विपक्ष को सालता राम मंदिर का सूर्योदय

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 विपक्ष को सालता राम मंदिर का सूर्योदय

आखिरकार 30 दिसंबर को अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का सूर्योदय हो गया। 22 जनवरी को इसका निखार, यानी लालिमा अपने चरम बिंदु पर होगी, इस दिन रामलला अपनी जन्मभूमि पर दिव्य, भव्य और नव्य रूप में विराजित हो जाएंगे। भारतवासियों को यह दिन 550 साल की लंबी प्रतीक्षा और संघर्ष के बाद देखने को मिलेगा। 30 दिसंबर का दिन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन 1943 में नेताजी सुभाशचंद्र बोस ने अंडमान में आजादी का झंडा फहराकर देष की स्वतंत्रता का जयघोश कर दिया था। भव्य और विषाल मंदिर का निर्माण संपूर्ण विपक्ष को खटक रहा है। क्योंकि उसे अपने बचे-खुचे राजनीतिक अस्तित्व के तोते उड़ते दिखाई दे रहे हैं।

कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने रामलला की प्राण प्रतिश्ठा पर सवाल खड़ा किया है कि क्या राम मंदिर ही देष का असली मुद्दा है ? मंदिर से बड़े षिक्षा, रोजगार, महंगाई, स्वास्थ्य, वायु प्रदूशण और अर्थव्यवस्था के मुद्दे होने चाहिए। कांग्रेस नेता षषि थरूर ने राम मंदिर उद्घाटन को लेकर नरेंद्र मोदी और भाजपा पर निषाना साधा है। थरूर ने कहा है कि 14 फरवरी को मोदी को अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी में एक हिंदू मंदिर के उद्घाटन हेतु में आमंत्रित करने की आलोचना की है। अपने ट्विटर हैंडल पर थरूर ने कहा है, 2024 में भाजपा अपने मूल संदेश पर लौटेगी और मोदी को हिंदू हृदय सम्राट के रूप में पेश करेगी। इसी साल के लोकसभा चुनाव में हिंदुत्व बनाम लोक-कल्याण को वास्तविक मुद्दा बना दिया जाएगा। माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने राम मंदिर जाने के निमंत्रण को ठुकराते हुए मोदी द्वारा मंदिर उद्घाटन की आलोचना की है। येचुरी ने कहा है कि भाजपा राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग कर रही है, जबकि संविधान में पंथनिरपेक्षता का अर्थ धर्म को राजनीति से अलग रखना है। मंदिर का उद्घाटन करना खुले रूप में धर्म का राजनीतिकरण है। केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ के घटक दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भाजपा पर राम मंदिर की प्राण प्रतिश्ठा से राजनीतिक हित साधने का आरोप लगाया है। दल के महासविच पीके कुन्हालीकुट्टी ने का है कि भाजपा की इस राजनीतिक पैंतरेबाजी को पहचानने की जरूरत है। सोनिया गांधी और कांग्रेस के राश्ट्रीय अध्यक्ष मल्किार्जुन खड़गे को उद्घाटन का आमंत्रण तो मिल गया है, लेकिन वे कार्यक्रम में जाने की दुविधा में हैं। इसी दुविधा ने कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों को हाषिए पर ला खड़ा किया है। जबकि इन्हें राम की प्रतिश्ठा को एक सांस्कृतिक-आध्यात्मिक पुनरुत्थान का आयोजन मानते हुए भागीदारी की जरूरत है।

 इस राम-महोत्सव के साथ इसमें कोई दो राय नहीं कि अब भारत सांस्कृतिक-आध्यात्मिक राष्ट्रवाद की छाया में आगे बढ़ता दिखाई देगा। सनातन हिंदू संस्कृति ही अखंड भारत की संरचना का वह मूल गुण-धर्म है, जो इसे हजारों साल से एक रूप में पिरोये हुए है। इस एकरूपता को मजबूत करने की दृष्टि से भगवान परशुराम ने मध्यभारत से लेकर अरुणाचल प्रदेश के लोहित कुंड तक आताताईयों का सफाया कर अपना फरसा इसी कुंड के जल से धोया था, वहीं राम ने उत्तर से लेकर दक्षिण तक और कृष्ण ने पश्चिम से लेकर पूरब तक सनातन संस्कृति की स्थापना के लिए सामरिक यात्राएं कीं। इन्हीं यात्राओं से भारत का जनमानस सांस्कृतिक रूप से समरस हुआ। इसीलिए समूचे प्राचीन आर्यावर्त में वैदिक और रामायण व महाभारत कालीन संस्कृति के प्रतीक चिन्ह मंदिरों से लेकर विविध भाषाओं के साहित्य में मिलते हैं। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की इन्हीं स्थापनाओं ने दुनिया के गणतंत्रों में भारत को प्राचीनतम गणतंत्र के रूप में स्थापित किया। यहां के मथुरा, पद्मावती और त्रिपुरी जैसे अनेक हिंदू राष्ट्र दो से तीन हजार साल पहले तक केंद्रीय सत्ता से अनुशासित लोकतांत्रिक गणराज्य थे। केंद्रीय मुद्रा का भी इनमें चलन था। लेकिन भक्ति, अतिरिक्त उदारता, सहिष्णुता, विदेशियों को शरण और वचनबद्धता जैसे भाव व आचरण कुछ ऐसे उदात्त गुणों वाले दोष रहे, जिनकी वजह से भारत विडंबनाओं और चुनौतियों के ऐसे देश में बदलता चला गया कि विदेषी आक्रांताओं ने इन्हीं कमजोरियों को सत्ता पर काबिज होने का पर्याय मान लिया और वे भारत को परतंत्र बनाने में सफल भी हो गए। परंतु पिछले साढ़े नौ साल में न केवल देशव्यापी बल्कि भारतीय संदर्भ में विश्वव्यापी आश्चर्यजनक परिवर्तन देखने में आ रहे हैं। भारत पांचवीं अर्थव्यवस्था है और हरेक विकसित देष भारत का सहयोगी बनने को उत्सुक है।

मोदी के मंदिरों से जुड़े कायाकल्प केवल धार्मिक नहीं हैं, बल्कि वे अर्थव्यवस्था, आत्मनिर्भरता और स्व-रोजगार के साथ आधुनिक और वैज्ञज्ञनिक विकास को भी मजबूत धरातल दे रहे हैं। आयोध्या में साढ़े पांच सौ सालों से आहात सनातन सभ्यता को नई गरिमा मिली है। आयोध्या में सुनहरे क्षितिज का भविश्य लिखते हुए बाल्मीकि हवाईअड्डा बन गया है, जो देष ही नहीं दुनिया में रहने वाले हिदू धर्मावलंबियों के लिए राम दर्षन की यात्रा आसान करेगा और भारत में विदेषी मुद्रा आएगी, साथ ही आयोध्या में स्थानीय रोजगारों को बल मिलेगा। वाराणसी, उज्जैन और अन्य धार्मिक पर्यटनों को दृश्टिगत रखते हुए ही दुनिया के सबसे बड़े 1000 विमानों की खरीद के आदेष एयर इंडिया और इंडिगो ने दिए हैं। हवाई यातायात की यह तेज गति विकसित होते भारत की बानगी तो है ही राश्ट्रीय एकता की संवाद-षक्ति भी बन रही है। मोदी सरकार इसी क्रम में केदारनाथ और बदरीनाथ धाम का पुनर्विकास कर रही है।

नरेंद्र मोदी का यह  आध्यात्मिक पुनर्जागरण का ऐसा उपाय है, जिससे स्वतंत्रता के बाद के सभी शासक कथित धर्मनिरपेक्षता आहत न हो जाए, इस कारण बचते रहे हैं। जबकि वाकई इन उपायों से ही भारत की संप्रभुता और अखंडता बहाल हुए हैं। जिनका 1400 साल पहले भारत भूमि पर इस्लाम के प्रवेश के बाद दमन होता चला आ रहा था। इस तलवार की धार से किए गए इस दमन का ही परिणाम था की लाखों हिंदू मुसलमान बन गए। किंतु अब धारा बदल रही है। शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी से लेकर दक्षिण की मलयालम फिल्मों के जाने-माने फिल्म निर्माता अली अकबर ने पत्नी सहित हिंदू धर्म अपना लिया है।

इन हस्तियों के धर्म परिवर्तन से आम मुस्लिमों में इस्लाम छोड़ने की मानसिकता बन रही है। इनके पहले इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति की बेटी सुकमावती ने भी इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया था। इन बदलावों का असर अब वैश्विक रूप में भी दिखाई दे रहा है। नरेंद्र मोदी के वैश्विक आतंकवाद के विरोध में दृढ़ता से खड़े होने का ही नतीजा है कि दुनिया के लगभग पचास मुस्लिम राष्ट्रों में प्रमुख राष्ट्र सऊदी अरब में तबलीगी जमात और दावा की तकरीरों पर रोक लगा दी। यहां के इस्लामी मामलों के मंत्री डॉक्टर अब्दुल लातीफ-अल-शेख ने माना है कि इन दोनों संगठनों से जन्मा अल अहबाब नामक आतंकी संगठन है। जमाते-तबलीग की शुरूआत 100 साल पहले भारत से ही हुई थी, जिसका अब डेढ़ सौ से ज्यादा देशों में प्रभाव है। उस समय के प्रमुख आर्यसमाजी नेता स्वामी श्रद्धानंद ने हिंदू से मुसलमान बने लोगों के घर-वापसी का अभियान चलाया था, इसी के जबाव में तबलीगी जमात खड़ी हुई थी। यह अच्छी बात है कि इस्लाम के बहाने उपजे आतंकवाद पर अंकुश लगाने की पहल उस देश ने शुरू कर दी है, जिसने तेल से कमाए अकूत धन का इस्तेमाल इस्लामिक कट्टरता के लिए किया था। किंतु अब सऊदी अरब के बहावी मौलाना मानने लगे है कि तबलीगी जमात के पैरोकार दरगाहों की इबादत के बहाने बुतपरस्ती का ही काम कर रहे हैं, जो इस्लाम में धर्म से संबंध नहीं रखता है।

इसी तरह के बदलाव की चेतना स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी देखने में आई थी। इसीलिए इसे भारतीय स्वाभिमान की जागृति का संग्राम भी कहा जाता है। राजनीतिक दमन और आर्थिक शोषण के विरुद्ध लोक-चेतना का यह प्रबुद्ध अभियान था। यह चेतना उत्तरोत्तर ऐसी विस्तृत हुई कि समूची दुनिया में उपनिवेशवाद के विरुद्ध मुक्ति का स्वर मुखर हो गया। परिणामस्वरूप भारत की आजादी एशिया और अफ्रीका की भी आजादी लेकर आई। भारत के स्वतंत्रता समर का यह एक वैश्विक आयाम था, जिसे कम ही रेखांकित किया गया है। इसके वनिस्पत फ्रांस की क्रांति की बात कही जाती है। निसंदेह इसमें समता, स्वतंत्रता एवं बंधुता के तत्व थे, लेकिन एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका की अवाम उपेक्षित थी। अमेरिका ने व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता और सुख के उद्देश्य की परिकल्पना तो की, परंतु उसमें स्त्रियां और हब्शी गुलाम बहिष्कृत रहे। माक्र्स और लेनिनवाद ने एक वैचारिक पैमाना तो दिया, किंतु वह अंततः तानाशाही साम्राज्यवादी मुखौटा ही साबित हुआ। इस लिहाज से स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी के ही विचार थे, जो समग्रता में न केवल भारतीय हितों, बल्कि वैश्विक हितों की भी चिंता करते थे। इसी परिप्रेक्ष्य में विनायक दामोदर सावरकर ने प्रखर हिंदुत्व और दीनदयाल उपध्याय ने एकात्म मानववाद एवं अंत्योदय के विचार दिए, जो संसाधनों के उपयोग से दूर अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति के उत्थान की चिंता करते हैं। मोदी का यह सांस्कृतिक विकास और पर्यटन अंतिम छोर पर खड़े इसी व्यक्ति की आर्थिक आमदनी बढ़ाने का काम कर रहे हैं। अतएव विपक्षी नेताओं की यह दलील थोथी है कि अर्थव्यवस्था और रोजगार की चिंता मोदी सरकार नहीं कर रही है।