कश्मीर के चिनार से उठ रहे प्रगति के तूफ़ान का असर सीमा पार पाकिस्तान तक

292

कश्मीर के चिनार से उठ रहे प्रगति के तूफ़ान का असर सीमा पार पाकिस्तान तक

चिनार सिर्फ एक पेड़ नहीं बल्कि खुद में पूरा इतिहास समेटे है। चिनार ने कश्मीर के पल-पल बदलते हालात को बेहद करीब से देखा है। सैकड़ों दरख्तों की उम्र 300 से 700 साल तक है। हर सुर्ख पतझड़ के बाद चिनार अडिग है इस विश्वास के साथ कि वादी में अमन की बहार लौटने को है। आज फिर चिनार नए कश्मीर को बदलते देख रहा है। हमारे सभी धर्मस्थलों पर, पवित्र चश्मों में चिनार होता है। हम इसे मां भवानी का प्रसाद मानते हैं। गिलगित में मिले 1700 साल पुराने शिलालेखों पर भी चिनार की आकृतियां हैं।’ राजतरंगिणी’ में भी साहित्यकार कल्हन ने चिनार का उल्लेख किया है। यह पेड़ बहार में बड़े हरे गुलदस्ते की तरह दिखता है। पतझड़ में जब सभी पेड़ ठूंठ हो जाते हैं, तब इसके पत्ते लाल सुर्ख होकर आसपास के वातावरण को खूबसूरत बनाते हैं। इस्लाम में किसी भी हरे और छायादार पेड़ को काटने की मनाही है। यह पेड़ तो हमारे कश्मीरी पंडित भाइयों के लिए भी मजहबी अकीदत है। कश्मीर में उनकी सभी बड़ी मजहबी जगहों और मंदिरों में यह दरख्त हैं और वह इन्हें बुईन कहते हैं। बुईन को वह भवानी का रूप मानते हैं। इस्लाम में किसी भी हरे और छायादार पेड़ को काटने की मनाही है। यह पेड़ तो हमारे कश्मीरी पंडित भाइयों के लिए भी मजहबी अकीदत है। कश्मीर में उनकी सभी बड़ी मजहबी जगहों और मंदिरों में यह दरख्त हैं और वह इन्हें बुईन कहते हैं। बुईन को वह भवानी का रूप मानते हैं। कश्मीर में 35 हजार से अधिक चिनार हैं, जिनकी आयु छह साल से 700 साल तक है।

इस चिनार के साए और झेलम के किनारे पिछले चार वर्षों के दौरान हो रही प्रगति और खुशहाली सम्पूर्ण भारत में एक नया विश्वास ला रही है | लेकिंन इसी कश्मीर के पाकिस्तान द्वारा कब्जाए भाग में बैचेनी बढ़ रही है और पाकिस्तान की लुंज पुंज सरकार और अत्याचारी सेना की नींद हराम हो रही है | जम्मू कश्मीर को अगस्त 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने के बाद आतंकवादी घटनाओं में भारी कमी , इलाके में शांति और प्रगति की रफ़्तार पकड़ने के बाद पहली बार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर की यात्रा करके एक विशाल रैली को सम्बोधित किया तथा लाखों लोगों को एक नया विश्वास दिलाया |

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में ‘विकसित भारत, विकसित जम्मू-कश्मीर’ कार्यक्रम के तहत 6400 करोड़ रुपए से ज्यादा के प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन किया । 1000 युवाओं को जॉब लेटर भी दिए। इसके बाद युवा उद्यमियों से उनकी कामयाबी के किस्से और समस्याएं सुनीं। कुछ समय पहले प्रधान मंत्री ने जम्मू में भी एक भव्य कार्यक्रम में प्रदेश के लिए 35 हजार के नए प्रोजेक्टस का शुभारम्भ भी किया था | उन्होंने श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम की सभा में कहा- ‘ये नया जम्मू-कश्मीर है। इसका दशकों से इंतजार था। यह वो जम्मू-कश्मीर है, जिसके लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बलिदान दिया। इसकी आंखों में भविष्य की चमक है। चुनौतियों को पार करने का हौसला है।आज ये खुलकर सांस ले रहा है ।’

प्रधान मंत्री ने कहा- ‘जम्मू-कश्मीर परिवारवाद और भ्रष्टाचार का भुक्तभोगी रहा है। यहां जम्मू कश्मीर बैंक में अपने नाते-रिश्तेदारों और भाई-भतीजों को भरकर इन परिवारवादियों ने बैंक की कमर तोड़ दी थी। हमने बैंक को एक हजार करोड़ की मदद देना तय किया। जो डूबने वाला बैंक था, आज उसका मुनाफा 1700 करोड़ रुपए तक पहुंच रहा है।कांग्रेस और उसके साथियों ने दशकों तक 370 के नाम पर जम्मू-कश्मीर और देश को गुमराह किया। आज जम्मू-कश्मीर में सारे रिकॉर्ड टूट रहे हैं। अकेले 2023 में ही 2 करोड़ से ज्यादा पर्यटक यहां आए।’

जम्मू कश्मीर के इस बदलते रुप पर हम जैसे पत्रकारों को भी नई पुरानी स्थितियां स्मृतियाँ ताजा हो जाती हैं | मुझे पत्रकार के रुप में 1977 से 2019 तक कई बार जम्मू कश्मीर जाने के अवसर मिले हैं | वहां की राजनीति और भ्रष्टाचार , आतंकवादी गतिविधियों पर लिखने बोलने का लम्बा सिलसिला रहा है | यही नहीं शायद उन कुछ सम्पादकों में रहा हूँ , जिन्हें जुलाई 2000 में इस्लामाबाद रावलपिंडी से सड़क मार्ग से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद तक जाने और वहां की बिगड़ती हालत देखने का मौका भी मिला है | तब जनरल मुशर्रफ सत्ता में थे और एक अख़बार तथा अनतर्राष्ट्रीय संस्था के सहयोग से दक्षिण एशिया मीडिया कांफ्रेंस का आयोजन हुआ | राष्ट्रपति मुशर्रफ को हमारे कुछ सवालों से कष्ट भी हुआ , लेकिन उनके सेनाधिकारी के सहयोग से ही कुछ सम्पादक मुजफ्फराबाद तक जा सके थे | मजेदार बात यह कि जब हमने पाकिस्तान द्वारा जिहादी के नाम पर बीस लाख आतंकवादियों को सत्ता के समर्थन का सवाल उठाया , तो उनके मेजर जनरल ने दावा किया कि उनकी संख्या दस लाख है और सरकार उनको नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है | बहरहाल यह संख्या बढ़ती घटती रही | यही नहीं हमारी यात्रा के बाद तो अमेरिका में ओसामा बिन लादेन का भयावह आतंकी हमला हुआ , जिसने दुनिया को हिला दिया | फिर मुंबई में ताज होटल और भारतीय संसद पर भी आतंवादी हमले हुए | इस आतंकवाद से अब अफगानिस्तान पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में गंभीर सामाजिक आर्थिक संकट पैदा हो गए हैं |

मुजफ्फराबाद में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोगों ने इसी मार्च महीने के शुरू में ही रैली निकाल कर अपने क्षेत्र पर पाकिस्तानी कब्जे और उसकी गतिविधियों का विरोध किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने जमकर नारेबाजी की और पाकिस्तानी प्रशासन और कानून प्रवर्तन एजेंसियों से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर खाली करने की मांग की। इसके साथ ही लोगों ने भूमि और जल संसाधन पर पाकिस्तानी कब्जे को लेकर भारी नाराजगी जताई।यूनाइटेड कश्मीर पीपुल्स नेशनल पार्टी के विदेश सचिव जमील मकसूद ने एक्स पोस्ट में कहा, ‘राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के कारण पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में उबाल है। यह 1947 नहीं, 2024 है। पाकिस्तान को आज नहीं तो कल दोनों क्षेत्रों को अपने कब्जे से मुक्त करना होगा। अब और अधिक दोहन नहीं और ज्यादा भ्रष्टाचार नहीं | ‘हाल ही में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में पाकिस्तान की उदासीनता के विरोध में लोग सड़कों पर भी उतरे थे। प्रदर्शन के दौरान लोगों ने गेहूं का आटा खरीदने के लिए नियंत्रण रेखा पार कर भारत के पुंछ जिले में पहुंचने का प्रयास किया था। प्रदर्शनकारियों ने दावा किया था कि पाकिस्तान उन्हें आवश्यक वस्तुएं भी उपलब्ध नहीं करा रहा है।

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर क्षेत्र बहुत ही गरीबी की हालत में है पाकिस्तान इस क्षेत्र के लोगों को भारत के खिलाफ जंग लड़ने के लिए उकसाकर यह आश्वासन देता है कि जिस दिन यह क्षेत्र पाकिस्तान का अधिकृत अंग बन जायेगा उस दिन से इस क्षेत्र का विकास पाकिस्तान की आर्थिक सहायता से शुरू हो जायेगा | जबकि सच्चाई यह है कि पाकिस्तान इस क्षेत्र में आतंकवादियों को ट्रेनिंग देता है | पाक के कब्जे वाले कश्मीर में जो सरकार काम करती है, उसपर पूरी तरह पाकिस्तान का कंट्रोल है। वहां के हालात बहुत ख़राब हैं। पाकिस्तानी सेना के हाथों मानवाधिकार के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। पाक के कब्जे वाले कश्मीर में कई आतंकी संगठन सक्रिय हैं, आईएसआई की शह पर वे यहां ट्रेनिंग कैम्प चलाते हैं और भारत के खिलाफ आतंकियों को तैयार करते हैं। अतः पाकिस्तान द्वारा इस क्षेत्र के विकास का आश्वासन एक छलावे से ज्यादा कुछ नहीं है |

 

कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा के समय इसकी पृष्ठभूमि पर ध्यान दिलाना जरुरी लगता है | अक्टूबर 1947 में भारत में शामिल हुए जम्मू-कश्मीर का मूल राज्य 2,22,236 वर्ग किमी था। लेकिन आज भारत का जम्मू-कश्मीर के केवल 1,06,566 वर्ग किमी पर ही भौतिक कब्ज़ा है। पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (पीओके) 72,935 वर्ग किलोमीटर कम है, 1963 में चीन को लीज पर दी गई शक्सगाम घाटी का 5,180 वर्ग किलोमीटर कम है। चीन के कब्जे वाले कश्मीर (सीओके) में 37,555 वर्ग किलोमीटर अक्साई चिन और शक्सगाम और वर्षों से निगला गया क्षेत्र शामिल है, जो कुल मिलाकर 42,735 वर्ग कि.मी. है। स्वतंत्र भारत की सीमा उत्तर पश्चिम में अफगानिस्तान के वखान गलियारे को छूती थी और उत्तर में चीन अधिकृत तिब्बत (सीओटी) को छूती थी। पाकिस्तान की चीन के साथ कोई सीमा नहीं थी | शक्सगाम घाटी (भारतीय क्षेत्र) का 5,180 वर्ग किलोमीटर, जो 1963 में चीन को अवैध रूप से पट्टे पर दिया गया था। चीन के कब्जे वाले कश्मीर (सीओके) में 37,555 वर्ग किलोमीटर अक्साई चिन और 5,180 वर्ग किलोमीटर शक्सगाम और छीना हुआ क्षेत्र शामिल है। महत्वपूर्ण बात यह है कि कश्मीर की सीमाओं पर रूस और चीन के साम्यवादी खतरे से लड़ने के लिए ब्रिटिश गिलगित-बाल्टिस्तान को अपने बनाए देश (पाकिस्तान) के साथ रखना चाहते थे। कैसी विडम्बना है कि पाकिस्तान आज साम्यवादी चीन का जागीरदार राज्य बन गया है और हथियारों के लिए रूस को भी लुभा रहा है।

1967-70 के दौरान, पाकिस्तान, संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक एटलस के मानचित्रों में सीएफएल को सही ढंग से दर्शाया गया था। लेकिन 1967 में, अमेरिकी रक्षा मानचित्रण एजेंसी ने बिना किसी औचित्य या किसी दस्तावेज के एनजे 9842 से काराकोरम (केके) दर्रे तक सामरिक पायलटेज चार्ट पर भारत-पाक सीमा दिखाना शुरू कर दिया | मानचित्रण द्वारा संपूर्ण सियाचिन-साल्टोरो क्षेत्र पाकिस्तान को दे दिया गया। यह संभवतः अमेरिका-ब्रिटेन के पाकिस्तान के प्रति नरम रुख के कारण जानबूझकर किया गया था। इसके अलावा, अमेरिका चीन के साथ संबंध स्थापित करना चाहता था जिसके परिणामस्वरूप अंततः 1972 में राष्ट्रपति निक्सन की बीजिंग यात्रा हुई। अमेरिकी रक्षा मानचित्रण एजेंसी द्वारा सामरिक पायलटेज चार्ट पर भारत-पाक सीमा दिखाना शुरू करने के बाद, कई आधिकारिक निजी मानचित्रकारों और एटलस निर्माताओं ने भी इसका अनुसरण किया और अंततः पाकिस्तान ने भी इसका अनुसरण किया। इसे सीमा बताने लगे। 1962 में जब नेहरू ने सेना को पीएलए को अवैध रूप से कब्जे वाली एक पोस्ट से बाहर निकालने का निर्देश दिया, तो चीन ने बड़े पैमाने पर पूर्व नियोजित आक्रमण शुरू कर दिया। 1963 में, पाकिस्तान ने सैन्य और परमाणु प्रौद्योगिकी के बदले में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में शक्सगाम घाटी को चीन को पट्टे पर दे दिया।

चीन संयुक्त राष्ट्र में और भारत-अफगानिस्तान के खिलाफ पाकिस्तानी आतंकवादियों का समर्थन करता है। खूनी माओवादी विद्रोह के माध्यम से, चीन ने नेपाल को अपने रणनीतिक क्षेत्र में खींचकर, नेपाल में सफलतापूर्वक कम्युनिस्टों को सत्ता में लाया है। चीन ने घोषणा की है कि वह नेपाल के स्कूलों में मंदारिन पढ़ाने का खर्च उठाएगा, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया है। स्वाभाविक रूप से, आने वाली पीढ़ी के वैचारिक और मनोवैज्ञानिक उपचार में पारंगत शिक्षक चीन से आएंगे। निकट भविष्य में नेपाल के अंदर पीएलए की तैनाती की संभावना है।चीन-पाकिस्तान के पास म्यांमार में अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ वेस्टर्न साउथ ईस्ट एशिया (यूएलएफ डब्ल्यूएसईए) जैसे प्रतिनिधि हैं, जो एनएससीएन और उल्फा सहित पूर्वोत्तर के नौ विद्रोही समूहों को एक साथ लाते हैं। भारत में विद्रोही और प्रतिबंधित संगठनों के चीन-पाकिस्तान संबंध हैं। प्रत्यक्ष मित्रता के बावजूद, चीन एनएसजी और यूएनएससी में स्थायी सदस्य के रूप में भारत के प्रवेश के खिलाफ रहा है। विदेश में काम करने वाली सभी चीनी कंपनियों और व्यक्तियों को अपने देश के लिए खुफिया जानकारी इकट्ठा करने में मदद करने का वचन दिया गया है और चीनी विकास परियोजनाओं में पीएलए की उपस्थिति है।

सीमा पर पाकिस्तान चीन के सारे प्रयासों के बावजूद भारत सरकार ने हाल के वर्षों में शांति और विकास के लिए तेजी से कार्यक्रमों को क्रियान्वित किया है | कृषि और पर्यटन के क्षेत्र में नया उत्साह आने से राजनीतिक माहौल भी बदल रहा है | सबसे बड़ी बात यह है कि अब देश के अन्य हिस्सों में लागू कानूनों और कल्याण योजनाओं का लाभ जम्मू कश्मीर के हर नागरिक को मिल रहा है | आगामी लोक सभा और विधान सभा के चुनावों से सत्ता में कोई आए , उस पर बड़ी जिम्मेदारी होगी | यों पिछले वर्षों में हुए पंचायतों स्थानीय निकायों के चुनावों से नई राजनैतिक चेतना आई है और युवाओं को आत्म निर्भर और सफल होने का विश्वास पैदा हो रहा है | उम्मीद की जानी चाहिए कि कश्मीर में आर्थिक प्रगति की गति सुनहरे भविष्य का निर्माण करेगी |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।