हरियाली में आग लगी है, नदी-नदी है खौल उठी…
‘ओ ज्योतिर्मयि ! क्यों फेंका है,
मुझको इस संसार में ।
जलते रहने को कहते हैं,
इस गीली मँझधार में ।
मैं चिर जीवन का प्रतीक हूँ
निरीह पग पर काल झुके हैं,
क्योंकि जी रहा हूँ मैं
अब तक प्यार-भरों के प्यार में…
‘
रांगेय राघव की इस कविता का शीर्षक है ‘अर्धचेतन अवस्था में कविता’। इसका हर शब्द और पंक्ति आज भी प्रासंगिक है। रांगेय राघव को हम आज इसलिए याद कर रहे हैं, क्योंकि आज उनकी पुण्यतिथि है। रांगेय राघव के अंदर लेखन की अभूतपूर्व क्षमता थी। उनके बारे में कहा जाता है कि ‘जितने समय में कोई पुस्तक पढ़ेगा उतने में वे लिख सकते थे। उन्हें किसी कृति की रूपरेखा बनाने में समय लगता था, लिखने में नहीं।’ बताते हैं कि उन्होंने महज 13 वर्ष की आयु से लेखन शुरू कर दिया था।
रांगेय राघव (17 जनवरी,1923–12 सितंबर,1962) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभावाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए। जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार,कहानीकार,निबंधकार, आलोचक, नाटककार,कवि, इतिहासवेत्
रांगेय राघव की एक कविता ‘डायन सरकार’ बहुत चर्चित रही। यह कविता आजादी के पहले अंग्रेजों की सरकार पर लिखी गई थी।
डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दाँतों से,
छीन-गरीबों के मुँह का है, कौर दुरंगी घातों से ।
हरियाली में आग लगी है, नदी-नदी है खौल उठी,
भीग सपूतों के लहू से अब धरती है बोल उठी,
इस झूठे सौदागर का यह काला चोर-बाज़ार उठे,
परदेशी का राज न हो बस यही एक हुंकार उठे।
क्या आपको लगता है कि यह कविता आज भी पूरी तरह से प्रासंगिक है। ‘परदेशी का राज न हो’ की जगह क्या अब ऐसा नहीं लगने लगा है कि ‘ऐसा देशी राज न हो’। जैसा लोग कभी-कभी वर्तमान सरकारी व्यवस्था से झल्लाते हुए कह भी देते हैं कि ‘इससे अच्छा तो अंग्रेजों का राज था’। तो रांगेय राघव को उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन। क्या यह लगता है कि आज भी इस जग को राघव के रंग में रंगने की जरूरत है…या फिर उनकी कविता की यह पंक्ति ‘हरियाली में आग लगी है, नदी-नदी है खौल उठी… आज भी चरितार्थ होती नजर नहीं आती…।