स्लेट से टैबलेट तक का सफर
रविवार यानि छुट्टी का दिन।आज के दिन हम न सियासत की बात करेंगे न शिकायत की।आज आपको एक ऐसे सफर से रूबरू कराते हैं जिसकी कल्पना भी हमारी पीढी ने नहीं की थी। ये सफर ‘ स्लेट से शुरू होकर टैबलेट ‘ पर आकर ठिठकता है ।
हमारी पीढ़ी ने अक्षर ज्ञान पहले काठ की तख्ती से शुरू किया था, लेकिन बहुत जल्द हमें ‘ स्लेट’ मिल गई।काले चमकीले पत्थर की स्लेट लकड़ी के फ्रेम में मढ़ी होती थी।इस पर खड़िया के बजाय सूखी पेंसिल से लिखने और डस्टर से साफ करने की सहूलियत थी।स्लेट का आकार चौकोर और वजन काठ की पट्टी के बनिस्बत कम होता था।हाथ में लटकाने और बस्ते में रखने में भी स्लेट पट्टी से अधिक सुविधाजनक होती थी।
बच्चों को कक्षा 05 तक स्लेट का इस्तेमाल करना होता था।कापी -किताब के दर्शन ककहरा और गिनती,पहाड़े सीखने के बाद होती थी। स्लेट का इस्तेमाल बच्चे ही नहीं बड़े भी करते थे। मौनी बाबा तो स्लेट पर लिखकर ही भक्तों के प्रश्नों के उत्तर देते थे।
स्लेट अक्सर दो आकार की बनती थी।एक 4×6और एक 7×10 इंच की। छोटी स्लेट छोटे बच्चों के लिए और बड़ी स्लेट बड़े बच्चों के लिए।स्लेट कम वजन के हल्के काले पत्थर की बनाई जाती थीं।इस पर चूने से बनी पेंसिल से (जिसे बत्ती कहा जाता था) से लिखा जाता था।स्लेट पर लिखा पत्थर की लकीर नहीं होता था।इसे हाथ से, कपड़े के टुकड़े से मिटाया जा सकता था।
स्लेट की कहानी बड़ी पुरानी है। कहते हैं कोई 14 वीं सदी में इसकी खोज की गई। सोलहवीं सदी से इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ा भारत में शायद अठारहवीं शताब्दी में अंग्रेज स्लेट लेकर आए लेकिन इसका इस्तेमाल बीसवीं सदी के आरंभ तक जोर पकड़ चुका था।एक जमाना था जब स्लेट बनाना अपने आपमें एक स्वतंत्र उद्योग बन गया था। दुनिया के अधिकांश देशों में स्लेट का चलन रहा। साक्ष्य बताते हैं कि 1930 तक स्लेट विद्यालय में शिक्षा का प्राथमिक और जरूरी उपकरण बन चुकी थी।
बीसवीं सदी तक स्लेट हर घर की पसंद रही।होल्डर,पेन और वॉलपेन के ईजाद के बाद स्लेट का चलन कम हुआ, लेकिन स्लेट आज भी जहां तहां इस्तेमाल की जाती है।अब स्लेट धरोहर की शक्ल ले रही है। मुझे याद है कि केल्शियम की कमी के शिकार बच्चे स्लेट के साथ मिलने बाली चूने की बत्ती शौक से खा जाते थे।उनकी ये आदत मुश्किल से छूटती थी।बाद में हमने स्लेट की बनी कापी -किताब भी देखीं।
हम स्लेट पीढ़ी के लोग हैं।हमे कापी -किताब कक्षा पांच मे मिलती थी। हमारे बच्चों को कापी किताब तीन साल की उम्र में ही मिलने लगी और अब बच्चे बड़े नसीब वाले हैं क्योंकि उन्हें अब सीधे इलेक्ट्रॉनिक टैबलेट मिलने लगा है। इंटरनेट से चलने वाला टैबलेट हल्का, खूबसूरत और उंगलियों के स्पर्श से काम करना जानता है। स्लेट की तरह निर्जीव नहीं है टेबलेट।
आधुनिक स्लेट यानि टैबलेट एक मोबाईल कम्प्युटिंग डिवाईस हैं। ये स्मार्टफोन से बडा तथा लैपटॉप से छोटा होता हैं। इसे टैबलेट कम्प्युटर, टैब, टैबलेट पीसी के नाम से भी जाना जाता है। इसका आकार एक किताब या छोटी किताब के बराबर होता हैं।आप इसे एक कम्प्युटर और स्मार्टफोन का संकर डिवाईस कह सकते हैं, लेकिन, यह दोनों में से किसी का भी काम पूरा नही करता हैं.
स्लेट की ही भांति टैबलेट में आमतौर पर 7 इंच की टचस्क्रीन डिस्प्ले होती हैं, जो इनपुट एवं आउटपुट का काम करती हैं। टैबलेट में भौतिक की-बोर्ड, माउस नही होता हैं. इनका सारा काम टचस्क्रीन या फिर स्टायलस(एक प्रकार का पेन) के द्वारा किया जाता हैं । आप यूएसबी पोर्ट के जरिए अन्य डिवाईस जोड़ कर सकते हैं।
आज टैबलेट भी स्लेट उद्योग की तरह पूरी दुनिया में छा गया है।टैबलेट की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है।एलन क ने जीरोक्स में सन 1971 में टैबलेट का पहली रुपरेखा बनाई. जिसके बाद कई सारे डिवाईस बनाए गए,जिनमे पीडीएएस भी शामिल थी. इन्हे टेबलेट का पुरखा कहा जाता है।.
दुनिया का पहला कामयाब टैबलेट एप्पल आईपैड सन 2010 में बाजार में अवतरित हुआ और आज लगभग सभी टैबलेट इसी की तरह दिखाई देते हैं.हालांकि माईक्रोसॉफ्ट भी टैबलेट कम्प्युटिंग में काम कर रहा था।वर्ष 2007 में इसने टैबलेट पीसी के बारे में बताना शुरु किया. और टैबलेट के लिए विंडो एक्सपी ओएस का टैबलेट वर्जन भी बाजार में उतारा।
दुनिया में इस समय में सैमसंग, गूगल, एप्पल आदि कंपनिया टैबलेट पीसी बना रही है. इनके अलावा बहुत सी स्थानीय कंपनिया भी इस काम को कर रही है । मैंने पहली बार कोरिया क बना टैबलेट खरीदा था,वो भी थाईलैंड में। आज टैबलेट के आधा दर्जन से अधिक सुविधाजनक स्वरूप मौजूद हैं। इन्हें स्टेट, मिनी, फेबलेट,खेल टैबलेट, बुकलेट और बिजनेस टैबलेट की शक्ल में हासिल किया जा सकता है।
आज से सौ साल पहले बच्चों को खेलने के लिए स्लेट दी जाती थी, आज टैबलेट दिया जाता है। दोनों के नफा – नुकसान हैं, लेकिन ये हमारा आज का विषय नहीं है।आज की टैबलेट पीढ़ी हमारी स्लेट पीढ़ी से बहुत आगे है।हम स्लेट पर बत्ती से चील-बिलार बनाते और बिगाड़ते थे,आज के बच्चे यही काम टैबलेट पर करते हैं। आगे और क्या क्रांति होगी, पता नहीं।