चाल बदलते चरित्रों को बेनकाब करती है कहानी- प्रो. चौहान

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चाल बदलते चरित्रों को बेनकाब करती है कहानी- प्रो. चौहान

जनवादी लेखक संघ द्वारा कहानी ‘गिंडोले’ पर चर्चा आयोजित!

Ratlam : कहानी समाज का प्रतिबिंब होती हैं। कहानी के पात्र समाज के ही चरित्र होते हैं मगर यह सब सार्वभौमिक होता है। कोई भी चरित्र कई स्थानों पर महसूस किया जा सकता है। ‘गिंडोले’ कहानी ऐसे दोगले चरित्र वाले लोगों को बेनकाब करती हैं जो समय आने पर अपनी चाल बदलते रहते हैं। यह कहानी इस दौर में बहुत महत्व रखती हैं क्योंकि यह हमारे बीच के ही कई चरित्रों को सामने लाती हैं।

यह विचार वरिष्ठ रचनाकार प्रो. रतन चौहान ने जनवादी लेखक संघ द्वारा युवा कथाकार आशीष दशोत्तर की पुरस्कृत कहानी ‘गिंडोले’ पर आयोजित चर्चा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि समाज का सच ऐसी कहानियां ही सामने लाती हैं। यह कहानी दोगले चरित्रों के विचार परिवर्तन को रेखांकित करती कहानी भी हैं। हर इंसान को यह तय करना जरूरी होता हैं कि वह कहां और किसके साथ खड़ा है। ऐसे में दो नावों पर सवार होकर चलने वाले लोगों पर तंज़ करती यह कहानी अपनी बात बहुत प्रभावी ढंग से कहती है।

वरिष्ठ रंगकर्मी कैलाश व्यास ने कहा कि इस कहानी में कबीर का चरित्र उभर कर सामने आता हैं। हमारे समाज के साझापन और उसे विभक्त करने वाली ताकतों को यह कहानी उजागर करती है। उन्होंने कहा कि कोई भी कहानी तभी प्रभावी बनती है जब उसका चरित्र कथाकार के साथ निरंतर चलता रहें। इस कहानी में कहीं ऐसा प्रतीत नहीं होता कि कथाकार अपने मार्ग से अलग हुआ हो। यह कहानी कथाकार के सोच और समाज के प्रति दृष्टिकोण को भी अभिव्यक्त करती है।

कथाकार इंदु सिन्हा ने कहा कि यह कहानी हमारे सांस्कृतिक ताने-बाने पर चिंता जताते हैं और ऐसे लोगों को सामने लाती है जो इसे तोड़ने पर आमादा हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रतीकों के माध्यम से समाज की अन्य विसंगतियों को भी सामने लाने की जरूरत हैं।

वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ. पूर्णिमा शर्मा ने कहा कि इस कहानी के भीतर कई सारी कहानियां हमारे साथ सफर करती हैं। हमारे सामाजिक संस्कार, पारिवारिक वातावरण और व्यक्तिगत व्यवहार सभी कुछ इस कहानी के माध्यम से समझे जा सकते हैं।

वरिष्ठ शायर और जलेसं सचिव सिद्धीक़ रतलामी ने कहा कि इस कहानी का किरदार और घटनाएं प्रतीकों माध्यम से काफ़ी गंभीर बातें कहती है। यहां कोई घटना सिर्फ चरित्र ही नहीं है बल्कि हमारे समाज का वह विद्रूप चेहरा है जो हर कहीं मौजूद हैं। ऐसे चरित्रों को पहचानने की तरफ कहानी इशारा करती हैं।

जलेसं अध्यक्ष रणजीत सिंह राठौर ने अपने आलेख में कहा कि यह कहानी ऐसी प्रतीत होती हैं, जैसे इसका मुख्य किरदार हमारे बीच का ही हो। यही कहानी की सफलता हैं।

श्रीमती आशा श्रीवास्तव ने कहानी को समाज सापेक्ष निरूपित किया। इतिहासविद नरेंद्र सिंह पंवार ने कहानी के तत्वों के माध्यम से इस रचना की व्याख्या करते हुए कहा कि यह कहानी किसी भी दृष्टि से कमतर नज़र नहीं आती है । यह अपनी बात कहने में पूरी तरह सफल रही है। विनोद झालानी ने कहानी के शीर्षक के आकर्षण और उसके भीतर मौजूद काव्य तत्व की विवेचना करते हुए मौजू विषय पर अपनी बात कही। दुर्गेश सुरोलिया ने कहा कि यह कहानी एक ऐसे चरित्र को उजागर करती है जिसका होना ही हमारे समाज के साझापन के लिए ज़रूरी है। मांगीलाल नागावत ने कहानी के कला पक्ष पर अपने विचार रखते हुए कहा कि कलात्मक दृष्टि से यह कहानी बहुत प्रभावित करती है। संजय परसाई सरल ने कहा कि ऐसी कहानियों को आज सामने लाने की आवश्यकता है। रंगकर्मी श्याम सुंदर भाटी ने कहानी से संबंधित काव्य तत्व पर प्रकाश डाला। आई.एल. पुरोहित ने रचना को सारगर्भित निरूपित किया। शिवराज जोशी ने कहा कि यह कहानी प्रेरणा देती है। प्रारंभ में आशीष दशोत्तर ने कहानी ‘गिंडोले’ का पाठ कर अपना वक्तव्य दिया।

इनकी मौजूदगी रही!

इस अवसर पर वरिष्ठ विचारक विष्णु बैरागी, सुरेन्द्र छाजेड़, सुभाष यादव, जयवंत गुप्ता, चरण सिंह पथिक, जवेरीलाल गोयल, कीर्ति शर्मा, चरण सिंह यादव, एसके. मिश्रा, कला डामोर सहित सुधिजन मौजूद थे। गोष्ठी का संचालन कैलाश व्यास ने तथा आभार सिद्दीक रतलामी ने माना!

शशि भोगलेकर पर केंद्रित आयोजन 8 जून को!

जनवादी लेखक संघ की श्रृंखला ‘एक रचनाकार का रचना संसार’ के तहत शहर के दिवंगत रचनाकार शशि भोगलेकर की रचनाओं पर केंद्रित आयोजन 8 जून रविवार को प्रातः 11 बजे भगत सिंह पुस्तकालय शहर सराय रतलाम पर किया जाएगा। इसमें शहर के सुधिजन स्व. भोगलेकर की रचनाओं का पाठ कर चर्चा करेंगे।