जन्मदिन पर विशेष: संपूर्ण सिंह कालरा के गुलजार बनने की पूरी कहानी
18 अगस्त 1934 के दिन झेलम जिले (अब पाकिस्तान का हिस्सा) में जन्मे संपूर्ण सिंह कालरा के गुलजार बनने की पूरी कहानी किसी जादू से कम नहीं. उन्होंने कभी दिल को बच्चा बताया तो कभी जिंदगी से नाराज नहीं होने की वजह बताई. बर्थडे स्पेशल में हम आपको कलम के जादूगर की जिंदगी के उन किस्सों से रूबरू करा रहे हैं, जो उन्होंने अपने दिल में संभालकर रखे हैं. जिसका आने वाले वक्त में हिंदी सिनेमा ही नहीं, बल्कि हॉलीवुड में भी डंका बजा। इसका जन्म ब्रिटिश इंडिया के झेलम इलाके में दीना नाम के एक गांव में हुआ था, और नाम रखा गया था संपूर्ण सिंह कालरा। संपूर्ण सिंह कालरा वही हैं, जिन्हें आज पूरी दुनिया मशहूर राइटर, गीतकार और लेखक गुलजार के रूप में जानती है। गुलजार जिस जगह जन्मे, वह अब पाकिस्तान में है। दुनियाभर में लोग उनके गानों, नज्मों और लिखे गए शब्दों के फैन हैं। गुलजार के 89वें जन्मदिन के मौके पर उनकी जिंदगी से जुड़े दो दिलचस्प किस्से बताने जा रहे हैं। एक किस्सा रवींद्रनाथ टैगोर से जुड़ा है, और दूसरा उस जबरा फैन से, जिसने जावेद अख्तर को गुलजार समझ लिया था।
Gulzar ने निजी जिंदगी में बहुत दुख देखा, परिवार के साथ विभाजन का दर्द भी झेला। और वही दर्द शायद उनकी लेखनी में भी दिखने लगा। गुलजार के पिता का नाम मक्खन सिंह था, और उन्होंने तीन शादियां की थीं। गुलजार, पिता की दूसरी पत्नी के बेटे थे। लेकिन उनके जन्म के वक्त मां का निधन हो गया। तब गुलजार को उनके पिता की तीसरी पत्नी यानी सौतेली मां ने पाला था।
गजल-नज्म से यूं हुई मोहब्बत
हर लफ्ज में दर्द के कतरों को बयां करने वाले गुलजार को गजलों और नज्मों से इश्क कैसे हुआ, यह कहानी भी अपनेआप में खास है. हुआ यूं कि 1947 के गदर में सबकुछ गंवाकर झेलम से हिंदुस्तान आए गुलजार जब दिल्ली पहुंचे तो उनकी पढ़ाई-लिखाई एक स्कूल में शुरू हुई. उस दौरान उर्दू के प्रति उनका लगाव बढ़ने लगा. गालिब से उनकी नजदीकियां इस कदर बढ़ीं कि वह गालिब और उनकी शायरी से इश्क कर बैठे. गुलजार का यह इश्क बदस्तूर जारी है.गुलजार ने समय गुजारने के लिए दुकान से किताबें लेकर पढ़ना शुरू कर दिया। उन्हें पढ़ने का इतना ज्यादा चस्का लग गया कि वह एक ही दिन में पूरी किताब पढ़ लेते। लेकिन तभी गुलजार के साथ रवींद्र नाथ टैगोर की एक किताब लगी, जिसने उनकी जिंदगी ही बदल दी। दरअसल दुकान का मालिक इस बात से तंग आ गया था कि गुलजार एक ही रात में पूरी किताब पढ़कर लौटा देते हैं, और रोजाना नई किताब लेकर जाते हैं।
उसने गुलजार को रवींद्रनाथ टैगोर की उर्दू में लिखी किताब दे दी। गुलजार ने वह किताब पढ़ी, जिसने उनकी सोच और जिंदगी की दिशा ही बदल दी। उस किताब को पढ़कर ही गुलजार ने को लिखने का शौक लग गया, और फैसला किया कि वह राइटर बनेंगे। गुलजार गोदाम और दुकान में रहने के दौरान ही अपने ख्यालों को पन्नों पर उतारने लगे। पिता को जब पता चला, तो गुलजार को बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माने।