“लटेरी कांड” ने जंगल महकमे को मायूस कर दिया …!

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यह अपनी ताकत दिखाने का दिखावा नहीं है, बल्कि जंगल महकमे में दिन-रात जान की बाजी दांव पर लगाने वाले वन कर्मचारियों की पीड़ा है। अगर जंगल की सुरक्षा में तैनात वन कर्मियों को मिले हथियार उन्हें ही हत्यारा बनाने पर उतारू हो जाएं, तो ऐसे हथियारों से तौबा करना ही भला। मन का खट्टा होना स्वाभाविक है, वरना अमृत महोत्सव वर्ष और आजादी के 75 साल पूरा होने के पावन अवसर पर सम्मान पाकर गर्वित होने की ललक किसमें नहीं होती। वन कर्मचारियों-अधिकारियों के मन को मायूस किया है “लटेरी कांड” ने। सुरक्षा की खातिर हथियार चलाने की सजा वन के रखवालों को देने में शायद कोई सोच-विचार ही नहीं किया गया। लटेरी कांड में वन कर्मचारियों की इस जलालत के पीछे एक ही वजह सामने है और वह है पीड़ित पक्ष का आदिवासी होना।
दूसरी बड़ी वजह यह है कि वन महकमा वैसे तो प्रदेश में अखिल भारतीय सेवा स्तर के अफसरों से सुसज्जित महत्वपूर्ण विभाग है। भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा के साथ ही भारतीय वन सेवा के अफसर अपने-अपने महकमे में महत्वपूर्ण भूमिका में रहते हैं, लेकिन बात जब दबदबे की आती है तो शायद क्रमिक तौर पर यह कम होता जाता है। सबसे ज्यादा पावरफुल आईएएस अफसर अपनी बातों से सरकार को राजी करने में ज्यादा सक्षम होता है। तो आईपीएस इनकी बराबरी करने में पीछे हो जाते हैं। फिर भारतीय वन सेवा के अफसरों पर तो यह दोनों ही भारी पड़ते हैं। और यही फासला मैदानी स्तर पर आईएफएस अफसरों द्वारा अपने अधीनस्थों के बचाव न कर पाने में साफ-साफ झलकता है। लटेरी कांड इसका सीधा प्रमाण है। यह बात ठीक वैसी ही है, जैसे एक ही पिता की तीन संतानों में सबसे छोटा बराबरी का हक होने पर भी दबा-दबा ही रहता है। कहने को भले ही वह मां-बाप का सबसे लाड़ला कहलाता रहे। “लटेरी कांड” में भी पीड़ित पक्ष के आदिवासी होने का खामियाजा वन कर्मचारियों को हत्या का आरोपी बनकर और निलंबित होकर भुगतना पड़ा है। वैसे मामला चाहे हथियार मिलने का हो और फिर हथियार संग थोपी गई शर्तों का हो, वन कर्मचारी भेदभाव का शिकार थे, हैं और यदि सरकार ने गौर नहीं किया तो आगे भी बने रहेंगे। यहां तक कि जब वन कर्मचारी माफियाओं के हमले में जान भी गंवाते हैं, तब भी शहीद का दर्जा न मिल पाना भी इनके साथ भेदभाव का खुल्लमखुल्ला प्रदर्शन ही होता है। और “लटेरी कांड” में भी बिना जांच के “दलील,वकील,अपील” व्यवस्था से परे वन कर्मचारियों पर सीधे गाज गिराकर यही साबित हुआ है कि जंगल महकमा दोयम दर्जे का शिकार था, है और रहेगा।
इसी पीड़ा के चलते मध्य प्रदेश रेंजर एसोसिएशन और मध्य प्रदेश के अन्य वन कर्मचारी संगठनों  ने 15 अगस्त 2022 को वन अधिकारियों और वनकर्मियों को दिए जाने वाले पुरस्कार समारोह का बहिष्कार किया। प्रति वर्ष के अनुसार इस वर्ष भी वन्य जीव एवं वन संरक्षण और बाकी कार्यों के उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मुख्यालय भोपाल एवं जिला स्तर पर वन सुरक्षा एवं अन्य उत्कृष्ठ कार्यों के लिए दिए जाने वाले पुरस्कार, प्रशस्ति पत्र, एवं अन्य पारितोषिक समारोह का मध्य प्रदेश रेंजर एसोसिएशन एवं मध्य प्रदेश के अन्य वन कर्मचारी संगठनों के आह्वान पर सभी के द्वारा सामूहिक रूप से बहिष्कार किया गया। वजह बनी 9 अगस्त 2022 को लटेरी वन परिक्षेत्र में घटित घटना। पीड़ा इतनी कि वरिष्ठ अधिकारियों की समझाइश भी बेअसर रही। वेदना की वजह बनी पूरी घटना यही है कि लटेरी में वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा शासकीय कर्तव्य के निर्वहन के दौरान वन सुरक्षा में मुठभेड़ के दौरान दोनों तरफ से फायरिंग में  एक अपराधी की मृत्यु हो गई थी।जिसमें वन अधिकारियों और वनकर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जेल अभिरक्षा में बिना मजिस्ट्रियल जांच के निरुद्ध कर दिया गया।
लटेरी कांड के विरोध में प्रदेश भर के वन कर्मचारियों ने 16 अगस्त से रिवाल्वर-बंदूक वापस करने के लिए शस्त्र वापसी आंदोलन शुरू कर दिया है। प्रदेश के वन कर्मचारियों ने संगठनों के माध्यम से मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर लटेरी कांड की निष्पक्ष न्यायिक जांच कराने तथा गिरफ्तार वन कर्मचारियों को रिहा करने, निलंबित वन कर्मचारियों को बहाल करने की मांग की है। प्रदेश के 60 वन मंडलों एव 16 वन वृत्तों में वन कर्मचारियों एवं रेंजरो ने अपनी रिवाल्वर एवं बंदूकों को जमा कराया है। यह पहली बार हुआ है कि विभाग द्वारा दिया गया हथियार कर्मचारी वापस विभाग में जमा करा दें। वन संगठनों का दावा है कि विदिशा जिले के लटेरी रेंज में आत्मरक्षा के लिए लकड़ी चोरों के ऊपर चली गोली से मृत्यु तथा घायल होने पर जिस प्रकार से विदिशा प्रशासन ने एक तरफा कार्रवाई कर वन कर्मचारियों के ऊपर हत्या एवं हत्या के प्रयास का प्रकरण दर्ज किया है, उससे प्रदेश भर के 22000 वन कर्मचारियों में आक्रोश व्याप्त है। क्योंकि जिस लकड़ी चोर चैन सिंह की मृत्यु होने पर 302 का अपराध कायम किया गया है, उसके खिलाफ विदिशा वन मंडल में 10 वन अपराध दर्ज हैं। उसके साथियों के विरुद्ध भी वन विभाग में लकड़ी चोरी का प्रकरण दर्ज है और न्यायालय में विचाराधीन है।
वन कर्मचारियों की पीड़ा यहीं खत्म नहीं होती। पर सरकार से फिलहाल मांग सिर्फ यही है कि लटेरी कांड की न्यायिक जांच होने तक गिरफ्तार किए गए वन कर्मचारी को रिहा किया जाए। निलंबित कर्मचारियों को बहाल किया जाए। वन कर्मचारियों को प्रदेश भर में सम्मान एवं सुरक्षा प्रदान की जाए अन्यथा वन कर्मचारी वनों की सुरक्षा कैसे कर पाएगा? शायद पीड़ा व्यक्त कर वन कर्मचारियों की सरकार से यही दरकार है कि वन कर्मचारियों का मनोबल न टूटे और वन माफियाओं का हौसला बुलंद न हो, बस इतना तो ख्याल करो सरकार…। वास्तव में “लटेरी कांड” ने जंगल महकमे को मायूस तो कर दिया है…!