बाल स्वरूप में राम का मुस्कराता चेहरा मन मोह लेता है…
दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु राम अयोध्या में कलियुग में बाल स्वरूप में मूर्ति के रूप में प्राण प्रतिष्ठित हो प्रकट हुए हैं। मुनियों के मन को हरने वाला उनका अद्भुत रूप है।वेद कहते हैं कि प्रभु के प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्माण्डों के समूह (भरे) हैं। वहीं प्रकट हुए प्रभु को देखकर मां कौशल्या कहती हैं कि तुम मेरे गर्भ में रहे- इस हँसी की बात के सुनने पर धीर (विवेकी) पुरुषों की बुद्धि भी स्थिर नहीं रहती (विचलित हो जाती है)। और जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुस्कुराए।
यही मुस्कराहट अयोध्या में कलियुग में प्राण प्रतिष्ठित हुई बाल स्वरूप में प्रभु राम की मूर्ति में देखकर आत्मा संतृप्त हो जाती है। मन करता है कि मूर्ति के सामने खड़े ही रहें। बाल स्वरूप में राम की मुस्कान आत्मा में जितनी समाती है, उतनी ही लालसा और बढ़ जाती है उनके करीब बने रहने के लिए। जैसा तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं कि ब्राह्मण, गो, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया। वे (अज्ञानमयी, मलिना) माया और उसके गुण (सत्, रज, तम) और (बाहरी तथा भीतरी) इन्द्रियों से परे हैं। उनका (दिव्य) शरीर अपनी इच्छा से ही बना है (किसी कर्म बंधन से परवश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक पदार्थों के द्वारा नहीं)।
अयोध्या में भगवान राम के दर्शन करने वाले लाखों-करोड़ों श्रद्धालु यह अनुभूति करते हैं। हालांकि महाकवि तुलसीदास जी की तरह वह अपनी अनुभूति को ऐसे शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर पाते। पवित्र चैत्र के महीने का पहला दिन 9 अप्रैल 2024 को था। प्रभु राम के दर्शन कर हमारा मन भी तृप्त हुआ। यहां अयोध्या में दोपहर के समय में भी न बहुत सर्दी है, न धूप में गरमी है। अयोध्या में शीतल, मंद और सुगंधित पवन बह रही है। सरयू नदी में अमृत की धारा बह रही है। सरयू में स्नान के बाद ऐसा ही लगता है कि तन को इससे बाहर जाने ही न दिया जाए।
महाराज दशरथ के चारों पुत्रों का नामकरण करते समय गुरु वशिष्ठ के भावों को जिस तरह गोस्वामी तुलसीदास जी ने शब्द दिए हैं कि ये जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिस (आनंदसिंधु) के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उन (आपके सबसे बड़े पुत्र) का नाम ‘राम’ है, जो सुख का भवन और सम्पूर्ण लोकों को शांति देने वाला है। यही अनुभूति अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति के दर्शन के समय भी होती है। हर श्रद्धालु को होती है। उनके नीलकमल और गंभीर (जल से भरे हुए) मेघ के समान श्याम शरीर में करोड़ों कामदेवों की शोभा है। मूर्ति स्वरूप में भी बहुत से आभूषणों से सुशोभित विशाल भुजाएँ हैं। छाती पर रत्नों से युक्त मणियों के हार की शोभा मन को लुभाती है। सम्पूर्ण जगत के माता-पिता श्री रामजी अवधपुर के निवासियों को सुख देते हैं, जिन्होंने श्री रामचन्द्रजी के चरणों में प्रीति जोड़ी है, शंकर कहते हैं कि हे भवानी! उनकी यह प्रत्यक्ष गति है (कि भगवान उनके प्रेमवश बाललीला करके उन्हें आनंद दे रहे हैं। अयोध्या में प्रभु राम उनके दरवाजे पर माथा टेकते लाखों श्रद्धालुओं पर प्रेमवश आनंद और आशीर्वाद बरसा रहे हैं। बाल स्वरूप में राम का मुस्कराता चेहरा मन को मोह लेता है, तन प्रेम और आनंद से भर जाता है। हिंदू नववर्ष के पहले दिन हम पर हुई रामकृपा का कोई मोल नहीं है। यह रामकृपा सभी पर हो, नव वर्ष के पहले दिन हमारी तरफ से सभी को यही मंगल कामनाएं…।