | हर बड़ी पराजय पर बनी कमेटियों की रिपोर्ट्स अलमारियों में धूल खा रही हैं | प्रदेशों के नेताओं द्वारा अपने वर्चस्व के लिए प्रतिद्वंदियों को गढ्ढों में गिराने के हथकंडे अंततोगत्वा उन्हें और पार्टी को धराशायी कर देते हैं | बहुत कम लोगों को याद होगा कि मध्य प्रदेश में पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र से लेकर श्यामाचरण शुक्ल , कमलनाथ , अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह तथा अजीत जोगी या भूपेश बघेल तक यही दांव पेंच आत्मघाती साबित हुए हैं | कमलनाथ ने तो  1980  के प्रारंभिक दौर में ही शुक्ल बंधुओं के प्रिय आदिवासी नेता शिवभानु सिंह सोलंकी को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए पहले अपनी दावेदारी की और अधिक समर्थक न देख अपने गुट को अर्जुन सिंह से जोड़कर उन्हें जितवा दिया | बाद में वह सदा अर्जुन सिंह का साथ देकर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहकर अपने  विश्वस्त  विधायकों को महत्वपूर्ण बिजली – ऊर्जा और लोक निर्माण विभाग ( पी डब्लू डी ) दिलवाते रहे | इन विभागों के बजट और ठेकेदारी के काम सर्वाधिक रहते हैं | प्रदेश में  द्वारका प्रसाद मिश्र ने ही पहले शुक्ल बंधुओं का प्रभाव रोकने के लिए पी सी सेठी और अर्जुन सिंह को महत्व दिलाया | बाद में अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह ने माधव राव सिंधिया , मोतीलाल वोरा , सुभाष यादव , सुरेश पचौरी को रोकने के लिए हर संभव राजनीतिक चाल चली | इस बार भी कमलनाथ और दिग्विजय एक हद तक समर्थन विरोध का खेल खेलकर तिकड़मों से विजयी होने की कोशिश कर रहे थे | इसलिए इस जोड़ी और राहुल गाँधी के अहंकार तथा जमीनी संगठन के अभाव से चुनाव में भारी पराजय हुई |

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पराजय के बाद ई वी एम् – वोटिंग मशीन में गड़बड़ी और उसे उत्तरदायी बताना हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण समझा जा रहा है , क्योंकि हाल ही में कर्नाटक , हिमाचल प्रदेश और अब तेलंगाना में कांग्रेस उन्हीं मशीनों से विजयी होकर जयजयकार कर रही है | यदि गड़बड़ी संभव थी भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के गृह राज्य अथवा येदुरप्पा बोम्मई और के चंद्रशेखर राव अपनी सरकारों और पार्टियों को नहीं जीता लेते ? प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी ने नेतृत्व , नीतियों – कार्यक्रमों – क्रियान्वयन और संगठन पर निरंतर ध्यान देकर लोक सभा अथवा प्रदेश विधान सभा चुनावों में सफलता पाई है | ऐसा नहीं कि प्रदेशों के भाजपा नेताओं में प्रतिद्वंदिता नहीं है | लेकिन वह बहुत अधिक नियंत्रित है | जनता पार्टी के समय भी जनसंघ के घटक के मुख्यमंत्री कैलाश जोशी , सुंदरलाल पटवा और वीरेन्द्रकुमार सखलेचा के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए टकराव हुए , लेकिन कुशाभाऊ ठाकरे जैसे संघ से आए अध्यक्ष ने सबको संतुलित रख पार्टी और सरकार को बचाए रखा |  जब सखलेचा और अनेक वर्ष बाद    उमा भारती ने विद्रोह किया

और अलग पार्टी भी बनाई , लेकिन विधायकों या चुनाव में जनता का समर्थन नहीं पा सके | इसी तरह राजस्थान में भैरोसिंह शेखावत से असंतुष्ट भाजपा नेता बड़ा विद्रोह नहीं कर सके | वसुंधरा राजे को शेखावत और अटल बिहारी वाजपेयी ने केंद्र में मंत्री और फिर मुख्यमंत्री बनवाया | वे अपने बल पर कोई सफलता नहीं पा सकती हैं | यही कारण है कि आज भी उनके कुछ समर्थक विधायक हैं , लेकिन वह विद्रोह करने की ताकत नहीं रखती | उन्हें अपने बेटे दुष्यंत का भविष्य भी देखना है | मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पराजय के बावजूद अपने बेटों का राजनीतिक भविष्य बनाने के लिए किसी भी तरह मैदान में जमे हुए हैं | अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह और सुभाष यादव के पुत्र अरुण यादव को तो उन्होंने बुरी तरह पीछे धकेल दिया है | जिस तरह छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने अपने पूर्व शीर्ष नेता मोतीलाल वोरा के बेटे अरुण वोरा , अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी ही नहीं पार्टी के प्रमुख प्रतिद्वंदी टी एस सिंघदेव को निरंतर पीछे धकेला है | कांग्रेस की सबसे बड़ी गलती यह भी रही कि उसने आदिवासी नेताओं को नेतृत्व का अवसर ही नहीं दिया | छत्तीसगढ़ तो आदिवासी बहुल इलाका है | संयुक्त मध्य प्रदेश में अरविन्द नेताम , दिलीप सिंह भूरिया , कांतिलाल भूरिया जैसे आदिवासी नेताओं का उपयोग किया , लेकिन कभी सत्ता नहीं सौंपी | यही नहीं केंद्र में मनमोहन सिंह – सोनिया राहुल गाँधी और प्रदेश में अजीत जोगी और भूपेश बघेल के राज में माओवादी नक्सल समर्थक सलाहकारों को महत्व देकर नक्सल तत्वों के प्रति नरम रुख रखा | जबकि आदिवासी मोदी  राज के साथ व्यापक सामाजिक आर्थिक बदलाव और प्रगति के लिए आकर्षित होते रहे हैं |

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राजस्थान में तो कांग्रेस को डुबोने के लिए राहुल गाँधी ने अशोक गेहलोत और सचिन पायलट को पांच साल लड़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया | सचिन से  दस वर्षों तक मुख्यमंत्री बनाने की आँख मिचोली की | गेहलोत को अपने विश्वस्त  सहयोगी वेणुगोपाल और सुरजेवाला से दबाव बनवाकर स्वार्थों की पूर्ति करते रहे | गेहलोत इंदिरा युग से संगठन पर मजबूत पकड़ बनाते रहे , लेकिन तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद ऊपरी और  विधायकों  के दबाव तथा पुत्र वैभव के राजनैतिक भविष्य के भंवर  जाल में फंस गए | सचिन और उनके साथियों को ही नहीं पुराने साथी लेकिन राहुल के भी नजदीक सी पी जोशी जैसे अन्य नेताओं को राजनीतिक रुप से कमजोर करते रहे | वह स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री  हरिदेव जोशी , शिवचरण माथुर , गिरिजा व्यास के खिलाफ मोर्चा बनाकर सत्ता में पहुंचे थे |  दूसरी तरफ भाजपा ने राजस्थान के  पुराने प्रतिद्वंदियों को किनारे कर दूसरी पंक्ति के नेता के रुप में गजेंद्र सिंह शेखावत , राज्यवर्धन सिंह राठौर , महारानी  दिया कुमारी , अर्जुन मेघवाल को आगे के लिए तैयार कर लिया | मध्य प्रदेश में भी पिछले पांच वर्षों से शिवराज सिंह पर असंतोष का आंतरिक दबाव रहा , लेकिन सार्वजनिक नहीं हुआ | फिर यहाँ भी कैलाश विजयवर्गीय , नरेंद्र सिंह तोमर , प्रह्लाद सिंह पटेल , वी डी शर्मा सहित दूसरी पंक्ति के सेनापति चुनावी मैदान में उतार दिए | छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के 15 वर्षों के कार्यकाल की राजनीतिक पूंजी और आदिवासी इलाकों एवं महिलाओं के बीच लगातार सक्रिय रहते हुए भाजपा ने रेणुका सिंह , सरोज पांडे ,अरुण साव और  ब्रजमोहन अग्रवाल जैसे कुछ नेता तैयार कर दिए | इस तरह मोदी की गारंटी यानी वायदे के अनुसार जन कल्याण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन का विश्वास जनता में बनाया | नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस की गाड़ी अपने बनाए गड्ढों में धंसती चली गई और भाजपा ने अभी से 2024 के लोक सभा चुनाव में विजय रथ के लिए रास्ते पक्के कर लिए |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।