अतीत हो गया अतीक…
उत्तर प्रदेश में धारा 144 लागू करनी पड़ी। प्रयागराज के आसपास इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। तीन अपराधियों ने दो अपराधियों को सरेआम गोलियों से भून दिया। संप्रदाय अलग-अलग होने से धार्मिक नारेबाजी के जरिए मानो यह संदेश देने की कोशिश भी की गई कि बहुत ही श्रेष्ठ कार्य को अंजाम दिया है। मानो अधर्म पर धर्म की विजय हुई हो, असत्य पर सत्य की विजय हुई हो और बुराई पर अच्छाई का साम्राज्य स्थापित हो गया हो। पर जिस उत्तर प्रदेश पुलिस की दबंग छवि की मिसाल दी जाती रही हो, उस पुलिस का रवैया देखकर मानो मन मलीन हो गया। खूंखार अपराधियों के आसपास मानो जानबूझकर मीडिया को बुलाकर उनका मन बहलाने का न्यौता दिया गया हो। और उससे भी घृणित वाकया यह कि फर्जी मीडियाकर्मी की ओट में हत्यारों की एंट्री की बात प्रचारित की गई। जिसका खामियाजा भुगतने के लिए अब मीडियाकर्मियों की शामत आना तय है। अब हत्यारों के इस घटिया पेंतरे की वजह से मीडियाकर्मियों की छीछालेदर होना तय है और मानो इसकी आड़ में असली मीडियाकर्मियों की स्थायी तौर पर बेइज्जती करने का लायसेंस भी जिम्मेदारों को मिल गया है। इससे तो लाख गुना बेहतर था कि असद के एनकाउंटर की तरह इन दोनों अपराधियों को पुलिस ही परलोकगमन करवा देती। कम से कम जो सवालिया निशान खड़े किए जा रहे हैं, उनकी कोई गुंजाइश ही नहीं बचती। लोगों को यह कतई अफसोस नहीं है कि अतीक और अशरफ की हत्या हो गई है। मलाल इस बात का है कि शेर की छवि रखने वाली योगी की पुलिस पहली बार शियार सी नजर आई है और अपराधियों को अपराधियों ने पुलिस के साये में इतनी करीब से भून दिया और हमलावरों ने तत्काल सरेंडर भी कर दिया। इससे कहीं न कहीं मारे गए अपराधियों के प्रति लोगों के मन में एक दया का भाव पैदा हो गया। मारे गए अपराधी ऐसी दया के काबिल नहीं थे और उत्तर प्रदेश पुलिस का चेहरा भी खुद को ऐसा दयनीय महसूस कराने लायक नहीं था। इसे दूर-दूर तक योगी की पुलिस का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। योगी की पुलिस तो निर्भीक और सिंह की तरह गर्जना कर शिकार करने की ब्रांड वैल्यू रखती रही है। पर दो अपराधियों की सरेआम वह खौफनाक मौत ब्रांड वैल्यू को कोसों दूर ढकेलती नजर आ रही है।
अतीक अहमद (जन्म 10 अगस्त 1962-मृत्यु 15 अप्रैल 2023 ) एक राजनेता और अपराधी था। समाजवादी पार्टी से सांसद और उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य रह चुका था।वह इलाहाबाद पश्चिम सीट से लगातार पांच बार विधानसभा का सदस्य चुना गया। उत्तर प्रदेश के फूलपुर से 14वीं लोकसभा के लिए समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुना गया।1999-2003 के बीच, वह सोने लाल पटेल द्वारा स्थापित अपना दल का अध्यक्ष था। उसके खिलाफ 100 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे और वह 2019 से जेल में बंद था। अतीक विभिन्न आरोपों में बंद रहते हुए जेल से कई चुनाव लड़ चुका था। 15 दिसंबर 2016 को, सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी और विज्ञान विश्वविद्यालय के कर्मचारियों पर हमला करने के लिए उसे एक बार फिर से गिरफ्तार किया गया था। उमेश पाल हत्याकांड के बाद अतीक अहमद का नाम उससे जोड़ा जा रहा था और गुजरात की साबरमती जेल में बंद अतीक को सुनवाई के लिए प्रयागराज लाया गया था। 13 अप्रैल 2023 को पेशी के लिए आए अतीक अहमद को झांसी में उनके पुत्र असद के एनकाउंटर की ख़बर मिली। 15 अप्रैल 2023 को अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की प्रयागराज में मेडिकल परीक्षण के लिए जाने के दौरान हत्या कर दी गई। उत्तर प्रदेश पुलिस के पास ऐसे सैंकड़ों मौके थे, जब अतीक और अशरफ को परलोक पहुंचा दिया जाता। साबरमती से प्रयागराज के बीच भी मीडिया को दूर रहने की नसीहत देकर और दबाव बनाकर भी इस काम को अंजाम दिया जा सकता था। पर हत्यारों की हत्या का यह वाकया सवालों का बादल बनकर हमेशा फुनफुन बरसता रहेगा, जो जिम्मेदारों को गीला करने की भरसक कोशिश करता रहेगा।
इस अतीक एपीसोड से यह बात तो सभी को समझ में आ रही है कि आखिर ऐसे गुनाहगारों का लोकतंत्र के मंदिर में प्रवेश पर “नो एंट्री” का बोर्ड कब चस्पा होगा। सौ से ज्यादा आपराधिक मामले क्या चिल्ला चिल्लाकर नहीं बोलते हैं कि ऐसे शख्स को तो यह भी हक नहीं है कि वह विधानसभा, विधान परिषद, लोकसभा और राज्यसभा जैसे लोकतंत्र के पवित्र परिसरों के आसपास भी नजर आ सके, फिर विधायक और सांसद बनकर अंदर प्रवेश करने पर तो मानो स्थायी प्रतिबंध ही लगा दिया जाना चाहिए। ताकि घिनौने चेहरे खुद को धर्मपरायण साबित कर लोगों को बरगलाने की कोशिश न कर सकें। अतीक अहमद 2005 के बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड और इस साल फरवरी में हुए उमेश पाल हत्याकांड में भी आरोपी था। इससे पहले अतीक का बेटा असद अहमद 13 अप्रैल को झांसी में एक मुठभेड़ में मारा गया था, इसके साथ यूपी एसटीएफ ने शूटर गुलाम को भी मार गिराया था। और मेडिकल के लिए ले जाए जा रहे अतीक और अशरफ परमानेंट मेडिकल लीव पर जा चुके हैं। योगी सरकार में मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने बिना नाम लिए कहा कि पाप-पुण्य का हिसाब इसी जन्म में होता है। इस बात को सभी तहेदिल से स्वीकार करते हैं। और अतीक की मौत पर कोई दुखी भी नहीं है। पर यह बात भी है कि अतीक की मौत का वह दृश्य लोगों के गले नहीं उतर पा रहा है। समस्या यही है कि अतीक तो अब अतीत बन चुका है…पर उसकी मौत उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यशैली पर सौत बनकर शंका जाहिर करती रहेगी…।