‘संविधान’ में समाया है ‘सनातनी’ भाव…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
संविधान दिवस मनाने की यह सरकारी व्यवस्था अच्छी है। इस दिन हर भारतीय को कम से कम संविधान के बारे में कुछ जान लेना चाहिए। संविधान की पुस्तक घर में न हो, तो लेकर आना चाहिए। और धर्मग्रंथों का अध्ययन न भी कर पाएं, तब भी संविधान का अध्ययन करना चाहिए। भारतीय संविधान की प्रस्तावना तो कम से कम हर भारतीय नागरिक को कंठस्थ याद होना ही चाहिए। स्कूलों में बच्चों को मौलिक कर्तव्य और मौलिक अधिकारों का ज्ञान कराया जाना चाहिए। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के प्रावधान सबकी समझ में आना ही चाहिए। और अगर संविधान को समझने की कोशिश की जाए, तो हर नागरिक की समझ में यह सहज ही आ जाएगा कि भारतीय संविधान सनातनी भावों से भरा है।
सबसे पहले हम संविधान के बारे में कुछ जानते हैं। भारत गणराज्य का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ॰ भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को पहली बार भारत सरकार द्वारा ‘संविधान दिवस’ सम्पूर्ण भारत में मनाया गया। 26 नवम्बर 2015 से प्रत्येक वर्ष सम्पूर्ण भारत में ‘संविधान दिवस’ मनाया जा रहा है। इससे पहले इसे राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था। संविधान सभा ने भारत के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया। इसलिए 26 नवम्बर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालांकि गणतंत्र भारत में 26 जनवरी 1950 से संविधान अमल में लाया गया था। 26 नवंबर का दिन संविधान के महत्व का प्रसार करने और डॉ॰ भीमराव अंबेडकर के विचारों और अवधारणाओं का प्रसार करने के लिए चुना गया था। इस दिन संविधान निर्माण समिति के वरिष्ठ सदस्य और डॉ. हरि सिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ. सर हरीसिंह गौर का जन्मदिवस भी है।
संविधान के सनातनी भाव को समझने के लिए संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्यों का अध्ययन कर इसे समझा जा सकता है। प्रस्तावना के मुताबिक –
‘हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में,
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’
गरिमा, एकता, अखंडता, बंधुत्व, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता जैसे भाव सनातनी ही हैं। इसके अलावा छह मौलिक अधिकार समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार भी सनातनी भाव को समाहित किए संविधान को पवित्र पुस्तक का दर्जा देते हैं।
तो 11 मौलिक कर्तव्यों में संविधान का पालन करें और राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगान का सम्मान करें, स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों का पालन करें, राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करें, देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करें, सामान्य भाईचारे की भावना का विकास करना, देश की समग्र संस्कृति को संरक्षित रखें, प्राकृतिक पर्यावरण को संरक्षित रखें, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवता का विकास करें, सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करें और हिंसा से बचें, जीवन के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करें…जैसे भाव भी सनातनी परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।मौलिक कर्तव्यों के निर्माण के पीछे उद्देश्य यह है कि प्रत्येक नागरिक को यह एहसास हो कि सबसे पहले देश की रक्षा करना और राष्ट्र की सद्भावना को बढ़ावा देना है; अर्थात, राष्ट्रीय हित हर कार्य और लक्ष्य से ऊपर होना चाहिए।
इसीलिए हर नागरिक को ‘संविधान’ का अध्ययन करना चाहिए और बार-बार अध्ययन कर इन्हें अमल में लाना चाहिए। ताकि ‘संविधान दिवस’ मनाने का उद्देश्य सार्थक हो सके। और इसका अध्ययन करने पर ही हर भारतीय नागरिक यह समझ सकेगा कि भारतीय संविधान सनातनी भावों से ओत प्रोत है…।