
तब अटल के सामने बौने पड़ गए थे अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
ऑपरेशन सिंदूर को लेकर आज अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बार-बार कथित तौर पर यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने भारत यानि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दबाव डालकर सीजफायर करवाया था। और विपक्ष सरकार से इस मामले में जवाब पाने को लगातार आतुर है। पर आज हर भारतवासी 1999 में हुए कारगिल युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के प्रति अपनाए गए दो टूक रवैए पर गर्व महसूस कर सकता है। भारत ने कारगिल युद्ध के दौरान अपनी नैतिकता को बनाए रखा और एलओसी का उल्लंघन नहीं किया, लेकिन जब पाकिस्तान ने अमेरिका के जरिए भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की, तो वाजपेयी ने उस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के नाम एक गोपनीय पत्र भेजा था। वह पत्र क्लिंटन को तब मिला था, जब वे जिनेवा में थे। द वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार यह पत्र बिल क्लिंटन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सैमुअल आर सैंडी ने प्राप्त किया था। इस पत्र में भारत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अगर पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को वापस नहीं बुलाया तो भारत उन्हें खदेड़ेगा ही, संभव है कि पाकिस्तान कल का सूरज ना देखे। भारत की ओर से वाजपेयी ने यह दृढ़ प्रतिक्रिया इसलिए दी थी कि पाकिस्तान ने भारत पर परमाणु हमले की बात की थी।
परमाणु युद्ध की स्थिति को बनते देख क्लिंटन ने पाकिस्तान से कहा कि वह घुसपैठ को तुरंत रोके और उसे एलओसी से तुरंत हटने को कहा था। उस वक्त भारतीय मीडिया में इस तरह की खबर भी आई थी कि बिल क्लिंटन ने आधी रात को वाजपेयी को फोन किया था, जिसपर उन्हें वैसा ही जवाब मिला था , जैसा कि पत्र में दिया गया था। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने अपनी आत्मकथा “माई लाइफ” में इस बात का जिक्र किया है।
आईए पहले कारगिल युद्ध के बारे में कुछ जानते हैं। कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के सभी देशवासियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। भारत में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है। इस दिन भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था जो लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ और इसमें भारत विजय हुआ। कारगिल विजय दिवस युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों के सम्मान हेतु यह दिवस मनाया जाता है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भी कई दिन सैन्य संघर्ष होता रहा। इतिहास के मुताबित दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण तनाव और बढ़ गया था। स्थिति को शांत करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। जिसमें कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का वादा किया गया था लेकिन पाकिस्तान ने अपने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजने लगा और इस घुसपैठ का नाम “ऑपरेशन बद्र” रखा था। इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। तब यह साजिश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने रची थी। पाकिस्तान यह भी सोच रहा था कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के तनाव से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी।
प्रारम्भ में इसे घुसपैठ मान लिया था और दावा किया गया कि इन्हें कुछ ही दिनों में बाहर कर दिया जाएगा लेकिन नियंत्रण रेखा में खोज के बाद इन घुसपैठियों के नियोजित रणनीति के बारे मे पता चला जिससे भारतीय सेना को एहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर की गयी है। इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय नाम से 2,00,000 सैनिकों को कारगिल क्षेत्र मे भेजा। यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ। इस युद्ध के दौरान 527 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया और 1400 के करीब घायल हुए थे।
अटल जी का जिक्र आज इसलिए खास तौर पर कर रहे हैं क्योंकि गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को कभी भी कोई विदेशी दबाव डिगा नहीं पाया था। चाहे परमाणु परीक्षण की बात हो या फिर कारगिल युद्ध की, अटल बिहारी वाजपेई ने किसी के दबाव में कभी भी कोई समझौता नहीं किया। फिर चाहे अमेरिका हो या अन्य विदेशी शक्तियां। हालांकि विदेशी शक्तियों से समझौता न करने के मामले में यही बात देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर भी लागू होती हैं। पर अगर तुलना की जाए तो अटल की तरह समग्र और अद्भुत व्यक्तित्व की बराबरी कोई नहीं कर सकता। चाहे कारगिल युद्ध हो या फिर अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दूसरे फैसले, अटल इरादों के सामने सभी आज भी नतमस्तक हो जाते हैं… कारगिल युद्ध के समय अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन वास्तव में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के सामने बौने पड़ ग
ए थे।





