हलमा की जीवंत परंपरा से साकार हुआ जलसंकल्प: शिवगंगा के श्रमदान से धरमपुरी और उमराली में बने दो बड़े बोरी बांध, इस वर्ष 21 बांध बनाने का लक्ष्य

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हलमा की जीवंत परंपरा से साकार हुआ जलसंकल्प: शिवगंगा के श्रमदान से धरमपुरी और उमराली में बने दो बड़े बोरी बांध, इस वर्ष 21 बांध बनाने का लक्ष्य

JHABUA-ALIRAJPUR : जनजातीय अंचल झाबुआ-अलीराजपुर में सामूहिक श्रमदान की प्राचीन परंपरा हलमा ने एक बार फिर मिसाल पेश की है। शिवगंगा झाबुआ के कार्यकर्ताओं और स्थानीय ग्रामवासियों ने हलमा की भावना के साथ धरमपुरी (झाबुआ) और उमराली (अलीराजपुर) ग्रामों में दो बड़े बोरी बांधों का निर्माण किया। कुल 55 लोगों ने मात्र कुछ ही घंटों में पूरी तरह स्थानीय जनशक्ति और संसाधनों के आधार पर यह कार्य पूरा किया- बिना किसी मशीनरी या ठेकेदार के सहयोग के।

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*तकनीकी विशेषता और जल संचयन क्षमता*

धरमपुरी में बने बोरी बांध की ऊंचाई 4 फीट और लंबाई 27 फीट है, जिसका बैकवॉटर लगभग 450 फीट लंबा और 120 फीट चौड़ा है। इसमें करीब 60 लाख लीटर जल संचयन की क्षमता है। वहीं उमराली ग्राम में निर्मित दूसरे बोरी बांध में लगभग 20 लाख लीटर जल का संग्रहण संभव होगा। इन दोनों संरचनाओं से लगभग 80 लाख लीटर पानी का संचय होगा, जिससे आसपास के खेतों, चरागाहों और ग्रामवासियों को वर्षभर जल की उपलब्धता बनी रहेगी।

*हलमा का अर्थ और सामाजिक प्रभाव*

हलमा भील समाज की वह परंपरा है जिसमें समुदाय किसी साझा उद्देश्य के लिए स्वेच्छा से श्रमदान करता है। इसमें गांववासी एक साथ जुटकर मिट्टी खोदते हैं, बोरी भरते हैं और संरचना तैयार करते हैं। यह सामूहिक श्रम न केवल लागत घटाता है, बल्कि स्थानीय ज्ञान, जिम्मेदारी और सामाजिक एकता को भी मजबूत करता है। शिवगंगा ने इस पारंपरिक पद्धति को आधुनिक जलसंकलन तकनीक के साथ जोड़कर इसे ग्रामीण विकास का व्यावहारिक मॉडल बना दिया है।

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*स्थानीय असर और जनजीवन पर लाभ*

किसान और पशुपालक बताते हैं कि अब वर्षा जल का संरक्षण बेहतर ढंग से हो सकेगा। इससे खेतों में नमी बनी रहेगी, मिट्टी का कटाव रुकेगा और सूखे के मौसम में भी जल उपलब्ध रहेगा। चरागाहों में हरियाली टिके रहने से पशुधन के स्वास्थ्य और उत्पादकता में सुधार आएगा। जलस्रोत पास होने से महिलाओं और बच्चों का श्रम बचेगा, जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार होगा।

*शिवगंगा का लक्ष्य और विस्तार*

शिवगंगा झाबुआ ने इस वर्ष 21 बोरी बांधों का निर्माण करने का संकल्प लिया है। यह लक्ष्य केवल संरचनात्मक नहीं, बल्कि जल, जंगल, जमीन, जानवर और जन – इन पांचों तत्वों के संरक्षण का सामुदायिक अभियान है। संगठन का उद्देश्य है कि प्रत्येक गांव अपने स्तर पर जलसंग्रहण उपायों को अपनाए और जलसुरक्षा में आत्मनिर्भर बने। इसके साथ शिवगंगा आगामी महीनों में वृक्षारोपण, जलस्रोतों की निगरानी और किसानों के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करेगा।

*सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रेरणा*

यह प्रयास केवल जल प्रबंधन तक सीमित नहीं है। क्षेत्र की सांस्कृतिक चेतना और आस्था के प्रतीक स्थलों, विशेषकर हनुमान टेकरी, से लोगों को सामूहिकता की प्रेरणा मिलती है। लोकभजनों और सामाजिक आयोजनों के माध्यम से हलमा का संदेश गांव-गांव तक पहुंचाया जा रहा है। शिवगंगा नाम स्वयं उस प्रवाह का प्रतीक है जो जल और जीवन दोनों में हरियाली लाने की प्रेरणा देता है।

*शिक्षा और प्रेरणा का विस्तार*

हलमा की महत्ता को देखते हुए एनसीईआरटी ने कक्षा 6 की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया है। अब देशभर के विद्यार्थी इस परंपरा से परिचित होंगे और सामूहिक श्रम की भारतीय भावना को एक आदर्श के रूप में पढ़ेंगे।

*पर्यावरणीय और दीर्घकालिक परिणाम*

छोटे बांधों से भूजल पुनर्भरण में वृद्धि होगी, जिससे बोरवेल निर्भरता घटेगी और पेयजल की स्थिति सुधरेगी। भूमि की उर्वरता और पारिस्थितिकी संतुलन में भी सुधार की संभावना है। यदि 21 बांधों का लक्ष्य पूरा होता है तो क्षेत्रीय जलचक्र को स्थायी मजबूती मिलेगी और झाबुआ-अलीराजपुर का यह जनसंकल्प देश के अन्य जलसंकटग्रस्त क्षेत्रों के लिए आदर्श बन सकता है।

धरमपुरी और उमराली के ये दो बोरी बांध केवल जलसंरचना नहीं, बल्कि जनशक्ति, परंपरा और संवेदनशीलता के संगम का प्रतीक हैं। जब समाज स्वयं आगे बढ़कर अपने संसाधनों की रक्षा करता है, तो विकास केवल योजना से नहीं, बल्कि लोकशक्ति से भी संभव होता है।